कोरोना के कई साइड इफ्केट हैं। कुछ मेडिकल तो कुछ दूसरे। उनमें से एक है मोबाइल गेमिंग। जी हां कोरोना के चलते बच्चे घरों में बंद हो कर रह गए हैं। पढ़ाई के लिए मिले मोबाइल पर अब गेमिंग भी चलती है, और ये धीरे धीरे लत में बदल गई है। इस हद तक की बच्चे लत में पड़ कर हजारों रुपए उड़ा रहे हैं और इससे रोका जाए तो डिप्रेशन में जा रहे हैं। हालात ये हैं कि कुछ राज्यों ने इसे लेकर बाकायदा एडवायजरी जारी कर दी है। यहां हम इसी मुद्दे पर चर्चा कर रहे है।
इस चर्चा में सीएनबीसी-आवाज़ के साथ हैं aiims के प्रोफेसर साइकेट्री विभाग डॉ नंद कुमार, टेक एक्सपर्ट संदीप बुदकी और India wide Parents Association की अनुभा श्रीवास्तव।
कोरोना में बच्चों में गेमिंग की लत लग गई है। पढ़ाई के लिए मिले मोबाइल पर गेमिंग हो रही है। घर में ही रहने के चलते गेमिंग लत लगी है।
इस समस्या पर मध्य प्रदेश साइबर सेल की एडवायजरी भी आई है। इसमें सलाह दी गई है कि बच्चों को मोबाइल देने से बचें तो बेहतर है। बच्चों को बिना सिम कार्ड वाला मोबाइल दें। घर में WiFi है तो उसी का इस्तेमाल हो। बच्चों की ऑनलाइन एक्टिविटी पर नजर डालें। प्ले स्टोर पर पेरेंटल कंट्रोल ऑन रखें। माता-पिता अपने मोबाइल बच्चों को न दें। बच्चों के साथ पासवर्ड शेयर न करें। बच्चों को ऑनलाइन ट्रांजैक्शन न करने दें।
इन समस्याओं को देखते हुए चीन में भी गेमिंग पर सख्ती की जा रही है। बच्चों के लिए नियम सख्त हुए हैं। हफ्ते में सिर्फ 3 घंटे गेमिंग की छूट दी गई है। स्कूल वाले दिनों में गेमिंग पर पाबंदी लगा दी गई है। सिर्फ वीकेंड पर रोज 1 घंटे गेमिंग की इजाजत होगी। चीन ने गेमिंग की तुलना ड्रग्स से की गी है।