होलिका दहन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि परंपराओं और आस्था का संगम है। छतरपुर जिले समेत कई स्थानों पर इस दिन गोबर के उपले (कंडे) जलाने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। मान्यता है कि उपलों की पवित्र अग्नि नकारात्मक ऊर्जाओं को समाप्त कर परिवार में सुख-समृद्धि और शांति लाती है। होलिका दहन से कुछ दिन पहले ही गोबर के छोटे-छोटे बल्ले (गुलरियां) बनाए जाते हैं, जिन्हें धूप में सुखाकर रस्सी में पिरोया जाता है। इनकी सात मालाएं बनती हैं, जिनमें से एक बड़ी होलिका में समर्पित कर दी जाती है, जबकि बाकी घर की रक्षा के लिए रखी जाती हैं।