West Bengal: आग से तबाह हुईं झुग्गी बस्तियां, लोगों को सता रहा SIR का डर, राख हो चुके हैं पहचान पत्र
West Bengal SIR: ये झुग्गी बस्तियां तोपसिया के मजदूरपाड़ा से लेकर न्यू अलीपुर के दुर्गापुर पुल के नीचे तक बसी हैं। इन सभी इलाकों में डर एक जैसा है: कई लोगों को चिंता है कि आधार कार्ड, मतदाता पहचानपत्र या पैन कार्ड के बिना, इस साल के वोटर वैरिफिकेशन अभियान के दौरान उन्हें मतदाता सूची में ‘मरा हुआ’ बताया जा सकता है
West Bengal: आग से तबाह हुईं झुग्गी बस्तियां, लोगों को सता रहा SIR का डर, राख हो चुके हैं पहचान पत्र (FILE PHOTO)
कोलकाता में हाल ही में आग से तबाह हुई झुग्गी बस्तियों के निवासियों की चिंता पहचानपत्रों के जलकर राख होने के कारण और बढ़ गई है, क्योंकि मौजूदा विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के दौरान इन लोगों के वोटर लिस्ट से बाहर होने का खतरा पैदा हो गया है। ये झुग्गी बस्तियां तोपसिया के मजदूरपाड़ा से लेकर न्यू अलीपुर के दुर्गापुर पुल के नीचे तक बसी हैं।
इन सभी इलाकों में डर एक जैसा है: कई लोगों को चिंता है कि आधार कार्ड, मतदाता पहचानपत्र या पैन कार्ड के बिना, इस साल के वोटर वैरिफिकेशन अभियान के दौरान उन्हें मतदाता सूची में ‘मरा हुआ’ बताया जा सकता है।
न्यूज एजेंसी PTI की रिपोर्ट के मुताबिक, आग की घटनाओं के बाद तिरपाल, टिन की प्लेट या जो कुछ भी बचा था, उससे अस्थायी घर बनाने वाले सैकड़ों लोगों के लिए, पहचान पत्रों का नुकसान उनके घरों के नुकसान से कहीं ज्यादा पीड़ा दायक साबित हो रहा है।
बीनापानी मंडल पगलाडांगा में अपनी पुनर्निर्मित झोपड़ी के ढांचे के बाहर बैठी थीं, जो अब भी अप्रैल में नहर किनारे स्थित उनकी बस्ती में लगी आग से पीड़ित हैं।
उनका सबसे बड़ा डर उनके बड़े बेटे राजेश को लेकर है, जो गुजरात में एक ‘ग्रिल फैक्टरी’ में काम करता है। उसका आधार, वोटर आईडी और पैन कार्ड, सब उसी रात जलकर राख हो गए।
मंडल ने एक समाचार चैनल को बताया, ‘‘मैं अपने दस्तावेज तो वापस ले आई, लेकिन उसके दस्तावेज गायब हो गए। अगर वे कह दें कि वह यहां का नहीं है तो क्या होगा? अगर उसे बाहर निकाल दिया जाए तो क्या होगा?’’
मंडल की आवाज भर्राई हुई थी क्योंकि बूथ स्तर के अधिकारी (बीएलओ) फॉर्म, सूचियां और सत्यापन पत्रक लेकर लगातार इलाके का दौरा कर रहे थे।
स्वप्ना ने कई हफ्ते तक सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटे, बायोमेट्रिक्स, तस्वीर और हलफनामों के लिए कई बार लौटाई गई। लेकिन राजेश राज्य के बाहर काम करता है, इसलिए उसके दोबारा किये गए आवेदन अब भी लंबित हैं।
उसने कहा, ‘‘वह दिसंबर में आएगा, लेकिन अगर बहुत देर हो गई तो क्या होगा?’’
न्यू अलीपुर के दुर्गापुर पुल के नीचे, पिछले साल दिसंबर में लगी आग में अपने घर गंवाने वाले कई परिवारों की चिंताएं भी ऐसी ही हैं। बेबी दास एक अस्थायी आश्रय में रहती हैं जहां टिन की छत पर ईंटों को टिकाया गया है ताकि वह हवा में न उड़ सकें।
बेबी ने कहा, ‘‘मेरा आधार फिर से जारी हो गया है। लेकिन मेरा वोटर कार्ड अभी भी लंबित है। मैं बहुत डरी हुई हूं।’’
उनके पति विकास अपनी जलती हुई झोपड़ी के गिरने से कुछ क्षण पहले ही अंदर भागकर अपने दस्तावेज बचाने में कामयाब रहे, लेकिन बेबी के दस्तावेज नहीं मिल सके।
तोपसिया के मजदूरपाड़ा में भी ऐसी ही स्थिति है जहां आग ने झोपड़ियों की एक कतार को जलाकर राख कर दिया था। मजदूरपाड़ा के कुछ निवासी दस्तावेज़ बचाने में कामयाब रहे, जबकि अचानक लगी आग में फंसे अधिकतर लोग ऐसा नहीं कर पाए।
मजदूरपाड़ा की आयशा खातून ने कहा, ‘‘मैंने एक बैग, आधार कार्ड, वोटर कार्ड और पैन कार्ड उठाया और भाग गई।’’
आयशा के पास खड़ी एक अन्य महिला ने कहा, ‘‘उसने अपने दस्तावेज बचा लिए। लेकिन जो नहीं बचा सके, उनका क्या होगा?’’
कोलकाता जैसे शहर में जहां हजारों लोग पुलों के नीचे, फुटपाथों पर और नालों के किनारे रहते हैं, आग लगने की घटनाएं असामान्य नहीं हैं। इस साल असामान्य बात यह है कि आग लगने की घटना के साथ ही राज्यव्यापी सत्यापन अभियान भी शुरू हो गया है, जिससे सबसे गरीब लोगों को डर है कि उनके पहचानपत्रों के नुकसान से अब उनकी ‘पहचान’ ही मिट सकती है।