जब 1969 में टिकट कटने के बावजूद 6 प्रमुख नेताओं में से किसी ने भी कांग्रेस नहीं छोड़ी
सन 1969 में जिन छह नेताओं के टिकट कटे थे, उनके नाम हैं के.बी. सहाय, महेश प्रसाद सहाय, सत्येंद्र नारायण सिन्हा, राम लखन सिंह यादव, अंबिका शरण सिंह और राघवेंद्र नारायण सिंह। उपर्युक्त नेताओं के खिलाफ सन 1967 में महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व में बनाई गई संयुक्त मोर्चा सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए न्यायिक जांच आयोग बनाया था
जब 1969 में टिकट कटने के बावजूद 6 प्रमुख नेताओं में से किसी ने भी कांग्रेस नहीं छोड़ी (FILE PHOTO)
थोड़े से अपवादों को छोड़ दें तो आज जिसका भी टिकट कट जाता है, वह दल छोड़ देता है। लेकिन 1969 में कांग्रेस ने बिहार के छह प्रमुख नेताओं के टिकट काट दिए थे, इसके बावजूद उनमें से किसी ने भी पार्टी से विद्रोह नहीं किया था। 1969 में बिहार विधान सभा का मध्यावधि चुनाव हुआ था। ऐसा राज्य में पहली बार हुआ था, जब छह दिग्गज नेता ही चुनावी टिकट से वंचित कर दिए गए, जो पार्टी के बिहार में मुख्य स्तंभ माने जाते थे। इनके टिकट इसलिए कटे, क्योंकि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की न्यायिक जांच चल रही थी।
भले ही उन छह नेताओं पर तब के मापदंड के अनुसार भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे थे, पर आज जिन दागी नेताओं को भी कांग्रेस या कुछ अन्य दल भी अपने संगठन में बेहिचक शामिल कर लेते हैं, इनके खिलाफ लगे गंभीर आरोपों के मुकाबले उन छह नेताओं के खिलाफ लगे आरोप काफी हल्के माने जायेंगे।
सन 1969 में जिन छह नेताओं के टिकट कटे थे, उनके नाम हैं के.बी. सहाय, महेश प्रसाद सहाय, सत्येंद्र नारायण सिन्हा, राम लखन सिंह यादव, अंबिका शरण सिंह और राघवेंद्र नारायण सिंह। उपर्युक्त नेताओं के खिलाफ सन 1967 में महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व में बनाई गई संयुक्त मोर्चा सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए न्यायिक जांच आयोग बनाया था।
आयोग के अध्यक्ष थे सुप्रीम कोर्ट के जज रह चुके टी.एल. बेंकटरामा अय्यर थे। अय्यर आयोग ने सन 1970 में अपनी रपट राज्य सरकार को दे दी थी। उन नेताओं के खिलाफ किस तरह के आरोप थे और उनके खिलाफ आयोग ने क्या रपट दी, यह इस लेख का विषय नहीं है। अभी अवसर सिर्फ टिकट कटने की एक बड़ी कहानी कहने का है।
इस संबंध में पूर्व मुख्य मंत्री सत्येंद्र नारायण सिंह ने ‘मेरी यादें मेरी भूलें ’में लिखा है कि ‘अप्रैल 1969 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का अधिवेशन फरीदाबाद में हुआ। उससे पहले आम चुनाव हो गया था। उस चुनाव के लिए जिन उम्मीदवारों का चयन हुआ, उनमें के.बी. सहाय, महेश बाबू, राम लखन सिंह यादव, अम्बिका बाबू और राघवेंद्र बाबू और मुझे टिकट नहीं दिए गए। क्योंकि संयुक्त मोर्चा सरकार ने हमलोगों पर आरोप लगाकर अय्यर कमीशन गठित कर दिया था।
अभी तो जांच चल ही रही थी कि टिकट काट दिए गए। इसके अलावा हमलोगों को टिकट न देने का उद्देश्य यह भी था कि बिहार कांग्रेस के नेतृत्व में परिवर्तन किया जाए। कांग्रेस के कुछ प्रमुख नेतागण डा. राम सुभग सिंह को बिहार में नेता बनाना चाहते थे।’
सत्येंद्र नारायण सिंह ने यह महत्वपूर्ण बात लिखी कि कांग्रेस हाई कमान का एक हिस्सा राम सुभग सिंह को नेता बनाना चाहता था, जो बातें सत्येंद्र बाबू ने नहीं लिखीं, वो यह है कि दरअसल स्वतंत्रता सेनानी डा.राम सुभग सिंह केंद्र में लंबे समय तक मंत्री रह चुके थे।
वे स्वच्छ छवि के नेता थे। उन्होंने सत्ता का दुरूपयोग करके कोई संपत्ति बनाई हो, ऐसी कोई जानकारी अब तक इन पंक्तियों लेखक को नहीं है। दूसरी ओर अय्यर आयोग ने इन छह नेताओं के खिलाफ लगाये गये किसी न किसी आरोप को सही पाया था। यानी 1969 तक कांग्रेस हाई कमान में ऐसे नेता मौजूद थे, जो विवादास्पद नेताओं को दरकिनार करके स्वच्छ छवि वाले नेता को आगे लाना चाहते थे।
एक जानकारी यह भी मिल रही थी कि तब तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी बिहार की कमान डा. सिंह को नहीं बल्कि कमल नाथ तिवारी को सौंपना चाहती थीं। यह और बात है कि तब बिहार कांग्रेस में इंदिरा जी की भी नहीं चली थी और ए.पी..शर्मा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बन गये थे।तब तक कांग्रेस का महा विभाजन नहीं हुआ था।
लेकिन इन दिनों तो कांग्रेस कौन कहे,अन्य कुछ दल भी आम चुनाव की पूर्व संध्या पर विवादास्पद और गैर विवादास्पद नेताओं को दूसरे दलों से बुला कर अपने यहां महत्व देती हैं। बाहर के लोग भी यह देख कर अचंभित हो रहे हैं कि बिहार में कांग्रेस और कुछ अन्य दलों का भी स्वरूप बदल रहा है।
के.बी. सहाय, महेश प्रसाद सिंहा, सत्येंद्र नारायण सिन्हा, राम लखन सिंह यादव, अम्बिका शरण सिंह और राघवेंद्र नारायण सिंह में से कोई भी नेता अब इस दुनिया में नहीं हैं। पर विभिन्न दलों में इन दिनों सक्रिय आज के अधिकतर नेताओं की अपेक्षा वे छहों नेता बेहतर माने जाते थे। पर टिकट तो उनके कटे। क्योंकि उनके खिलाफ एक आयोग जांच कर रहा था।
उनको टिकट नहीं मिलने का कोई खास असर बिहार में कांग्रेस के चुनावी भविष्य पर नहीं बना। हालांकि, टिकट कटने के समय यह कहा जा रहा है कि ये छह दिग्गज नेताओं के टिकट नहीं मिलने से कांग्रेस को भारी नुकसान होगा और उसकी सरकार नहीं बनेगी।
फरवरी, 1969 में हुए बिहार विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को 119 सीटें मिलीं। कुछ दूसरे दलों से मिलकर कांग्रेस ने सरदार हरिहर सिंह के नेतत्व में सरकार बना ली। पर वह सरकार कुछ ही महीने चली। बाद में 1969 के मध्य में जब कांग्रेस का महाविभाजन हुआ तो के.बी.सहाय, महेश प्रसाद सिंह, सत्येंद्र नारायण सिंह और अम्बिका शरण सिंह संगठन कांग्रेस में और राम लखन सिंह यादव इंदिरा कांग्रेस में चले गये।