टाटा ग्रुप के शीर्ष अधिकारियों ने मंगलवार को दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात की। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, इस बैठक में टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमैन नोएल टाटा (Noel Tata) और टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन शामिल रहे। यह मुलाकात ऐसे समय में हुई है, जब मीडिया में टाटा ट्रस्ट्स के भीतर गवर्नेंस, पारदर्शिता और टाटा संस की शेयर बाजार में लिस्टिंग को लेकर मतभेद सामने आने की खबरें चल रही हैं। हालांकि इस बैठक में क्या चर्चा हुई, इसकी आधिकारिक जानकारी सामने नहीं आई है। नोएल टाटा और टाटा संस की ओर से भी इस पर कोई बयान नहीं आया है।
यह बैठक ऐसे वक्त में हुई है जब रतन टाटा की पहली पुण्यतिथि 9 अक्टूबर को मनाई जानी है और इसके एक दिन बाद 10 अक्टूबर को टाटा ट्रस्ट्स के बोर्ड की मीटिंग होनी है। रिपोर्ट में बताया गया है कि मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, केंद्र सरकार को कुछ ट्रस्टीज ने संपर्क किया था ताकि संगठन के अंदर चल रहे मतभेदों को सुलझाने में मदद मिल सके। बताया जा रहा है कि केंद्र इस विवाद को सुलझाने में रुचि दिखा रहा है।
दो गुटों में बंट गया टाटा ट्रस्ट्स का बोर्ड!
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, टाटा ट्रस्ट्स का बोर्ड अब दो खेमों में बंट गया है। पहले गुट में नोएल टाटा, वीनू श्रीनिवासन और विजय सिंह हैं। वहीं, दूसरे पक्ष में मेहली मिस्त्री, डेरियस खांबटा, जहांगीर जहांगीर और प्रमीत झावेरी शामिल हैं। मेहली मिस्त्री को रतन टाटा का करीबी माना जाता था और वे उनकी वसीयत के एग्जिक्यूटर्स भी है।
रतन टाटा के कार्यकाल में टाटा ट्रस्ट्स का संचालन लगभग निर्विवाद रहा था। लेकिन उनके निधन के बाद, नोएल टाटा को जब ट्रस्ट का चेयरमैन नियुक्त किया गया, उसके बाद से ही आंतरिक सत्ता के संतुलन में बदलाव देखने को मिल रहा है। हालांकि उन्हें रतन टाटा का स्वाभाविक उत्तराधिकारी माना गया था। हालांकि मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, कुछ ट्रस्टी उनकी फैसला लेने की शैली पर अधिक निगरानी रख रहे हैं और उनकी अधिकारिता को चुनौती दी जा रही है।
Tata Sons पर ट्रस्ट्स का नियंत्रण और विवाद की जड़
टाटा ग्रुप के आंतरिक नियमों के अनुसार, टाटा संस से जुड़े बड़े फैसलों के लिए टाटा ट्रस्ट्स के ट्रस्टीज की मंजूरी लेनी आवश्यक होती है। इसमें 100 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश या चेयरमैन की नियुक्ति/हटाने जैसे फैसले शामिल हैं। साल 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने 'टाटा संस बनाम साइर इनवेस्टमेंट्स' मामले में कहा था कि ये अधिकार “गवर्नेंस और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए संरक्षित अधिकार” हैं।
हालांकि, अब कुछ ट्रस्टीज का आरोप है कि टाटा संस के बोर्ड में शामिल ट्रस्ट्स के नामित डायरेक्टर्स पर्याप्त जानकारी साझा नहीं कर रहे, जिससे ट्रस्ट बोर्ड को फैसला लेने में कठिनाई हो रही है।
Tata Sons की संभावित लिस्टिंग पर मतभेद
विवाद का एक बड़ा मुद्दा टाटा संस की संभावित IPO लिस्टिंग को लेकर भी है। टाटा ट्रस्ट्स का पक्ष यह है कि Tata Sons को निजी कंपनी ही रहना चाहिए ताकि ग्रुप की फैसला लेने की प्रक्रिया पर नियंत्रण बना रहे।
वहीं टाटा संस में माइनॉरिटी शेयरहोल्डिंग रखने वाला पलोनजी मिस्त्री परिवार चाहता है कि कंपनी पब्लिक लिस्टेड हो, जिससे उन्हें अपने कर्ज कम करने के लिए पूंजी निकालने का अवसर मिले।
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