भारत में गेहूं सिर्फ एक अनाज नहीं, बल्कि हमारी रोज़मर्रा की सेहत और भोजन का आधार है। इसके आटे का स्वाद, पोषण और पाचन सभी सीधे तौर पर हमारी सेहत से जुड़े हैं। हालांकि, खेत से घर तक आते समय गेहूं के दानों में कई तरह की गंदगी, मिट्टी, कीड़े-मकोड़े और अनचाहे कण जम जाते हैं। यही वजह है कि गांव और कस्बों में लोग गेहूं को पीसने से पहले अच्छी तरह धोकर धूप में सुखाते हैं। यह प्रक्रिया केवल सफाई के लिए नहीं, बल्कि आटे की गुणवत्ता, स्वाद और स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है।
धुले और सुखाए हुए गेहूं से बने आटे में नमी, बैक्टीरिया और फफूंदी के कण कम रहते हैं, जिससे आटा लंबे समय तक ताजा और शुद्ध बना रहता है। यही कारण है कि पारंपरिक तरीके से गेहूं धोना और सुखाना आज भी हर घर में अपनाया जाता है।
अगर गेहूं को बिना धोए पीस लिया जाए, तो आटे की गुणवत्ता और स्वाद प्रभावित हो सकते हैं। धुला और सुखाया हुआ गेहूं अधिक शुद्ध और पौष्टिक होता है। इसमें लगी मिट्टी और भूसी का असर भी खत्म हो जाता है। नतीजतन, आटे का रंग बेहतर होता है और बनावट हल्की व फूली रहती है।
गेहूं को लंबे समय तक गोदाम या घर में रखा जाता है, जिससे नमी और कीड़े प्रभावित कर सकते हैं। धोकर धूप में सुखाने से बैक्टीरिया, फफूंदी और अन्य हानिकारक कण नष्ट हो जाते हैं। इससे आटे की शेल्फ लाइफ बढ़ती है और ये जल्दी खराब नहीं होता।
लोकल 18 से बलिया के कृषि विशेषज्ञ प्रो अशोक कुमार सिंह ने बताया कि, "धुले और अच्छे से सुखाए गए गेहूं से बना आटा फूला-फूला, स्वादिष्ट और हल्का पचने वाला होता है।" यही कारण है कि पारंपरिक तरीके से लोग हमेशा गेहूं धोकर सुखाकर ही पीसते हैं। इससे न केवल स्वाद बढ़ता है बल्कि परिवार की सेहत भी सुरक्षित रहती है।
चक्की की स्थिति और गुणवत्ता
गीला गेहूं पीसने से चक्की चिपचिपी हो सकती है और आटा ठीक से नहीं पिसता। धोकर और सुखाकर तैयार किया गया आटा न सिर्फ आसानी से पिसता है बल्कि गुणकारी और लाभकारी भी होता है। यही वजह है कि पारंपरिक तरीका आज भी बरकरार है।