Elections 2023: बदला रिवाज, सर्वे के भरोसे बांटे टिकट; कैसे चुनावी राज्यों में पुरानी गलतियों से सबक ले रही कांग्रेस

Assembly Elections 2023: कांग्रेस हमेशा से टिकटों का ऐलान आखिरी मिनट में करती रही हैं, जिससे असंतुष्ट नेताओं को बागी होने से रोका जा सके। लेकिन इस बार राजस्थान छोड़कर बाकी हर जगह पार्टी ने काफी पहले उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर दिया है और कोई खास विरोध प्रदर्शन भी नहीं हुआ। आखिर यह हुआ कैसे?

अपडेटेड Nov 01, 2023 पर 12:32 PM
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Assembly Elections 2023: कांग्रेस आलाकमान राजस्थान में टिकट बंटवारे के जरिए एक सख्त संदेश देना चाहता है

Assembly Elections 2023: कांग्रेस (Congress) ने जब बीते 15 अक्टूबर को नवरात्रि के पहले दिन मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव (MP Election) के लिए अपने 144 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की, तो इससे कई लोगों को हैरानी हुई। ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस आमतौर पर टिकटों का ऐलान आखिरी मिनट में करती रही हैं, जिससे बाकी नेताओं को बागी होने के खतरे से निपटना जा सका। लेकिन यह पहली बार था, जब कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों के नामों का इतना पहले ऐलान कर दिया। आखिर यह हुआ कैसे?

MP में टिकट वितरण

कांग्रेस की मध्य प्रदेश इकाई ने पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति (CEC) के सामने एक सूची रखी थी जिसमें प्रत्येक विधानसभा के लिए बस एक नाम था। इससे स्क्रीनिंग कमेटी को उम्मीदवारों का चयन करने में कुछ ही मिनट लगे। मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने मिलकर बहुत सारे सीटों पर खुद ही कमजोर दिख रहे उम्मीदवारों को लिस्ट से बाहर कर दिया था। दोनों ने मिलकर राज्य के बाकी क्षत्रपों को भी अपने वश में किया। पिछले कुछ सालों में उनका प्रभाव भी कम हो गया था। कमलनाथ ने शुरू में दिग्विजय सिंह के प्रभाव को भी कम करने की कोशिश की, लेकिन असफल रहे। अंत में दोनों को हाथ मिलाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

19 अक्टूबर की देर शाम को, पार्टी ने 85 उम्मीदवारों की अपनी दूसरी सूची जारी की। इसके अलावा अपने विधानसभा क्षेत्रों में विरोध के कारण पहली लिस्ट में घोषित तीन उम्मीदवारों को भी बदल दिया।


राज्य के कुछ हिस्सों में हुए छिटपुट विरोध प्रदर्शनों को छोड़ दें तो, टिकट बंटवारे को लेकर कोई बड़ा विवाद खड़ा नहीं हुआ था। इसके लिए कमलनाथ और उनकी टीम ने पिछले 2-3 सालों से राज्य के सभी 230 विधानसभा सीटों में कई सर्वे किए थे, जिससे संभावित जीतने योग्य उम्मीदवारों की पहचान पहले ही हो गई थी।

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इससे नेतृत्व के लिए काम आसान हो गया। इन सर्वे के नतीजों के आधार पर ही करीब लगभग 60-70 प्रतिशत उम्मीदवारों को टिकट दिया गया है। इसके अलावा इस बार ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाहर होने से (वह मार्च 2020 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए थे) चंबल-ग्वालियर क्षेत्र से उम्मीदवार चयन को लेकर कांग्रेस के भीतर खींचतान कम हो गई थी। सिंधिया अपने इस्तीफे तक इस क्षेत्र से टिकट वितरण में हमेशा हावी रहे थे। इस चुनाव में दिग्विजय सिंह ने इस क्षेत्र पर पूरी तरह से नियंत्रण कर लिया।

छत्तीसगढ़: जमीनी दौरे, सर्वे, मौजूदा विधायकों का टिकट कांटना

पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में एक नया प्रयोग देखने को मिला, जहां कांग्रेस ने पहली बार अपनी स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यों को आवेदकों या संभावित उम्मीदवारों के साथ मौके पर बैठक करने और जमीनी स्तर से फीडबैक लेने के लिए जिलों में भेजा। इससे पहले, उम्मीदवार राज्य की राजधानी या दिल्ली जाते थे और अपने टिकट के लिए लॉबिंग करने में काफी समय बर्बाद करते थे।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, छत्तीसगढ़ कांग्रेस और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) की ओर से अलग-अलग सर्वे किए गए थे, जिसके बाद 71 मौजूदा विधायकों में से 22 को उनके विधानसभा क्षेत्रों में जनता की नाराजगी और और पार्टी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को कम करने के लिए बेंच पर बैठाया दिया गया।

सभी 90 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम तीन सूचियों में जारी किए गए हैं। इसमें बघेल और पार्टी में उनके प्रतिद्वंद्वी टीएस सिंहदेव के बीच एक अच्छा संतुलन बनाए रखा गया है। इसके अलावा चुनाव से ठीक पहले सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बनाए जाने से भी दोनों के बीच दरार थोड़ी खत्म हुई है।

राजस्थान: दो परस्पर विरोधी सर्वे की कहानी

राजस्थान की बात करें तो सभी 200 सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों की सूची को अंतिम रूप देने में देरी हो रही है। इसके पीछे बड़ा कारण दो तथाकथित चुनावी रणनीतिकारों के बीच एक-दूसरे को नीचा दिखाने की लड़ाई बताई जा रही है। पार्टी यहां चुनावी रणनीतिकार सुनील कानुगोलू और राजनीतिक कंसल्टेंसी फर्म डिजाइनबॉक्स्ड के बीच टकराव में फंसती दिख रही है।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार की सिफारिश पर अपने अभियान को सफल बनाने के लिए डिजाइनबॉक्स्ड को काम पर रखा था। शिवकुमार ने पार्टी महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला के सुझाव पर अपने ब्रांड को मजबूत करने के लिए व्यक्तिगत रूप से डिजाइनबॉक्स्ड की सेवाएं ली थीं। कंपनी इससे पहले राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री और गहलोत के धुर विरोधी सचिन पायलट के लिए भी काम कर चुकी है।

गहलोत की ब्रांड बिल्डिंग के अलावा, एजेंसी ने संभावित कांग्रेस उम्मीदवारों का सर्वे भी किया। गहलोत के लोकलुभावन बजट के बाद, डिजाइनबॉक्स्ड ने जयपुर और राज्य के अन्य हिस्सों में मुख्यमंत्री की कल्याणकारी योजनाओं का प्रचार करने वाले होर्डिंग लगवाए। इन होर्डिंग्स में सिर्फ मुख्यमंत्री गहलोत की तस्वीर लगी थी, जिसने राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा को नाराज कर दिया। इन दोनों साफ तौर पर जोर देकर कहा था कि कांग्रेस के सभी पोस्टरों में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी की तस्वीरें भी होनी चाहिए थीं।

जब डिजाइनबॉक्स्ड की ओर से अभियान के गलत इस्तेमाल की शिकायतें राहुल गांधी तक पहुंचीं, तो उन्होंने गहलोत से कनुगोलू की सेवाएं लेने के लिए कहा। वह पहले से ही कई राज्यों के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस पार्टी के चुनाव अभियान और राजनीतिक रणनीति को देख रहे हैं। हालांकि, गहलोत ने कांग्रेस नेतृत्व की इच्छा के खिलाफ डिजाइनबॉक्स्ड की सेवाओं को बनाए रखा।

इस बीच, कानुगोलू ने राज्य की सभी 200 सीटों पर संभावित उम्मीदवारों का एक सर्वे किया और अपनी सूची कांग्रेस के संगठन प्रभारी महासचिव केसी वेणुगोपाल को सौंप दी। वेणुगोपाल ने गहलोत से इस सर्वे में सुझाए गए नामों पर विचार करने के लिए कहा है।

गहलोत के तीन वफादारों को लेकर लंबी खींचतान

कांग्रेस आलाकमान राजस्थान में टिकट बंटवारे के जरिए एक सख्त संदेश भी देना चाहता है। इसके लिए आलाकमान उन लोगों को टिकट काटना चाहता हैं, जिन्होंने पिछले साल उनके निर्देश की अवहेलना करते हुए अनुशासनहीनता की थी। इनमें गहलोत के तीन कट्टर समर्थक शांति कुमार धालीवाल (संसदीय कार्य मंत्री), मोहन जोशी (राज्य के चीफ व्हिप) और धर्मेंद्र राठौर (राजस्थान पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष) शामिल हैं। इन तीनों ने पिछले साल 25 सितंबर को गहलोत के उत्तराधिकारी का चुनाव करने के लिए आलाकमान की ओर से बुलाई कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) की बैठक को नहीं होने देने और इसके समानांतर अलग बैठने बुलाई में अहम भूमिका निभाई थी।

अब तक जारी तीन सूचियों में पार्टी ने 95 उम्मीदवारों की घोषणा की है और धारीवाल, जोशी और राठौड़ के नाम इनमें से गायब हैं। हालांकि कहा जा रहा है कि गहलोत उनकी उम्मीदवारी के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं।

तेलंगाना: ओल्ड गार्ड या जीतने की क्षमता

तेलंगाना में कांग्रेस ने अब तक कुल 119 सीटों में से 100 सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। पार्टी ने हाल ही में भारत राष्ट्र समिति (BRS) और BJP छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए 28 नेताओं को मैदान में उतारा है, जिससे उसके वफादारों में नाराजगी है।

एक बैठक में तेलंगाना कांग्रेस अध्यक्ष रेवंता रेड्डी और उनके पूर्ववर्ती एन उत्तम कुमार रेड्डी के बीच टिकट वितरण में वफादार नेताओं पर नए लोगों को तरजीह देने को लेकर तीखी बहस हुई थी। उत्तम कुमार रेड्डी ने जोर देकर कहा कि पुराने नेताओं, वफादार नेताओं और युवा पीढ़ी को मौका दिया जाना चाहिए, जबकि रेवंता ने तर्क दिया कि उम्मीदवारों का चयन केवल सर्वे रिपोर्ट और जीतने की क्षमता के आधार पर होना चाहिए।

मनीकंट्रोल के लिए यह लेख औरंगजेब नक्शबंदी ने लिखा है। वे एक वरिष्ठ पत्रकार हैं, जो 15 सालों से कांग्रेस को कवर कर रहे हैं, और वर्तमान में पिक्सस्टोरी से जुड़े हुए हैं। विचार व्यक्तिगत हैं और इस प्रकाशन के रुख का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।

Vikrant singh

Vikrant singh

First Published: Nov 01, 2023 12:32 PM

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