Budget 2023: यूनियन बजट 2023 (Union Budget 2023) पेश होने में ज्यादा समय नहीं बचा है। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले यह केंद्र की मोदी सरकार के लिए एक बड़ा इम्तिहान होगा। 2019 के लोकसभा चुनावों में भारी जीत के साथ सत्ता में लौटी मोदी सरकार का दूसरा कार्यकाल अगले साल खत्म होने जा रहा है। सरकार पर अपनी वित्तीय स्थिति मजबूत करने का दबाव है ताकि जी 20 देशों के अध्यक्ष के रूप में वह दुनिया के सामने खुद को आर्थिक रूप से ताकतवर देश के रूप में पेश कर सके। फाइनेंशियल ईयर 2020-21 में सरकार का फिस्कल डेफिसिट बढ़कर 9.2 फीसदी की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया था। एशिया की इस तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी के लिए फिस्कल डेफिसिट में कमी करना जरूरी है। इसे अपनी क्रेडिट रेटिंग में सुधार करने की भी कोशिश करनी होगी, जो सबसे निचले इनवेस्टमेंट ग्रेड में पहुंच गई है।
बजट में नहीं होंगे लोकलुभावन प्रस्ताव
सरकार ने हाल में अपने फूड प्रोग्राम में बदलाव किया था। उसने सब्सिडी में भी कमी करने के लिए कदम उठाए हैं। इससे करीब 1 लाख करोड़ रुपये की बचत होगी। इस महीने ब्लूमबर्ग के एक सर्वे से पता चला था कि यूनियन बजट 2023 में लोकलुभावन प्रस्ताव शामिल नहीं होंगे। सर्वे में शामिल 20 इकोनॉमिस्ट्स की राय थी कि सरकार इसकी जगह मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने और नौकरियों के मौके बढ़ाने पर फोकस करेगी।
बुनियादी सुविधाओं पर खर्च बढ़ाएगी सरकार
लंबी अवधि में इंडियन इकोनॉमी की तेज ग्रोथ के लिए बेकार के खर्चों पर रोक लगाना जरूरी है। इससे सरकार के पास सड़क, बंदरगाह जैसी बुनियादी सुविधाओं पर निवेश बढ़ाने के लिए पैसे होंगे। सरकार इंडिया को दुनिया की महाशक्ति बनाना चाहती है। वह इस फाइनेंशियल ईयर में फिस्कल डेफिसिट 6.4 फीसदी के तय लक्ष्य के अंदर रखना चाहती है।
सब्सिडी खर्च लगातार घटा रही सरकार
केंद्र में 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद के बजटों को देखने से पता चलता है कि सरकार सब्सिडी पर खर्च घटाने की कोशिश करती आ रही है। सिर्फ कोरोना की महामारी के दौरान सरकार ने सब्सिडी पर खर्च बढ़ाया था। सरकार अपनी वित्तीय स्थिति ठीक करने की लगातार कोशिश कर रही है। इस फाइनेंशियल ईयर में रसोई गैस पर सब्सिडी के लिए आवंटन घटाकर 58.1 अरब रुपये कर दिया गया था। दो साल पहले यह 352 अरब रुपये था।
फिस्कल डेफिसिट घटाना आसान नहीं है
दिल्ली की रहने वाली 37 साल की नुपूर कौशिक ने कहा, "हमारे ऊपर सबसे ज्यादा मार महंगी रसोई गैस की पड़ रही है।" उनका कहना है कि सरकार को कामकाजी महिलाओं पर टैक्स का बोझ कम करना चाहिए। HSBC Holdings के चीफ इंडिया इकोनॉमिस्ट प्रांजुल भंडारी ने कहा कि फिस्कल कंसॉलिडेशन के लिए सरकार को बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। उन्होंने कहा, ''आप इसे लंबी दूरी की साइकिल रेस कह सकते हैं जिसमें फिनिश लाइन तक पहुंचने के लिए लगातार पैडल मारना जरूरी होता है।''