इस महीने की शुरुआत में रतन टाटा के निधन के बाद उनके सौतेले भाई नोएल टाटा को टाटा ट्रस्ट्स का चेयरमैन नियुक्त किया गया था। इससे यह संकेत मिला था कि अब टाटा समूह की कमान नोएल टाटा के हाथ में आ जाएगी। लेकिन, नोएल टाटा कभी टाटा संस के चेयरमैन नहीं बन सकते। टाटा संस टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी है। इस समूह की एक दर्जन से ज्यादा कंपनियों का नियंत्रण टाटा संस के पास है। ऐसा पहली बार नहीं है कि नोएल टाटा के टाटा संस का चेयरमैन बनने के रास्ता में रोड़ा आ गया है। ऐसी ही स्थिति करीब 13 साल पहले पैदा हुई थी, जब वह टाटा संस का चेयरमैन बनते-बनते रह गए थे।
पहले भी नोएट टाटा संस का चेयरमैन बनते-बनते रह गए थे
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, रतन टाटा (Ratan Tata) के इस्तीफे के बाद नोएल टाटा (Noel Tata) के टाटा संस का चेयरमैन बनने की चर्चा शुरू हुई थी। लेकिन, यह जिम्मेदारी साइरस मिस्त्री को मिल गई थी, जो नोएल की पत्नी के भाई हैं। दोबारा जब नोएल टाटा को सर रतन टाटा ट्रस्ट का ट्रस्टी नियुक्त किया गया था तब भी उन्हें टाटा संस का चेयरमैन नियुक्त किए जाने की चर्चा शुरू हुई थी। फिर, 2022 में उन्हें सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट का ट्रस्टी नियुक्त किया गया, लेकिन उन्हें टाटा संस का चेयरमैन नहीं बनाया गया।
रतन टाटा ने साल 2022 में बनाया था यह नियम
दरअसल, 2022 में रतन टाटा की अगुवाई में टाटा ग्रुप ने एक नियम बनाया था। इसका मकसद हितों का टकराव रोकना था। इसमें कहा गया था कि कोई व्यक्ति एक साथ टाटा ट्रस्ट्स और टाटा संस का चेयरमैन नहीं हो सकता। चूंकि, अभी नोएल टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमैन हैं, जिससे उन्हें टाटा संस का चेयरमैन नियुक्त नहीं किया जा सकता। ध्यान देने वाली बात है कि रतन टाटा टाटा परिवार के आखिरी व्यक्ति थे जिनके पास एक साथ यह दोनों जिम्मेदारियां थीं।
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टाटा संस है टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी
टाटा संस चूंकि टाटा समूह की कंपनियों की होल्डिंग कंपनी है, जिससे सभी कंपनियों में इसकी बड़ी हिस्सेदारी है। टाटा ट्रस्ट्स की टाटा संस में 66 फीसदी हिस्सेदारी है। इसका मतलब है कि टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमैन के पास एक तरह से इस समूह का नियंत्रण होता है। लेकिन, टाटा समूह की कंपनियों पर सीधा नियंत्रण टाटा संस के चेयरमैन के पास होता है। इस वजह से रतन टाटा ने यह नियम बनाया था कि कोई व्यक्ति एक ही समय टाटा ट्रस्ट्स और टाटा संस का चेयरमैन नहीं हो सकता।