जोमैटो ने हाल में अपने टॉप एग्जिक्यूटिव्स को 3,780 करोड़ रुपये के ईसॉप्स देने का ऐलान किया। इनमें कंपनी के फाउंडर दीपिंदर गोयल शामिल हैं। कंपनी के इस कदम पर नई बहस शुरू हो गई है। सवाल है कि क्या स्टार्टअप्स के फाउंडर्स को ईसॉप्स मिलने चाहिए? इससे पहले पेटीएम और पीबी फिनटेक में भी ऐसा देखने को मिला था। दोनों ने अपने प्रमोटर्स को ईसॉप्स दिए थे। पीबी फिनेटक पॉलिसीबाजार डॉट कॉम की पेरेंट कंपनी है। आइए जानते हैं ईसॉप्स से जुड़े नियम क्या हैं और इस बारे में मॉइनरिटी इनवेस्टर्स की चिंता क्या है।
SEBI का नियम क्या कहता है?
SEBI के नियमों के मुताबिक, प्रमोटर्स को स्टॉक ऑप्शंस (Esops) का हकदार नहीं माना जाता है। हालांकि, कुछ नए स्टार्टअप्स (Startups) ने कंपनी लिस्ट कराने से पहले शेयरहोल्डिंग स्ट्रक्चर में बदलाव कर देते हैं। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि स्टार्टअप्स के फाउंडर्स प्रमोटर्स की सेबी की परिभाषा से दायरे में नहीं आए। ऐसा करने के लिए कंपनी यह घोषित करती है कि उसका संचालन प्रोफेशनल मैनेजमेंट के हाथ में है और कोई एक प्रमुख प्रमोटर नहीं है। इसके बाद फाउंडर्स सामान्य शेयरहोल्डर बन जाते हैं, जिससे वे ईसॉप्स के हकदार हो जाते हैं।
वोटिंग के दौरान ईसॉप्स एलॉटमेंट पर शेयरहोल्डर्स की करीबी नजर रहती है। नए ईसॉप्स क्रिएशन से कंपनी की कुल कैपिटल बढ़ जाती है। इससे मौजूदा शेयरहोल्डर्स की हिस्सेदारी की वैल्यू घट जाती है। इससे पहले प्रॉक्सी एडवायजरी फर्मों ने शेयरहोल्डर्स को ईसॉप्स के प्रस्ताव के खिलाफ वोट करने की सलाह दी थी। इसकी वजह यह है कि ईसॉप्स दूसरे शेयरहोल्डर्स की कीमत पर फाउंडर्स को अमीर बनाता है।
प्रॉक्सी एडवायजरी फर्म इनगॉवर्न के फाउंडर श्रीराम सुब्रमण्यन ने व्यापक दायरे वाले ईसॉप्स प्रोग्राम पर जोर दिया, जिसमें कई एग्जिक्यूटिव्स शामिल होने चाहिए न कि सिर्फ फाउंडर्स। इसके अलावा ईसॉप्स एग्जिक्यूटिव्स के प्रदर्शन के आधार पर दिए जाने चाहिए।
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क्या स्टार्टअप के फाउंडर्स को खुद को प्रमोटर की कैटेगरी में रखना चाहिए?
SEBI की प्रमोटर की परिभाषा कंपनी के कंट्रोल पर आधारित है। लिस्टेड स्टार्टअप्स के मामले में फाउंडर्स आम तौर पर अपनी हिस्सेदारी घटाकर 10 फीसदी से कम कर देते हैं ताकि वह कंपनी को प्रोफेशनल मैनेज्ड कंपनी बता सकें। हालांकि, अब भी कई फाउंडर्स दूसरे तरीकों से कंपनी का कंट्रोल अपने हाथ में बनाए रखते हैं। इसमें बोर्ड मेंबर्स अप्वाइंट करने का अधिकार या कंपनी में एफरमेटिव/वीटो राइट्स शामिल हैं। कानून के जानकारों का कहना है कि कंपनी पर इस तरह नियंत्रण रखने वाले फाउंडर्स को सेबी की परिभाषा में प्रमोटर्स माना जाना चाहिए।