देश में ड्राई फ्रूट्स की मांग बढ़ी है । बाजार करीब 7% के CAGR की दर से बढ़ रहा है। 2029 तक 1270 करोड़ डॉलर का मार्केट होने की उम्मीद है। 2023 में 285 करोड़ डॉलर के ड्राई फ्रूट्स का इंपोर्ट हुआ। काजू और बादाम का सबसे ज्यादा इंपोर्ट हुआ।
देश में ड्राई फ्रूट्स की मांग बढ़ी है । बाजार करीब 7% के CAGR की दर से बढ़ रहा है। 2029 तक 1270 करोड़ डॉलर का मार्केट होने की उम्मीद है। 2023 में 285 करोड़ डॉलर के ड्राई फ्रूट्स का इंपोर्ट हुआ। काजू और बादाम का सबसे ज्यादा इंपोर्ट हुआ।
देश में सबसे ज्यादा काजू का इंपोर्ट होता है। कुल इंपोर्ट में काजू की करीब 50% हिस्सेदारी है। 2024 में काजू का $2.40 बिलियन का बाजार रहा जबकि 2029 तक काजू का बाजार $2.90 बिलियन का होगा। काजू का बाजार सालाना करीब 4% की दर से बढ़ रहा है।
भारत का ड्राई फ्रूट्स इंपोर्ट पर नजर डालें तो काजू की हिस्सेदारी 47 फीसदी, बादाम की हिस्सेदारी 36 फीसदी, पिस्ता की हिस्सेदारी 5 फीसदी, अखरोट की हिस्सेदारी 2 फीसदी और अन्य ड्राई फ्रूट्स की हिस्सेदारी 5 फीसदी है। भारत का ड्राई फ्रूट्स बाजार पर नजर डालें तो 10 फीसदी हिस्सेदारी ऑर्गेनिक खेती की होती है जबकि 60 फीसदी हिस्सेदारी अन-ऑर्गेनिक होती है।
अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ईरान, अफगानिस्तान और सीरिया इन देशों से बादाम का इंपोर्ट होता है। बादाम का ग्लोबल उत्पादन पर नजर डालें तो अमेरिका से ग्लोबल बादाम का उत्पादन 77 फीसदी, ऑस्ट्रेलिया में 9 फीसदी, स्पेन में 4 फीसदी, चीन में 1 फीसदी और तुर्किए से बादाम का ग्लोबल उत्पादन 1 फीसदी हिस्सेदारी है।
भारत, साउथ अफ्रीका काजू का बड़ा उत्पादक देश है। जबकि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया बादाम का बड़ा उत्पादक देश है। जबकि भारत किशमिश का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। वहीं भारत, चिली, अमेरिका अखरोट का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। जबकि ईरान, अफगानिस्तान पिस्ता का सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
कैसा रहेगा आगे ड्राई फूट्स बाजार
Bolas Agro Private Limited के एमडी राहुल कामथ का कहना है कि कोविड के बाद से लोगों में हेल्थ को लेकर काफी जागरुकता आई है। जिसके बाद से हर एक ड्राई फूट्स का डिमांड बढ़ता जा रहा है। युवा पीढ़ी ड्राई फूट्स को फैशन की तर्ज पर ले रहे हैं। काजू के दाम 700-750 रुपये के रेंज में नजर आ रहा है। विटर डिमांड और शादियों के सीजन काजू के लिए काफी बड़ी सीजन होता है। काजू का भारत में 3 लाख से 3.5 लाख टन कंज्मशन है। अगले 5 सालों में यह कंज्मशन बढ़कर 5 लाख से 5.5 लाख टन तक जा सकता है।
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