सरकारी बैंकों के अगले मर्जर में दूर करनी होंगी ये खामियां, पूर्व बैंक अधिकारियों ने दी चेतावनी
मर्जर के पहले दौर में छोटे और कमजोर बैंकों का बड़े बैंकों में विलय हुआ था। लेकिन अब, छोटे बैंक धीरे-धीरे मजबूत हैं। उदाहरण के तौर पर बैंक ऑफ महाराष्ट्र जैसे छोटे बैंकों ने पिछले 5 सालों में लगभग 200% की ग्रोथ की है। ऐसे में यह चिंता उठ रही हैं कि कहीं इन बैंकों का मर्जर ऐसे बैंकों में न कर दिया जाएगा, जिनकी ग्रोथ उनके मुकाबले धीमी है
सरकार मर्जर के जरिए भारतीय बैंकों को दुनिया की बड़ी ग्लोबल बैंकों के समकक्ष खड़ा करना चाहती है
सरकारी बैंकों (PSB) में मर्जर के एक और बड़े दौर की चर्चा जोरों पर हैं। सरकार ने भी हाल ही में ऐसे कुछ संकेत दिए हैं। इस संभावित मर्जर को लेकर हमारे सहयोगी CNBC-TV18 ने कुछ पूर्व बैंकरों से बातचीत है। इनमें RBI के पूर्व डिप्टी गवर्नर और बैंक ऑफ बड़ौदा के पूर्व सीएमडी एसएस मुंद्रा, SBI के पूर्व चेयरमैन दिनेश कुमार खारा, इंडियन बैंक की पूर्व MD पद्मजा चुंडुरु और PNB के पूर्व एमडी सुनील मेहता शामिल हैं।
चारों दिग्गजों का मानना है कि अगला मर्जर सिर्फ बैंकों का साइज बढ़ाने का तरीका नहीं होना चाहिए, बल्कि इसमें वर्क कल्चर, पूंजी (कैपिटल), और वास्तविक तालमेल पर भी फोकस करना चाहिए।
मर्जर के पहले दौर में छोटे और कमजोर बैंकों का बड़े बैंकों में विलय हुआ था। ऐसे में शेयरधारकों में अधिक नाराजगी नहीं थी। लेकिन अब, छोटे बैंक धीरे-धीरे मजबूत हैं। उदाहरण के तौर पर बैंक ऑफ महाराष्ट्र जैसे छोटे बैंकों ने पिछले 5 सालों में लगभग 200% की ग्रोथ की है। ऐसे में यह चिंता उठ रही हैं कि कहीं इन बैंकों का मर्जर ऐसे बैंकों में न कर दिया जाएगा, जिनकी ग्रोथ उनके मुकाबले धीमी है।
एसएस मुंद्रा से पूछा गया कि क्या आपको लगता है कि जब सरकार भविष्य में बैंकों के मर्जर की योजना बनाएगी, तो वह इन बातों को ध्यान में रखेगी? इस पर मुंद्रा ने कहा कि जिन बैंकों की बात हो रही है, उनमें सरकार अभी भी बहुमत शेयरधारक है। इसलिए वह शेयरधारकों के हितों को नजरअंदाज नहीं करेगी।
उन्होंने कहा, “पिछले मर्जर सफल रहे हैं। कुछ शॉर्ट-टर्म चुनौतियां थीं, लेकिन लॉन्ग-टर्म में लाभ मिला। तकनीकी और बाकी इंटीग्रेशन तो हो गए, लेकिन मैं जितना समझता हूं और सहयोगियों से सुनता हूं, वर्क कल्चर का तालमेल आज भी सबसे बड़ी चुनौती है। और जब कल्चर पूरी तरह मेल नहीं खाती, तो बैंक अपनी पूरी क्षमता तक नहीं पहुंच पाते।”
मुंद्रा ने यह भी याद दिलाया कि देश के टॉप-5 प्राइवेट बैंकों का कुल मार्केट कैप अभी भी सभी सरकारी बैंकों के कुल मार्केट कैप से अधिक है, जो आगे सुधार की जरूरत दिखाता है।
क्या बड़े बैंकों का आपस में मर्जर होगा?
सरकार भारतीय बैंकों को दुनिया की बड़ी ग्लोबल बैंकों के समकक्ष खड़ा करना चाहती है। इस पर दिनेश खारा का कहना है कि दुनिया के सबसे बड़े बैंक $7 ट्रिलियन (चीन) और $4 ट्रिलियन (जेपी मॉर्गन) के बराबर हैं, इसलिए सिर्फ आकार बढ़ाने से कुछ नहीं होगा।
खारा ने कहा, “मर्जर वहीं होना चाहिए जहां सिनर्जी मिले और ग्रोथ लीवर मजबूत हों। पूंजी, तकनीक, कौशल और रिस्क मैनेजमेंट, जब ये सभी चीजें साथ आएंगी तभी मर्जर सफल होगा।” वे कहते हैं कि जिन बैंकों के पास पूंजी अधिक है, उन्हें उन बैंकों के साथ जोड़ा जा सकता है जिनके पास कम कैपिटल है, ताकि बेहतर रिस्क-टेकिंग क्षमता पैदा हो सके।
क्या SBI भविष्य में मर्जर से बाहर रहेगा?
इस पर खारा ने कहा कि SBI को “कानूनी रूप से अलग” मानना गलत होगा। वे कहते हैं कि “पिछली बार भारतीय महिला बैंक और SBI के सहयोगी बैंकों का सफल मर्जर इसका उदाहरण है। सवाल यह नहीं कि किसे मर्ज किया जा सकता है, बल्कि यह है कि मर्जर से क्या हासिल होगा।”
मर्जर भौगोलिक हो या सांस्कृतिक?
पंजाब नेशनल बैंक के पूर्व एमडी सुनील मेहता का कहना है कि मर्जर केवल बैलेंस शीट को जोड़ने भर का काम नहीं है। राष्ट्रीय महत्व की वित्तीय संरचना तैयार करना लक्ष्य होना चाहिए।
उनके मुताबिक, “पिछले दौर में मर्जर का आधार टेक्नोलॉजी था। लेकिन अब उसके आगे जाकर पूंजी, लाभ, दक्षता और रणनीतिक मूल्य बढ़ाने पर ध्यान देना होगा।”
क्या वर्क कल्चर का अंतर मर्जर को प्रभावित करता है?
इंडियन बैंक की पूर्व एमडी पद्मजा चुंडुरु, जिन्होंने इंडियन बैंक और इलाहाबाद बैंक के मर्जर का नेतृत्व किया, कहती हैं “हां, वर्क कल्चर का अंतर चुनौती होते हैं, लेकिन सही संवाद, पारदर्शिता, और ‘मर्जर ऑफ इक्वल्स’ वाली सोच से इन्हें आसानी से संभाला जा सकता है। लोगों का सम्मान और ईमानदार कम्युनिकेशन सफलता की कुंजी है।”
क्या बैंक राष्ट्रीयकरण कानून खत्म होना चाहिए?
कई एक्सपर्ट्स के अनुसार, अगर सभी PSU बैंक कंपनी एक्ट के तहत आएंगे, तो बोर्ड अधिक स्वतंत्र होंगे, और मर्जर का फैसला कमर्शियल आधार पर होंगे। इस पर मुंद्रा ने कहा: “यह मुद्दा पहले भी उठ चुका है। सरकार भी इस दिशा में सोच रही है। 49% तक निजी हिस्सेदारी लाए बिना भी नियंत्रण सरकार के पास रह सकता है, इसलिए सुधार संभव हैं।”
मुंद्रा ने अंत में कहा, “स्केल ही सबकुछ नहीं है। तकनीक, ग्राहक सेवा, इनोवेशन और ब्रांच नेटवर्क, ये बैंक की असली ताकत बनेंगे। मर्जर का डिजाइन तभी सफल होगा जब रेगुलेशन भी साथ-साथ मजबूत किया जाए।”
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