इंडिया के गोल्ड इंपोर्ट में जबर्दस्त उछाल आया है। यह अक्तूबर में करीब 200 फीसदी बढ़ा। इसकी बड़ी वजह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पॉलिसी को लेकर अनिश्चितता है। इसके अलावा शादियों के सीजन का असर भी डिमांड पर पड़ा। अक्तूबर में गोल्ड का इंपोर्ट 199.2 फीसदी बढ़कर 14.7 अरब डॉलर पर पहुंच गया। एक साल पहले की समान अवधि में यह 4.9 अरब डॉलर था। हालांकि, महीना दर महीना आधार पर इंपोर्ट में करीब 53 फीसदी उछाल आया।
ट्रंप के टैरिफ से अनिश्चितता बढ़ने का असर
एक्सपर्ट्स ने मनीकंट्रोल को बताया कि ट्रंप के भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगाने से आर्थिक अनिश्चितता बढ़ गई। इससे गोल्ड और सिल्वर में निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ गई। जीएसटी रेट्स में कमी 22 सितंबर से लागू हो गई। इससे शादियों के सीजन में कंपम्ज्पशन में इजाफा देखने को मिला।
वेडिंग सीजन शुरू होने से डिमांड को मिला सपोर्ट
एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज में रिसर्च एनालिस्ट रिया सिंह ने कहा कि वेडिंग सीजन शुरू होने का असर गोल्ड की मांग बढ़ी है। इसका असर अक्तूबर में गोल्ड के इंपोर्ट पर दिखा है। उन्होंने कहा, "इनवेंट्री लेवल हाई है। ज्वेलर्स से बात करने पर पता चलता है कि कम कैरेट के गोल्ड और सिल्वर ज्वेलरी की अच्छी मांग है।" उन्होंने कहा कि फेस्टिव सीजन शुरू होते ही गोल्ड की डिमांड में उछाल देखने को मिला।
सिल्वर का इंपोर्ट भी छह गुना
अक्तूबर में सिल्वर का इंपोर्ट भी बढ़कर छह गुना यानी 2.72 अरब डॉलर पर पहुंच गया। अक्तूबर में भारत ने 165 टन गोल्ड इंपोर्ट किया। एक साल पहले अक्तूबर में 60.63 टन गोल्ड का आयात हुआ था। अगर FY26 के पहले सात महीनों का औसत देखा जाए तो गोल्ड का इंपोर्ट मात्रा (Quantity) में सिर्फ 2.3 फीसदी बढ़ा है। लेकिन, वैल्यू के लिहाज से इंपोर्ट 21.4 फीसदी बढ़ा है। इसकी वजह गोल्ड की कीमतों में उछाल है। जीजेईपीसी के चेयरमैन किरीट भंसाली ने कहा कि इस दौरान गोल्ड की ग्लोबल कीमतें करीब 50 फीसदी चढ़ी है।
फेस्टिव सीजन में गोल्ड में बढ़ी दिलचस्पी
इस धनतेरस और दिवाली का त्योहार अक्तूबर में पड़ा था। दोनों ही त्योहारों को गोल्ड खरीदने के लिए शुभ माना जाता है। भंसाली ने कहा कि इसके तुरंत बाद शादियों का सीजन शुरू हो गया। इससे देशभर में गोल्ड की डिमांड को सपोर्ट मिला। गोल्ड के इंपोर्ट में यह उछाल काफी अहम है, क्योंकि अक्तूबर में जेम्स और ज्वेलरी के एक्सपोर्ट में 29.5 फीसदी गिरावट आई है। इसका मतलब है कि सोने और चांदी के आयात के बड़े हिस्से की खपत घरेलू बाजार में हो रही है।