भाई दूज के साथ ही पांच दिन के दिवाली के उत्सव का समापन हो जाता है। भाई दूज का पर्व बहन और भाई के प्रति विश्वास और प्रेम का होता है। हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन भाई दूज के पर्व मनाया जाता है। देशभर में भाई दूज के पर्व को अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है। इसे यम द्वितीया भी कहते हैं। यह गोवर्धन पूजा के बाद मनाया जाता है। यह दिन भाई बहन के प्यार और स्नेह के रिश्ते का प्रतीक होता है। हिंदू पंचाग के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि पर भाई दूज का पर्व मनाया जाता है। इस साल भाई दूज का पर्व 3 नवंबर 2204 को मनाया जाएगा।
इस खास अवसर पर बहनें अपने भाई का तिलक करती हैं। भाई की लंबी आयु और सुख-समृद्धि में वृद्धि के लिए कामना करती हैं। हिंदू पंचाग के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि पर भाई दूज का पर्व मनाया जाता है।
कार्तिक मास के द्वितीया तिथि की शुरुआत 2 नवंबर को रात 8:22 बजे हो जाएगा। यह तिथि 3 नवंबर को रात 10:06 बजे तक रहेगी। ऐसे में उदयातिथि के अनुसार 3 नवंबर को भाई दूज का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन सुबह में 11.39 बजे तक सौभाग्य योग रहेगा। इसके बाद शोभन योग शुरू हो जाएगा। इसलिए भाई दूज के दिन पूजा के लिए सबसे उत्तम मुहूर्त 11:45 मिनट तक रहेगा। इस दिन के शुभ मुहूर्त सुबह 11:48 बजे से दोपहर 12:32 बजे तक है। फिर दोपहर 01:10 बजे से दोपहर 03:22 बजे तक। फिर शाम शाम 05:43 बजे से 07:20 बजे तक है। इसके बाद आखिरी में शाम 07:20 से 08:57 बजे तक है। लेकिन बेहतर समय दोपहर 3.22 बजे तक का समय माना गया है।
पौराणिक कथा के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान यम अपनी बहन यमुना से मिले थे। उस समय मां यमुना ने यम देवता का आदर-सत्कार किया और उन्हें भोजन कराया। इससे यम देव अति प्रसन्न हुए। उन्होंने वचन दिया कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर जो कोई अपनी बहन से मिलने उनके घर जाएगा। उस व्यक्ति की हर मनोकामना जरूर पूरी होगी। इसके साथ ही सुख और सौभाग्य में भी वृद्धि होगी। तभी से भाई दूज मनाने की शुरुआत हुई है।
वहीं भाई दूज को लेकर एक अन्य पौराणिक कथा यह भी है कि भगवान कृष्ण जब नरकासुर राक्षस का वध करके द्वारका लौटे थे। तब भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा ने फूल, मिठाई और अनेकों दीपक जलाकर उनका स्वागत किया था। इस दिन सुभद्रा ने भगवान कृष्ण के मस्तक पर टीका लगाकर उनकी लंबी आयु की कामना की थी। तभी से भाई दूज का पर्व मनाने की परंपरा शुरू हो गई।