UP News: करीब पांच साल पहले वर्ष 2019 में यूपी में 60 हजार सहायक शिक्षकों की भर्ती मामले में अब नई चयन सूची बनेगी। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने उत्तर प्रदेश सरकार को नई सूची जारी करने का आदेश दे दिया है। कोर्ट के फैसले में 1 जून 2020 और 5 जनवरी 2022 को जारी चयन सूची को रद्द कर दिया गया है और सरकार को नियमानुसार तीन महीने के भीतर नई सूची तैयार करने का निर्देश दिया गया है। कोर्ट के इस फैसले ने उन शिक्षकों की चिंता बढ़ा दी है, जिनकी पहले की सूचियों के आधार पर नियुक्ति हुई थी।
'आरक्षण नीति' के चलते ही फिर सूची बनाने का आदेश
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने जस्टिस एआर मसूदी और जस्टिस ब्रिजराज सिंह ने अशोक यादव और अन्य उम्मीदवारों की तरफ से दायर 90 विशेष अपीलों की सुनवाई के दौरान 69 हजार शिक्षकों की भर्ती में सूची रद्द करने का फैसला सुनाया। इन अपीलों में 13 मार्च 2023 की सिंगल जज के फैसले को चुनौती दी गई थी। याचिका के मुताबिक जो सूची पहले तैयार की गई थी, उसमें गलत तरीके से आरक्षण कोटे का नियम लगाया गया था। अब इस मामले में लखनऊ बेंच ने नई सूची बनाने का आदेश दिया है।
अब किस आरक्षण नीति से बनेगी सूची?
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने आदेश दिया है कि नई सूची बेसिक शिक्षा नियमावली, 1981 और 1994 के रिजर्वेशन एक्ट के तहत बनाई जाए। इसके मुताबिक अगर किसी आरक्षित श्रेणी का उम्मीदवार सामान्य श्रेणी के कटऑफ से बराबर या अधिक अंक प्राप्त करता है, तो उसे सामान्य श्रेणी में रखा जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है कि अगर नई सूची से कोई ऐसी कैंडिडेट प्रभावित होता जो अभी सहायक शिक्षक है, तो राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उन्हें शैक्षिक सत्र के अंत तक बनाए रखा जाए, ताकि स्टूडेंट्स के पढ़ाई की दिक्कतों को कम से कम किया जा सके।
याचिकाकर्ताओं के वकील के मुताबिक 69000 सहायक शिक्षकों की भर्ती मामले में आरक्षण नियमों का सही तरीके से पालन नहीं किया गया। इसके चलते 65 फीसदी से अधिक अंक पाने वाले 18988 आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को सामान्य श्रेणी की सूची में शामिल नहीं किया गया, बल्कि उन्हें आरक्षित श्रेणी के तहत नियुक्त किया गया, जिससे आरक्षण नियमों का उल्लंघन हुआ। इसके कारण अन्य आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को बाहर कर दिया गया, जिससे कई ने उच्च न्यायालय में याचिकाएं दायर कीं। इस मामले को लेकर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव मौर्य भी अपनी सरकार के खिलाफ रहे हैं। उन्होंने हाईकोर्ट के फैसले को सामाजिक न्याय के लिए स्वागत योग्य कदम बताया है। केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल का कहना है कि अब तो कोर्ट ने भी वह कह दिया, जो वह पहले से कहती आ रही हैं।