माइनिंग सेक्टर की दिग्गज कंपनी वेदांता (Vedanta) ने बुधवार 8 जून को बताया कि उसने 8,000 करोड़ का एक टर्म लोन जुटाने के लिए अपनी सब्सिडियरी हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (HZL) का 5.8 फीसदी हिस्सेदारी गिरवी रखा है। बता दें कि करीब 10 महीने पहले भी वेदांता ने 10,000 करोड़ रुपये के एक टर्म लोन के लिए हिंदुस्तान जिंक की 14.82 फीसदी हिस्सेदारी गिरवी रखी थी।
कंपनी ने शेयर बाजारों को भेजी एक सूचना में बताया कि इससे पहले अगस्त 2021 में 10,000 करोड़ रुपये जुटाने के लिए गिरखी रखी गई हिस्सेदारी को रिलीज कर दिया गया है। बता दें कि वेदांता ग्रुप के पास Hindustan Zinc की करीब 64.9 फीसदी हिस्सेदारी है।
बता दें कि हिंदुस्तान जिंक 2002 तक भारत सरकार के स्वामित्व वाली कंपनी थी। अप्रैल, 2002 में सरकार ने हिंदुस्तान जिंक में अपनी 26 प्रतिशत हिस्सेदारी वेदांता ग्रुप की कंपनी स्टरलाइट को 445 करोड़ रुपये में बेची थी। इससे वेदांता समूह के पास कंपनी का प्रबंधन नियंत्रण आ गया था। एक साल बाद सरकार से कंपनी की 18.92 प्रतिशत और हिस्सेदारी वेंदाता ग्रुप को बेच दी। इन दो लेनदेन में सरकार को 769 करोड़ रुपये प्राप्त हुए थे।
सरकार बेचना चाहती है पूरी हिस्सेदारी
भारत सरकार ने हाल ही में हिंदुस्तान जिंक में बची अपनी बाकी 29.58 प्रतिशत हिस्सेदारी को बेचने को भी मंजूरी दी है। सरकार को उम्मीद है कि इस बिक्री से उसे करीब 38,000 करोड़ रुपये मिल सकते हैं। इस कदम से सरकार को मौजूदा वित्त वर्ष में अपने विनिवेश लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी। सरकार ने मौजूदा वित्त वर्ष में सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश और रणनीतिक बिक्री से 65,000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है।
हालांकि वेदांता ग्रुप के चेयरमैन अनिल अग्रवाल का कहना है कि उनकी कंपनी हिंदुस्तान जिंक में सरकार की शेष हिस्सेदारी में से सिर्फ 5 फीसदी हिस्सेदारी ही और खरीद सकती है। अग्रवाल ने कहा, "हम खरीदार नहीं है, यह हिस्सेदारी मार्केट में बिक्री के लिए रखी जाएगी और मार्केट इसे खरीदेगा। हम हिंदुस्तान जिंक की बाकी हिस्सेदारी में से 5 फीसदी से अधिक नहीं खरीद सकते हैं।"