ऑयल की कीमतों का अंदाजा लगाना मुश्किल है। एनालिस्ट्स का मानना है कि ऑयल की कीमतों पर कई चीजों का असर पड़ता है। इनमें डिमांड और सप्लाई की स्थिति, जियोपॉलिटिक्स, स्पेकुलेशन और टेरर शामिल हैं। अगर मार्केट साइज की बात करें तो फॉरेक्स यानी फॉरेक्स एक्सचेंज का मार्केट दुनिया में सबसे बड़ा है। उसके बाद कमोडिटी मार्केट का नंबर आता है। बॉन्ड्स मार्केट तीसरे पायदान पर है। अंतिम पायदान पर इक्विटी मार्केट्स है। ये सभी मार्केट्स आपस में कनेक्टेड हैं। एक मार्केट दूसरे मार्केट पर असर डालता है। इनवेस्टर्स इन मार्केट्स में मुनाफा कमाने के मौकों की तलाश में रहते हैं। ऐसे में हमारे लिए यह समझना और अंदाजा लगाना जरूरी हो जाता है कि किस एसेट क्लास में कीमतें चढ़ने या उतरने वाली हैं। इसलिए एक इनवेस्टर्स के लिए फाइनेंशियल मार्केट्स पर हर समय करीबी नजर रखना जरूरी है।
महंगे क्रूड का असर इनफ्लेशन से लेकर मैन्युफैक्चरिंग तक पर
इजरायल में हिंसा की शुरुआत 1973 में हुए योम किपुर (Yom Kippur) युद्ध की 50वीं वर्षगांठ के दिन शुरू हुई। हमास के हमलों में हुए नुकसान के साथ ही इस बात पर माथापच्ची हो रही है कि ऑयल की कीमतों का रुख क्या रहेगा। दरअसल, ऑयल की कीमतों का असर इनफ्लेशन, मैन्युफैक्चरिंग और यहां तक कि फूड प्राइसेज पर पड़ता है। हमास का दावा है कि उसे ईरान का समर्थन हासिल है। उधर, ईरान ने इससे इनकार किया है। लेकिन, इसमें संदेह नहीं कि ईरान हमास का समर्थन करता है। इधर, इजराइल के प्रधानमंत्री और लिकुड पार्टी के प्रमुख बेंजामिन नेतन्याहू को ईरान का धुर विरोधी माना जाता है।
ईरान का रुख तय करेगा लड़ाई की दिशा
अगर इजराइल की यह लड़ाई हमास और हिजबुल्ला तक सीमित रहती है तो इनवेस्टमेंट सेंटिमेंट को होने वाला नुकसान भी अस्थायी और सीमित होगा। लेकिन, अगर इजराइल ईरान के खिलाफ मोर्चा खोल देता है तो लड़ाई का दायरा बढ़ जाएगा। इसमें दूसरे देश भी शामिल हो जाएंगे, जिसका व्यापक असर ऑयल मार्केट्स पर पड़ेगा।
तेल की सप्लाई में रुकावट आने पर बढ़ेगी दिक्कत
हरमुज की खाड़ी संकरी है। इसके जरिए रोजाना 1.8-2.5 करोड़ बैरल ऑयल की ढुलाई होती है। यह ग्लोबल सप्लाई का करीब 22 फीसदी है। ऑयल के अलावा इस रास्ते से रोजाना 3.5 अरब घन फीट प्राकृतिक गैस का भी ट्रांसपोर्टेशन होता है। यह ग्लोबल सप्लाई का करीब 18 फीसदी है। अगर हरमुज की खाड़ी से ट्रांसपोर्टेशन रुक जाता है तो सप्लाई चेन पर बहुत खराब असर पड़ेगा। पहले कई मौकों पर ईरान हरमुज की खाड़ी से ट्रांसपोर्टेशन रोक देने की धमकी दे चुका है। इसका मतलब है कि ऑयल की ढुलाई करने वाले जहाजों को सुरक्षा की जरूरत पड़ेगी। इससे इंश्योरेंस कॉस्ट भी बढ़ जाएगी। इसका असर ऑयल की कीमतों पर पड़ेगा। इससे फाइनेंशियल मार्केट्स में सेंटिमेंट खराब हो सकता है।
ईरान की एंट्री पर दुनिया की नजरें
इसलिए इजराइल और हमास की लड़ाई में नजरें इस बात पर टिकी हैं कि इसमें ईरान की एंट्री होती है या नहीं। इतिहास बताता है कि गाजा और फिलिस्तीन इलाके में हुई लड़ाइयां लंबे समय तक जारी नहीं रही हैं। इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि यह रूस-यूक्रेन की तरह लंबे समय तक जारी नहीं रहेंगी। लेकिन, पक्के तौर पर यह नहीं कहा जा सकता, क्योंकि किसी लड़ाई के बारे में अनुमान लगाना मुश्किल काम है।
ऑयल की कीमतें 4 फीसदी उछलीं
शनिवार को इजराइल पर हमले के बाद से ऑयल की कीमत करीब 4 फीसदी उछल चुकी है। सोने और चांदी में करीब एक फीसदी की तेजी है। इक्विटी मार्केट्स में भी डर का माहौल है। यह स्वाभाविक है। इस बीच, OPEC ने एक बयान जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि ऑयल का अतिरिक्त स्टॉक उपलब्ध है। उसने यह भी कहा है कि अगर दुनिया में ऑयल की कमी होती है तो OPEC रिजर्व का इस्तेमाल करेगा। इससे मार्केट की चिंता दूर होगी।
इतिहास हमें बताता है कि ऑयल की कीमतें संवेदनशील होती हैं, लेकिन ये लचीली भी होती है। 2014 में ISIS अरबी नागिरकों के सिर धड़ से अलग करने के वीडियो अपलोड करता था। उसने इराक के मोसुल में ऑयल के कुओं पर कब्जा कर लिया था। तब हर वीडियो अपलोड होने के बाद ऑयल की कीमतें उछळ जाती थीं। लेकिन, धीरे-धीरे कीमतों ने अपना बेस बना लिया और ये सामान्य लेवल पर आ गईं। इसलिए अगर ईरान इस युद्ध में शामिल नहीं होता है तो ऑयल की कीमतें धीरे-धीरे सामान्य लेवल पर आ जाएंगी।