इस्लाम धर्म में रमजान का महीना विशेष और पाक यानी पवित्र माना जाता है। रमजान इस्लामी कैलेंडर का 9वां महीना होता है। इसी महीने में ईद-उल-फितर मनाई जाती है। रमजान के 30 दिनों में हर मुसमान रोजा रखता है, लेकिन रमाजन सिर्फ भूख प्यास को काबू करने का महीना नहीं है। इस्लामिक मान्यता है कि रमजान रूह यानी आत्मा को पाक करने और अल्लाह के करीब जाने का महीना है। इस पूरे महीने मुसलमान अल्लाह की इबादत करते हैं। इसके साथ ही अल्लाह से अपने गुनाहों की मगफिरत की दुआ करते हैं। लेकिन इस साल रमजान का पहला रोजा कब रखा जाएगा। चलिए इस बारे में बताते हैं।
बता दें कि रमजान के पहले रोजे की तारीख चांद के दिखने पर निर्भर करती है। अगर भारत में रमजान का चांद 28 फरवरी को दिखता है तो पहला रोजा 1 मार्च को होगा। अगर नहीं तो रोजा की शुरुआत 2 मार्च से होगी। वैसे ज्यादातर विद्वान पहला रोजा 2 मार्च को पड़ने की उम्मीद जता रहे हैं। वहीं कुछ लोग कह रहे हैं कि 1 मार्च से शुरुआत होगी।
रमजान अरबी का शब्द और इस्लामिक महीना है। यह महीना रोजे के लिए खास होता है। रोजे को अरबी भाषा में सौम कहा जाता है। सौम का मतलब रुकना, ठहरना यानी खुद पर नियंत्रण या काबू करना होता है। फारसी में उपवास को रोजा कहते हैं। भारत के मुस्लिम समुदाय पर फारसी का प्रभाव ज्यादा होने की वजह से उपवास को फारसी शब्द ही उपयोग किया जाता है।
सउदी अरब में कब से है रमजान?
सऊदी अरब के स्थानीय मीडिया ने बताया, सऊदी में नागरिकों और निवासियों से कहा गया है कि वे 28 फरवरी को चांद देखें। इसके मुताबिक, वहां रमजान 1 मार्च से शुरू हो जाएगा। आमतौर पर चांद सबसे पहले सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और कुछ पश्चिमी देशों में देखा जाता है। भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और अन्य दक्षिण एशियाई देशों में एक दिन बाद चांद दिखाई देता है। ऐसे में भारत में रमजान के महीने की शुरुआत 2 मार्च से हो सकती है।
रमजान में रोजा कैसे रखें?
रमजान में मुस्लिम लोग रोजा रखकर अल्लाह की इबादत करते हैं। रोजा के समय सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक कुछ भी नहीं खाया पिया जाता है। सुबह सहरी के साथ रोजे की शुरुआत की जाती है। सहरी सूर्योदय से पहले किए जाने वाले भोजन को कहते हैं। वहीं जब शाम में रोजा खोला जाता है तो उसे इफ्तारी कहते हैं। रमजान में रोजा रखने के अलावा पांच वक्त की नमाज अदा की जाती है। इसके अलावा इस महीने में जकात देना भी जरूरी माना जाता है।
इन लोगों को रोजा नहीं रखने की मिली है छूट
इस्लाम को मानने वाले सभी महिला और पुरुषों को रोजा रखना जरूरी है। सिर्फ उन्हें छूट दी गई है जो बीमार हैं या यात्रा पर हैं। इसके अलावा जो औरतें प्रेग्नेंट हैं या फिर पीरियड्स से हैं और साथ ही बच्चों को रोजा रखने से छूट दी गई है। हालांकि, पीरियड्स के दौरान जितने रोजे छूटेंगे, उतने ही रोजे उन्हें बाद में रखने होते हैं। वहीं, बीमारी के दौरान रोजा रखने की छूट है।
खजूर से ही क्यों खोला जाता है रोजा?
इस्लाम में खजूर से रोजा खोलने को सुन्नत माना गया है। इस्लाम में मान्यता है कि पैगंबर हजरत मोहम्मद को खजूर काफी पसंद था। वे रोजा खोलते वक्त इसे खाते थे। बाद में ये परंपरा बन गई, जो आज तक बदस्तूर कायम है। धार्मिक मान्यता के साथ ही खजूर को स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद माना गया है। कहते हैं कि खजूर में प्राकृतिक ऊर्जा होती है, जो रोजे के दौरान शरीर को ऊर्जा देने का काम करती है।