गुजरात में कोरोना की परिस्थिति दिन ब दिन विकट होती जा रही है। राज्य के विविध अस्पतालों में रोगी लाइन में खड़े है और वहीं अंतिम संस्कार के लिए भी लोगों को इंतजार करना पड़ रहा है। ऐसी घटनाओं के वीडियो वायरल होने के कारण गुजरात उच्च न्यायालय ने गुजरात सरकार को फटकार लगाई है और कहा है कि यदि बेड उपलब्ध हैं तो अस्पतालों के बाहर लोगों को लाइन में क्यों खड़ा होना पड़ रहा है।
आज कोरोना के मामले पर उच्च न्यायालय ने सुनवाई करते हुए सरकार के सवाल किया है कि आम आदमी के कोरोना जांच की रिपोर्ट मिलने में 4 से 5 दिन लगते हैं जबकि अधिकारियों की आरटी-पीसीआर की जांच की रिपोर्ट 4 से 5 घंटे में मिल जाती है ऐसा क्यों। गुजरात के तहसील और छोटे गांव में आरटी-पीसीआर जांच केंद्र नहीं है। कोरोना की जांच तेजी से हों इसके लिए इंतजाम होने चाहिए।
बता दें कि गुजरात उच्च न्यायालय ने राज्य में कोरोना वायरस की स्थिति पर स्वत:संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका की कार्रवाही शुरू की। मीडिया में महामारी को लेकर आई खबरों में यह संकेत दिया गया था कि प्रदेश स्वास्थ्य आपातकाल जैसी स्थिति की तरफ बढ़ रहा है। मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ ने एक मौखिक आदेश के जरिये उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री को खुद नई जनहित याचिका दायर करने को कहा जिसका शीर्षक अनियंत्रित बढ़ोत्तरी और कोविड नियंत्रण में गंभीर प्रबंधन मुद्दा है।
कोर्ट में गुजरात सरकार की तरफ से पैरवी करते हुए महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने कहा कि नागरिकों को रेमडेसिवीर इंजेक्शन पाने के लिए शीघ्रता नहीं करना चाहिए। राज्य में नागरिक के खिलाफ कोरोना यह युद्ध शुरू है। लॉकडाउन लगाना ये उसका विकल्प नही है और राज्य में तैयार किये जा रहे ऑक्सीजन में से 70 प्रतिशत ऑक्सीजन स्वास्थ्य क्षेत्र को सप्लाई किया जा रहा है।
गुजरात उच्च न्यायालय ने सरकार से ये भी सवाल किया कि यदि गुजरात में 27 हजार रेमडेसिवीर इंजेक्शन उपलब्ध हैं तो फिर प्रत्येक कोविड हॉस्पिटल में रेमडेसिवीर इंजेक्शन उपलब्ध क्यों नहीं है। कितने इंजेक्शन बिना उपयोग के ही पड़े हुए हैं इसकी खोजबीन भी की जानी चाहिए।