आरबीआई कंपनियों के लिए विदेश से पैसे जुटाने के नियमों को आसान बनाना चाहता है। केंद्रीय बैंक ने इसका ऐलान 3 अक्टूबर को किया। अब कंपनियां अपनी फाइनेंशियल स्ट्रेंथ के हिसाब से विदेश से कर्ज जुटा सकेंगी। इससे इकोनॉमी में फंड का फ्लो बढ़ेगा। अभी आरबीआई ने इस बारे में प्रस्ताव पेश किया है। इस पर फीडबैक मिलने के बाद वह नियम बनाएगा। आरबीआई के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने 1 अक्टूबर को मॉनेटरी पॉलिसी में भी फंड का फ्लो बढ़ाने के लिए कई उपायों का ऐलान किया था।
कर्ज के लिए कॉस्ट की लिमिट हटेगी
RBI का प्लान कंपनियों की फॉरेन बॉरोइंग लिमिट (Foreign Borrowing Limit) को उनके फाइनेंशियल स्ट्रेंथ से लिंक करने का है। साथ ही इस तरह के ज्यादातर कर्ज पर कॉस्ट की लिमिट हटा दी जाएगी। केंद्रीय बैंक के नए कदम से कंपनियां 1 अरब डॉलर या अपने नेटवर्थ का 300 फीसदी, दोनों में जो कम होगा तक विदेश से कर्ज जुटा सकेंगी। पहले ऑटोमैटिक रूट से 1.5 अरब डॉलर की लिमिट थी। इसके लिए खास एप्रूवल लेना पड़ता था। अब यह व्यवस्था खत्म हो जाएगी।
एलिजिबल कंपनियों का दायरा भी बढ़ेगा
केंद्रीय बैंक कॉस्ट की लिमिट भी खत्म कर देगा। इससे कंपनियां अब बाजार से निर्धारित इंटरेस्ट रेट्स पर विदेश से कर्ज जुटा सकेंगी। पहले कंपनियों के लिए ग्लोबल बेंचमार्क से प्लस 500-500 बेसिस प्वाइंट्स तक के इंटरेस्ट रेट्स की लिमिट तय थी। तीन साल से कम मैच्योरिटी के कर्ज पर कॉस्ट की लिमिट वही होगी जो ट्रेड क्रेडिट पर लागू होती है। इसके साथ ही आरबीआई ने एलिजिबल बॉरोअर्स के पूल के विस्तार का भी प्रस्ताव पेश किया है।
रिस्ट्रक्चरिंग वाली कंपनियां भी विदेश से कर्ज जुटा सकेंगी
केंद्रीय बैंक इंडिया में रजिस्टर्ड किसी कंपनी को विदेश से कर्ज जुटाने की इजाजत देगा। इसमें ऐसी कंपनियां भी शामिल होंगी जो रिस्ट्रक्टचरिंग के तहत हैं या जिनके खिलाफ जांच चल रही है। जो कंपनियां रिस्ट्रक्चरिंग के तहत हैं, उन्हें रिजॉल्यूशन प्लान के तहत एप्रूवल की जरूरत पड़ेगी। जिन कंपनियों के खिलाफ जांच चल रही हैं, वे पर्याप्त डिसक्लोजर्स के साथ विदेश से कर्ज जुटा सकेंगी। पहले सिर्फ उन्हीं कंपनियों को विदेश से कर्ज जुटाने की इजाजत थी, जो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए एलिजिबल थीं। आरबीआई ने इन प्रस्तावों पर 24 अक्टूबर तक फीडबैक मांगा है। उसके बाद वह नियम फाइनल करेगा।