देश में मक्के की बुआई बढ़ने के कारण सोयाबीन पिछड़ रहा है। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे दो बड़े उत्पादक राज्यों में सोयाबीन की बुआई पिछले साल से कम हुई है। क्या हैं कारण और इसका नेशनल ऑयल मिशन पर क्या और कितना असर पड़ेगा? आइए डालते है एक नजर। दरअसल, मक्के की तरफ किसानों का रुझान बढ़ा है। सोयाबीन की जगह बढ़ी मक्के की बुआई कर रहे है। खरीफ सीजन में मक्के की बुआई बढ़ी है।
गौरतलब है कि इसी साल अक्टूबर में सरकार ने नेशनल ऑयल मिशन को मंजूरी दी थी। 10103 करोड़ के मिशन को सरकार की मंजूरी मिली थी। अगले 6 सालों में सरकार रकम खर्च करेगी । देश में तिलहन फसलों का उत्पादन बढ़ाना सरकार का लक्ष्य है। 2030-31 तक 6.97 लाख टन उत्पादन का लक्ष्य है। अभी तिलहन का उत्पादन 3.97 लाख टन होता है।
बता दें कि देश में मक्के की बुआई साल 2023 में 83.29 लाख हेक्टेयर में हुई थी जबकि 2024 में 83.95 लाख हेक्टेयर में हुई हैं। मध्यप्रदेश में सोयाबीन, मक्के की बुआई के आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2023 में सोयाबीन की बुआई 60.60 लाख हेक्टेयर में हुई थी जबकि 2024 में 57.77 लाख हेक्टेयर में हुई है। इसी तरह 2023 में मध्यप्रदेश में मक्के की बुआई 15.3 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि 2024 में 20.8 लाख हेक्टेयर में हुई।
महाराष्ट्र में सोयाबीन, मक्के की बुआई के आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2023 में सोयाबीन की बुआई 51.15 लाख हेक्टेयर में हुई थी जबकि 2024 में 50.52 लाख हेक्टेयर में हुई है। इसी तरह 2023 में महाराष्ट्र में मक्के की बुआई 11.07 लाख हेक्टेयर में हुई थी जबकि 2024 में 9.09 लाख हेक्टेयर में हुई।
सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SOPA) के ईडी डी एन पाठक का कहना है कि मक्के की बुआई बढ़ने से सोयाबीन की बुआई पिछड़ी है। नेशनल ऑयल मिशन और एथेनॉल ब्लेंडिंग मिशन में तालमेल की जरूरत है। एथेनॉल ब्लेंडिंग बढ़ने के कारण मक्के की तरफ किसानों का रुझान बढ़ा है। 11 मिलियन मक्के का इस्तेमाल एथेनॉल में होगा। किसानों को मक्के के दाम ज्यादा मिलने की उम्मीद है। उन्होंने आगे कहा कि कुल मांग का 60 फीसदी का खाने का तेल इंपोर्ट होता है। सोयामील की मांग बढ़ने की उम्मीद नहीं हैं और सोयामील का एक्सपोर्ट भी नहीं हो रहा है।