टाटा ट्रस्ट्स ने वेणु श्रीनिवासन को आजीवन दोबारा ट्रस्टी नियुक्त कर दिया है। अब नजरें मेहिल मिस्त्री की दोबारा नियुक्ति पर लगी हैं। श्रीनिवासन का कार्यकाल 23 अक्टूबर को खत्म हो रहा था। इस हफ्ते दोबारा उन्हें सर्वसम्मति से ट्रस्टी नियुक्त कर दिया गया। यह खबर आई है, जब टाटा ट्रस्ट्स दो गुटों में बंटा दिख रहा है। बताया जाता है कि एक गुट नोएल टाटा का समर्थन कर रहा है, जबकि दूसरे गुट में वे लोग शामिल है, जो पूर्व चेयरमैन रतन टाटा के समर्थक माने जाते थे।
वेणु श्रीनिवासन टीवीएस ग्रुप के मानद अध्यक्ष हैं
पिछले साल रतन टाटा के निधन पर नोएल टाटा को Tata Sons का चेयरमैन नियुक्त किया गया था। श्रीनिवासन की दोबारा नियुक्ति के मसले से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि उनकी नियुक्ति सर्वसम्मति से हुई। श्रीनिवासन टीवीएस ग्रुप के मानद अध्यक्ष हैं। टाटा ट्रस्ट्स ने इस खबर के बारे में कुछ बताने से इनकार कर दिया। अब नजरें मिस्त्री की दोबारा नियुक्ति पर लगी हैं, क्योंकि उनका कार्यकाल 28 अक्टूबर को खत्म हो रहा है। इस बात पर सहमति नहीं है कि उनके आजीवन ट्रस्टी बने रहने के लिए उनकी दोबारा नियुक्ति जरूरी है या नहीं।
टाटा ट्रस्ट्स के तहत कई चैरिटेबल ट्रस्ट आते हैं
टाटा ट्रस्ट्स के तहत टाटा समूह के कई चैरिटेबल ट्रस्ट्स आते हैं। इनमें सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट और सर रतन टाटा ट्रस्ट शामिल हैं। टाटा ट्रस्ट्स की टाटा संस में 66 फीसदी हिस्सेदारी है। टाटा संस 156 साल पुराने टाटा ग्रुप की होल्डिंग कंपनी है। इसके तहत 400 कंपनियां आती हैं। इनमें 30 ऐसी कंपनियां भी शामिल हैं जो स्टॉक मार्केट्स में सूचीबद्ध हैं। टीसीएस, टाटा मोटर्स, टाटा स्टील, टाटा पावर, टाटा कंज्यूमर्स इस समूह की सूचीबद्ध कंपनियां हैं।
17 अक्टूबर को हुई थी ज्वाइंट मीटिंग
एक सूत्र ने कहा, "अगर परंपरा को देखा जाए तो दोबारा नियुक्ति और रिन्यूएल का फैसला सर्वसम्मति से होना जरूरी है। अगर रिन्यूएल आजीवन के लिए है तो फिर इसके लिए सबकी सहमति चाहिए।" हालांकि, एक दूसरे व्यक्ति ने कहा, "दोबारा नियुक्ति ऑटोमैटिक होती है और यह नियम सभी ट्रस्टीज पर लागू होता है।" 17 अक्टूबर को सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट और सर रतन टाटा ट्रस्ट के ट्रस्टीज की ज्वाइंट मीटिंग को हुई थी। मीटिंक के मिनट्स के आधार पर सूत्र ने बताया कि यह तय किया गया कि किसी ट्रस्टी का कार्यकाल एक्सपायर होने पर ट्रस्टी की दोबारा नियुक्ति संबंधित ट्रस्ट की तरफ से की जाएगी। ऐसा कार्यकाल की अवधि तय किए बगैर किया जाएगा।
ट्रस्टी के प्रस्ताव के विरोध में वोट डालने का मतलब
इस बारे में जानकारी देने वाले व्यक्ति ने कहा कि नियम के मुताबिक, अगर कोई ट्रस्टी नियुक्ति के प्रस्ताव के विरोध में वोट देता है तो इसे प्रतिबद्धता का उल्लंघन माना जाएगा। यह माना जाएगा कि वह व्यक्ति ऐसे व्यवहार की वजह से टाटा ट्रस्ट्स में काम करने के लिहाज से फिट और प्रॉपर नहीं है। इसके अलावा अगर ट्रस्टी की तरफ से प्रतिबद्धता का कोई उल्लंघन होता है तो फिर टाटा ट्रस्ट्स की तरफ से पारित सभी प्रस्तावों पर दोबारा विचार जरूरी हो जाएगा। इसमें टाटा संस के बोर्ड में नोएल टाटा के डायरेक्टर पद पर नियुक्ति का मामला भी आएगा।