गीता जयंती के दिन भगवान कृष्ण की पूजा और भगवात गीता का पाठ करने का विशेष महत्व है। गीता जयंती हर साल मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन मोक्षदी एकादशी भी मनाई जाती है। श्रीमद्भगवागीता एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जिसकी जयंती मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण और वेदव्यास जी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन उपवास और श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ करने से व्यक्ति का मन पवित्र होता है साथ ही जीवन में सुख शांति बनी रहती है। गीता में श्रीकृष्ण और अर्जुन का संवाद है। इस साल गीता जयंती आज (11 दिसबर) 2024 को है।
गीता उपदेश सुनने और समझने के बाद अर्जुन के मन की सारी दुविधाएं दूर हो गई थीं। इसके बाद अर्जुन अपने कर्म यानी युद्ध के लिए तैयार हो गए थे। गीता आज के समय में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले ग्रंथों में से भी एक है। श्रीकृष्ण ने गीता में कई ऐसी बातें कही हैं। जिन्हें अपनाने से कई समस्याओं का छुटकारा मिल सकता है। जीवन में सुख-शांति मिल सकती है।
गीता मात्र एक पुस्तक नहीं है, बल्कि उपदेशों का जीवित स्वरूप है। लिहाजा इसकी जयंती मनाई जाती है। इसके उपदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने पहले थे। इस दिन गीता के पाठ से मुक्ति, मोक्ष और शान्ति का वरदान मिलता है। गीता के पाठ से जीवन की जानी-अनजानी तमाम समस्याओं से छुटकारा मिलता है। कहते हैं कि गीता कलयुग में सत्य की वाहक है। इसमें 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। इस धर्मग्रंथ में जीवन को महान बनाने का हर एक सूत्र मिलता है। कहते है कि गीता का ज्ञान कलयुग का वो वरदान है, जो जीवन की सारी शंकाओं का समाधान कर सकता है। आपके जीवन से अंधकार को मिटाकर ईश्वर की साधना में लीन कर सकता है।
गीता जयंती पर करें इन श्लोक का पाठ
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते। सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥ परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मस्ंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥
श्रीमदभगवतगीता के इस श्लोक में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा- 'हे भारत (अर्जुन), जब-जब धर्म की ग्लानि यानि उसका लोप होता है और अधर्म में बढ़ोतरी होती है। तब-तब मैं धर्म के अभ्युत्थान के लिए स्वयं की रचना करता हूं। अर्थात अवतार लेता हूं।