यूनियन कैबिनेट में नेशनल क्वांटम मिशन (NQM) को मंजूरी दे दी है। यह मिशन 6,003.65 करोड़ रुपये का है। इस मिशन के तहत क्वांटम टेक्नोलॉजी से जुड़े रिसर्च और डेवलपमेंट पर फोकस होगा। इस मिशन के तहत कई टारगेट होंगे, जिन्हें अगले 8 साल में हासिल हो जाने की उम्मीद है। क्वांटम टेक्नोलॉजी फिजिक्स और इंजीनियरिंग से जुड़ा एक फील्ड है। इसमें क्वांटम मेकानिक्स के सिद्धांत के इस्तेमाल से नई टेक्नोलॉजी विकसित की जाती है। क्वांटम मेकानिक्स फिजिक्स का एक ब्रांच है। इसमें बहुत सूक्षम स्तर पर मैटर और एनर्जी के विहेबियर का एनालिसिस होता है।
क्वांटम थ्योरी का इस्तेमाल
क्वांटम मेकानिक्स के सिद्धांतों का इस्तेमाल सेमीकंडक्टर्स, लेजर्स, ब्लू-रे, ट्रांजिस्टर्स, मोबाइल फोन, यूएसबी ड्राइव, एमआरआई, इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप्स और यहां तक कि बेसिक लाइट स्विच तक में होता है। क्लासिकल कंप्यूटर्स ट्रांजिस्टर आधारित होते है। लेकिन, क्वांटम कंप्यूटर्स एटम्स पर काम करेंगे। इनमें कैलकुलेशन के लिए क्लासिकिल बिट्स की जगह क्वांटम बिट्स का इस्तेमाल होते हैं। क्वांटम कंप्यूटिंग का एक फायदा यह है कि इससे प्रॉब्लम को बहुत जल्द सॉल्व किया जा सकता है।
इंडिया में क्वांटम मिशन की शुरुआत 2018 में हो गई थी। तब डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में ने क्वांटम कंप्यूटिंग से जुड़े एक प्रोजेक्ट का प्रस्ताव पेश किया था। QuEST (Quantum-Enabled Science and Technology) डिपार्टमेंट के इंटरडिसिप्लनरी साइबर फिजिकल सिस्टम्स डिविजन के तहत आता है। जनवरी 2019 में QuEST प्रोग्राम की पहली बैठक हैदराबाद में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी में हुई थी। इसमें करीब 50 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था, जिनमें से अधिकतर का नाता क्वांटम फिजिक्स से था।
इकोनॉमिक ग्रोथ को बढ़ावा मिलेगा
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 2020 के यूनियन बजट में कहा था कि इंडिया QuEST प्रोग्राम में अगले पांच साल में 8,000 करोड़ रुपये का निवेश करेगा। इस मिशन की मदद से इंडिया क्वांटम टेक्नोलॉजी सेक्टर के प्रमुख देशों में शामिल होगा। इससे इकोनॉमिक ग्रोथ को बढ़ावा मिलेगा। साइंस और टेक्नोलॉजी जितेंद्र सिंह ने कहा कि इंडिया इस फील्ड में बड़ी कामयाबी हासिल करने जा रहा है।
अमेरिका भी अभी R&D के चरण में है
नए मिशन के तहत मध्यम स्केल के क्वांटम कंप्यूचर्स तैयार किए जाएंगे। इन्हें 8 साल में तैयार किया जाएगा। इसमें 50-1000 फिजिकल क्यूबिट्स का इस्तेमाल होगा। अमेरिका, चीन, फ्रांस, ऑस्ट्रिया और फिनलैंड जैसे देश अभी रिसर्च और डेवलपमेंट के चरण में हैं। अभी वे इस टेक्नोलॉजी के अप्लिकेशन के लेवल तक नहीं पहुंचे हैं।