Seed Bill 2025: सरकार अगले बजट सत्र में सीज बिल 2025 लाने की योजना कर रही है। इसी संबंध में मसौदा जारी कर दिया गया है। जिस पर लोगों से 11 दिसंबर तक राय भी मांग गई है। मसौदा फिलहाल कृषि मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया है। यह नया विधेयक सीधे तौर पर किसानों, बीज कंपनियों, सप्लायर्स, लाइसेंसधारकों और कृषि क्षेत्र में काम करने वाले सभी लोगों को प्रभावित करेगा।
सरकार का उद्देश्य है कि मौजूदा कृषि व्यवस्था और आधुनिक तकनीकों के हिसाब से बीज कानूनों को अपडेट किया जाए ताकि किसान नुकसान से बचें और उनके लिए बाजार अधिक पारदर्शी बने।
नए विधेयक की घोषणा के साथ ही यह साफ हो गया है कि जल्द ही देश में बीज क्षेत्र से जुड़े दो बेहद पुराने कानून (Seeds Act 1966 और Seeds (कंट्रोल) ऑर्डर 1983)की जगह लेगा। मसौदा विधेयक का सबसे बड़ा लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि बाज़ार में बिकने वाले हर बीज की गुणवत्ता तय मानकों के अनुसार हो। अगर किसी किसान को खराब बीज मिलता है जिससे उसकी खेती खराब होती है या आर्थिक नुकसान होता है, तो उसे उसके अधिकारों के तहत संरक्षण मिल सके।
केंद्र सरकार का कहना है कि नया विधेयक इन सभी जरूरतों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। इसका उद्देश्य है कि किसानों को प्रमाणित, सुरक्षित और किफायती दरों पर बेहतर क्वालिटी के बीज उपलब्ध करना । नकली, घटिया बीजों की बिक्री पर रोक लगेगा।
सरकार का मानना है कि दुनिया के कई देशों में नई-नई किस्मों पर शोध जारी है, और वे भारत में भी किसानों की उत्पादन क्षमता बढ़ा सकती हैं। इसके लिए आयात नियमों को सरल बनाने की जरूरत है।
क्या मौजूदा चनौतियों के सामने कम पड़ रहा था पुराना कानून और इससे किसानों को क्या और कितना फायदा होगा? इन सवालों का जवाब देते हुए Former Union Agriculture Secretary सिराज हुसैन ने कहा कि 2004 में बीज के बिल पर बात हो रही है। बाजार में अन-अप्रूव़्ड बीज बिक रहे है। अच्छा है सरकार इस बार ये बिल ला रही है। बिल के आने से किसानों, सभी स्टेक होल्डर्स को फायदा होगा।
उन्होंने आगे कहा कि बिल आने से बाजार में पारदर्शिता बढ़ेगी। आज भी बाजार में बिना सरकार की मंजूरी के कई बीज बिक रहे हैं। बड़ी बाजार ये है कि बाजार में GM सीड भी बिक रहे है, किसान खरीद रहे हैं।
उन्होंने कहा कि पिछले साल सरकार ने खेती में रिसर्च को बढ़ावा देने की बात की थी। बिना प्राइवेट भागीदारी खेती में विकास संभव नहीं है। खेती में प्राइवेट कंपनियों की भागीदारी बढ़ाना जरुरी है।