चीन है बहुत बड़ा चालबाज! भारतीयों की कैलाश मानसरोवर यात्रा रोककर कर रहा है दो अहम समझौतों का उल्लंघन?
Mansarovar Yatra: बड़ा सवाल अब भी ये है कि क्या चीन भारत के साथ साइन किए गए समझौतों का साफ-साफ उल्लंघन करते हुए, माउंट कैलाश और मानसरोवर तक भारतीय श्रद्धालुओं को जाने से एकतरफा तरीके से रोक सकता? इसलिए भारत को पूरजोर तरीक से हस्तक्षेप करना चाहिए और आवाज उठानी चाहिए
चीन है बहुत बड़ा चालबाज! भारतीयों की कैलाश मानसरोवर यात्रा रोककर कर रहा है दो अहम समझौतों का उल्लंघन?
साल 2020 के बाद से ये लगातार पांचवां साल है, जब पवित्र कैलाश मानसरोवर यात्रा के दोनों आधिकारिक रूट भारतीयों के लिए बंद हैं। नेपाल से होकर गुजरा ये प्राइवेट रूट चीन की ओर से लाए गए सख्त नियमों को देखते हुए सभी कारणों से भारतीयों के लिए बंद है। पिछले साल चीन ने इसे खोला था। चीन में कैलाश पर्वत तक कैलाश मानसरोवर यात्रा के स्थगित होने के पीछे एक सीधा कारण Covid-19 महामारी है। ये भगवान शिव का पवित्र निवास स्थान है, जहां हिंदुओं की बहुत श्रद्धा है।
हालांकि, अगर थोड़ा और गहराई से इसे देखा जाए, तो पता चलता है कि 2020 में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर दोनों देशों के बीच तनाव पैदा होने के बाद से ये चीन की एक और चाल है।
News18 को कैलाश मानसरोवर यात्रा को लेकर विदेश मंत्रालय की ओर से RTI के जवाब मिले हैं, जिसमें 2013 और 2014 में चीन के साथ साइन किए गए दो समझौतों की कॉपी भी शामिल हैं।
इन दोनों ही समझौतों से ये साफ होता है कि चीन बिना किसी सूचना के एकतरफा समझौते को खत्म नहीं कर सकता है। वे कहते हैं, कोई भी बदलाव दोनों पक्षों की सर्वसम्मति से होना चाहिए।
चीन कर रहा समझौतों का उल्लंघन?
अब ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या चीन इन समझौतों का उल्लंघन कर रहा है? पहला साइन 20 मई 2013 को तत्कालीन विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद और चीन के तत्कालीन विदेश मंत्री वांग यी के बीच हुआ था। इससे यात्रा के लिए लिपुलेख पास रूट खुल गया।
दूसरे समझौते पर बतौर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने 2014 में यी के साथ 18 सितंबर 2014 को कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए नाथू ला पास रूट शुरू करने के लिए साइन किए थे।
आगे बढ़ने से पहले ये जान लीजिए कि आखिर ये समझौते क्या कहते हैं? पहला कहता है कि प्रोटोकॉल 2013 में साइन करने के दिन से लागू हुआ और पांच साल के लिए वैध होगा, और इसे दोबारा पांच साल के लिए अपने आप बढ़ाया भी जाएगा।
ऐसा तब तक होता रहेगा, जब तक कि कोई भी एक पक्ष दूसरे पक्ष को छह महीने पहले रिटिन में एक नोटिस देकर ये नहीं बता देता कि वो अब इस प्रोटोकॉल को खत्म करना चाहता है।
समझौते में कहा गया है, "दोनों पक्ष सर्वसम्मति से जरूरत के हिसाब से प्रोटोकॉल में बदलाव कर सकते हैं।" दूसरे समझौते की भाषा भी कुछ ऐसी ही है।
इसके अलावा, पहले समझौते में कहा गया है कि हर साल, बड़ी संख्या में भारतीय तीर्थयात्री कमर्शियल टूर ऑपरेटर और ट्रैवल एजेंट के जरिए माउंट कैलाश और मानसरोवर की यात्रा करते हैं।
समझौते में कहा गया है, "चीन की सरकार इन तीर्थयात्रियों को अपने घरेलू कानूनों और नियमों के अनुसार जरूरी सुविधाएं और मदद करने के लिए सहमत है।"
दूसरा समझौता भारतीय तीर्थयात्रियों को नाथू ला पास के जरिए चीन में एंट्री करने या बाहर निकलने की परमिशन देता है। इस रूट के तौर-तरीकों का देखरेख राजनयिक चैनलों के जरिए किया जाता है।
भारतीयों के लिए तीसरा ऑप्शन ये है कि वो पहले नेपाल जाएं और फिर प्राइवेट ऑपरेटर की मदद से चीन में एंट्री करें। इन सभी मामलों में, भारतीयों को माउंट कैलाश और मानसरोवर की यात्रा के लिए चीन के वीजा की जरूरत पड़ती है।
दूसरे विकल्पों पर विचार कर रहा है भारत
ऐसे में जब दोनों आधिकारिक रूट बंद हैं, तब चीन ने पिछले साल नेपाल की ओर से अपनी सीमाएं तो खोल दीं, लेकिन विदेशियों, खासकर भारतीयों के लिए नियम कड़े कर दिए और फीस में बढ़ोतरी समेत कई तरह के प्रतिबंध भी लगा दिए, जिससे भारतीयों के लिए नेपाल से होते हुए माउंट कैलाश तक जाना असंभव हो गया।
इस साल जनवरी में, 38 भारतीयों ने हवा में 27,000 फीट की ऊंचाई से माउंट कैलाश के हवाई दर्शन कर एक नया रिकॉर्ड बनाया। उन्होंने नेपाल के नेपालगंज से 'कैलाश मानसरोवर दर्शन फ्लाइट' के जरिए ऐसा किया।
भारत ने भी अपने इलाके में उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के धारचूला में लिपुलेख चोटी पर एक जगह तैयार की है, जहां से जल्द ही कैलाश पर्वत को महज 50 Km की दूरी से साफ-साफ देखा जा सकेगा।
इस महीने की शुरुआत में, उत्तराखंड सरकार ने घोषणा की थी कि तीर्थयात्री इस साल 15 सितंबर से इसी जगह से कैलाश पर्वत के दर्शन कर सकेंगे।
इसमें लिपुलेख तक गाड़ी की मदद से पहुंचा जाएगा, इसके बाद माउंट कैलाश को देखने के लिए उस जगह तक पहुंचने के लिए लगभग 800 मीटर की पैदल यात्रा करनी होगी।
हालांकि, बड़ा सवाल अब भी ये है कि क्या चीन भारत के साथ साइन किए गए समझौतों का साफ-साफ उल्लंघन करते हुए, माउंट कैलाश और मानसरोवर तक भारतीय श्रद्धालुओं को जाने से एकतरफा तरीके से रोक सकता? इसलिए भारत को पूरजोर तरीक से हस्तक्षेप करना चाहिए और आवाज उठानी चाहिए।