इंडिया में बैंकों को 1990 के दशक से पहले एयरलाइंस कंपनियों को लोन देने का कोई अनुभव नहीं था। इसकी वजह थी कि तब दो सिर्फ एयरलाइंस कंपनियां-Air India और Indian Airlines थीं। ये दोनों कंपनियां सरकार की थीं। एविएशन सेक्टर को प्राइवेट सेक्टर के लिए खोलने के बाद बैंकों ने एयरलाइंस कंपनियों को लोन देना शुरू किया। लेकिन, इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। एयरलाइंस कंपनियों को दिए गए हजारों करोड़ रुपये के लोन नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स (NPA) हो चुके हैं। इसके सबसे बड़े उदाहरण Jet Airways और Kingfisher हैं। कई छोटी एयरलाइंस कंपनियों ने भी लोन के पैसे बैंकों को नहीं चुकाए हैं। Go First के संकट में फंसने के बाद फिर से यह मामला सुर्खियों में आ गया है।
बैंकों के बोर्ड में पूछे जाएंगे कई सवाल
गोफर्स्ट को लोन देने वाले बैंकों के समूह (CoC यानी कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स) ने कंपनी को 425 करोड़ रुपये का नया लोन देने के प्रस्ताव को मंजूर कर लिया है। इस पैसे का इस्तेमाल गोफर्स्ट दोबारा अपनी हवाई सेवाएं शुरू करने के लिए करेगी। गोफर्स्ट के लिए यह बहुत अच्छी खबर है। लेकिन, लोन का यह प्रस्ताव जब बैंकों के बोर्ड के सामने एप्रूवल के लिए जाएगा तो कई तरह के सवाल पूछे जाएंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि बैंकों के बोर्ड के सदस्य रेवेन्यू, लोड फैक्टर, ऑपरेशन जारी रखने की क्षमता आदि के बारे में गोफर्स्ट की तरफ से दी गई जानकारियों पर किस तरह से विचार करते हैं। वे यह भी देखेंगे कि गोफर्स्ट फंडिंग में आ रही कमी को किस तरह से दूर करेगी। सफलता का सही मंत्र सिर्फ यह है कि वादा कम करो और रिजल्ट ज्यादा दो।
425 करोड़ रुपये का लोन पर्याप्त नहीं
Jet Airways 2.0 का मामला ताजा है। CoC के हेयरकट के लिए तैयार होने, NCLT प्रोसेस के बाद नए प्रमोटर्स सेलेक्ट होने सहित कई कोशिशों के बावजूद इस एयरलाइन की सेवाएं शुरू नहीं हो सकी हैं। जेट एयरवेज के मामले को देखने के बाद बैंक दोबारा इस बात पर करेंगे कि लोन के लिए अप्लिकेशन देने के समय किए गए वादों पर कितना भरोसा किया जा सकता है। CoC को जो रिवाइवल प्लान सौंपा गया है, उसके तहत 26 विमानों के इस्तेमाल का प्रस्ताव है। सवाल है कि क्या इन विमानों को लीज पर देने वाली कंपनियां (aircraft lessors) बकाया रकम के पेमेंट से पहले अपने विमानों को दोबारा इस्तेमाल की इजाजत देगी? क्या उनके बकाया के पेमेंट के लिए 425 करोड़ रुपये के नए लोन का इस्तेमाल होगा?
कंपनियां बकाया पेमेंट के लिए बनाएंगी दबाव
GoFirst को दूसरी सेवाओं के लिए भी करीब 5000 करोड़ रुपये के बकाया का पेमेंट करना है। कंपनी की सेवाएं दोबारा शुरू होने से पहले ये कंपनियां पेमेंट के लिए गोफर्स्ट पर दबाव बनाएंगी। अगर गोफर्स्ट ये पैसे चुकाती है तो नए लोन का ज्यादातर हिस्सा इसी में खर्च हो जाएगा। ऐसे में उसके पास सेवाएं शुरू करने के लिए ज्यादा पैसे नहीं बचेंगे। ऐसा मामला हम जेट एयरवेज में देख चुके हैं। ऐसे में 425 करोड़ रुपये का लोन अपर्याप्त लगता है। ऐसे में यह ध्यान में रखना जरूरी है कि इनसॉल्वेंसी के लिए अप्लिकेशन देते वक्त गोफर्स्ट के मैनेजमेंट ने कहा था कि उसके प्रमोटर्स ने कुछ ही महीने पहले कंपनी में 300 करोड़ रुपये निवेश किए थे।
DGCA भी मंजूरी से पहले मामले पर व्यापक विचार करेगा
DGCA कंपनी के रिवाइवल प्लान की जांच करेगा। वह मंजूरी देने से पहले हर पहलू की स्टडी करेगा। रेगुलेटर होने ने नाते उसके पास किसी तरह का सवाल कंपनी से करने का अधिकार है। वह विमानों की उपलब्धता, मैनपावर और कंपनी की वित्तीय हालत के बारे में सवाल पूछ सकता है। ऐसे में बैंकों के लिए बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है। अभी कंपनी ने रेवेन्यू का जो अनुमान दिया है, उसमें बदलाव हो सकता है, क्योंकि ये वर्तमान हवाई किरायों पर आधारित होंगे। यह ध्यान में रखना होगा कि गोफर्स्ट की सेवाएं बंद होने के बाद टिकटों के दाम बहुत बढ़ गए। इसकी सेवाएं शुरू होने पर टिकटों के दाम नीचे आएंगे।
मैनेजमेंट में बदलाव जरूरी होगा
ऐसा लगता है कि 425 करोड़ रुपये के लोन से गोफर्स्ट के लिए ऊंची उड़ान भरना मुमकिन नहीं होगा। कंपनी को एक व्यापक रिवाइवल प्लान की जरूरत है। उसके लिए सत्याम के मामले से सबक लेना ठीक रहेगा। बड़े संकट में फंसने के बाद अब सत्यम Tech Mahindra का हिस्सा बन चुकी है। कभी सत्यम एक ब्लूचिप आईटी कंपनी थी। लेकिन, घोटालों की वजह से यह जमान पर आ गई थी। हम उम्मीद कर सकते हैं कि बैंकों के बोर्ड में बैठने वाले एक्सपर्ट मामले को व्यापक परिप्रेक्ष्य (Perspective) में देखेंगे।