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कड़े होने वाले हैं कंपनियों में फॉरेन ओनरशिप के नियम, बन सकती है एक नई कैटेगरी

भारत अपने विदेशी निवेश कानूनों को सरल बनाने और उनमें किसी भी प्रकार की खामी को दूर करने के लिए उनका रिव्यू कर रहा है। नियमों में बदलावों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विदेशी निवेशक भारत की FDI पॉलिसी की मंशा को नजरअंदाज न कर सकें

अपडेटेड May 19, 2025 पर 7:29 PM
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कहा जा रहा है कि चर्चाएं लगभग अंतिम रूप लेने वाली हैं।

भारत कंपनियों के लिए विदेशी मालिकाना हक यानि फॉरेन ओनरशिप नियमों को कड़ा करने की योजना बना रहा है। इसका ई-कॉमर्स से लेकर फार्मास्यूटिकल्स तक के कारोबारों पर बड़ा असर पड़ सकता है। यह बात रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कही गई है। ये बदलाव डायरेक्ट या इनडायरेक्ट तरीके से फॉरेन ओनरशिप वाली कंपनियों को शेयर ट्रांसफर या रीस्ट्रक्चरिंग के मामले में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) रेगुलेशंस के अधीन बनाएंगे।

रॉयटर्स के मुताबिक, सूत्रों का कहना है कि चर्चाएं लगभग अंतिम रूप लेने वाली हैं। भारत अपने विदेशी निवेश कानूनों को सरल बनाने और उनमें किसी भी प्रकार की खामी को दूर करने के लिए उनका रिव्यू कर रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत 'फॉरेन ओन्ड एंड कंट्रोल्ड एंटिटीज' (FOCE) की एक नई कैटेगरी बनाने की योजना बना रहा है, जिसमें 'अप्रत्यक्ष विदेशी निवेश' वाली भारतीय कंपनियां भी शामिल होंगी। अगर नियम में बदलाव लागू किया जाता है तो डोमेस्टिक रीस्ट्रक्चरिंग या इंटर्नल ट्रांसफर भी विदेशी स्वामित्व वाली कंपनियों के लिए FDI दायित्वों को बढ़ा सकता है।

क्या रहेगी FOCE की परिभाषा


FOCE को ऐसी भारतीय कंपनी या इनवेस्टमेंट फंड के रूप में परिभाषित किया जाएगा, जिनका कंट्रोल भारत के बाहर के निवासियों के पास है। इनडायरेक्ट ओनरशिप को कवर करने के साथ-साथ, यह स्ट्रक्चर या मालिकाना हक में बदलाव के मामले में डायरेक्ट ओनरशिप वाली विदेशी फर्म्स को भी FDI नियमों के तहत ले आएगा।

इनडायरेक्ट शेयरहोल्डिंग के किसी भी ट्रांसफर की सूचना देना जरूरी होगा और क्षेत्रीय विदेशी निवेश सीमा का अनुपालन करना होगा। ऐसे लेनदेन भी फेयर मार्केट वैल्यू पर करने होंगे। रॉयटर्स के मुताबिक, सूत्रों का कहना है कि नियमों में इन बदलावों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विदेशी निवेशक भारत की FDI पॉलिसी की मंशा को नजरअंदाज न कर सकें।

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