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'शरजील इमाम का भाषण जहरीला, दंगा भड़काया', कोर्ट ने दिल्ली हिंसा मामले में आरोप किए तय, 15 लोग हुए बरी

कोर्ट ने शरजील इमाम और अन्य आरोपियों के खिलाफ मामले की सुनवाई की, इन आरोपियों के खिलाफ पुलिस ने एफआईआर दर्ज की थी। अपने आदेश में अदालत ने कहा, "यह साफ है कि एक बड़ी भीड़ का इकट्ठा होना और फिर बड़े पैमाने पर दंगा करना कोई अचानक या स्वाभाविक घटना नहीं थी। यह एक बड़ी साजिश का हिस्सा था

अपडेटेड Mar 10, 2025 पर 11:10 PM
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कोर्ट ने 2020 दिल्ली हिंसा मामले में आरोप तय कर दिए हैं।

दिल्ली में हिंसा भड़काने के आरोपी शरजील इमाम को कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। साल 2019 में जामिया नगर में हुई हिंसा के मामले में दिल्ली की साकेत कोर्ट ने शरजील इमाम समेत 11 लोगों के खिलाफ आरोप तय किए हैं। वहीं, इस केस में शिफा उर रहमान समेत 15 लोगों को कोर्ट ने बरी कर दिया है। दिल्ली की एक अदालत ने शरजील इमाम को 2019 के जामिया हिंसा मामले में न केवल 'उकसाने वाला' बल्कि 'हिंसा भड़काने की बड़ी साजिश का मास्टरमाइंड बताया है।

कोर्ट ने दिल्ली हिंसा मामले में आरोप किए तय

दिल्ली की एक अदालत ने कहा है कि, शरजील इमाम सिर्फ भड़काऊ नहीं था, बल्कि 2019 के जामिया हिंसा मामले में हिंसा फैलाने की एक बड़ी साजिश का मुख्य आरोपी भी था। अदालत ने इस मामले में उसके खिलाफ आरोप तय करने का आदेश दिया है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल सिंह ने अपने आदेश में कहा कि 13 दिसंबर 2019 को जामिया यूनिवर्सिटी के पास इमाम की ओर से दिया गया भाषण 'जहरीला' था, जिसमें 'एक धर्म को दूसरे धर्म के खिलाफ खड़ा किया गया।


शरजील इमाम पर कही ये बात

अदालत शरजील इमाम और अन्य आरोपियों के खिलाफ मामले की सुनवाई कर रही थी, जिनके खिलाफ न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी पुलिस ने एफआईआर दर्ज की थी। 7 मार्च को दिए गए आदेश में अदालत ने कहा, "यह साफ है कि एक बड़ी भीड़ का इकट्ठा होना और फिर बड़े पैमाने पर दंगा करना कोई अचानक या स्वाभाविक घटना नहीं थी। यह एक बड़ी साजिश का हिस्सा था, जिसे कुछ नेताओं और भीड़ को उकसाने वालों ने मिलकर रचा था, और इसके बाद अन्य लोग भी इसमें शामिल हुए।"

अदालत ने अभियोजन पक्ष की दलील पर विचार करते हुए कहा कि इमाम ने 13 दिसंबर, 2019 को एक भाषण में लोगों को उकसाया था। उसने कहा था कि उत्तर भारत के कई राज्यों में मुस्लिमों की बड़ी संख्या है, फिर भी वे क्यों चुप हैं और सार्वजनिक रास्ते क्यों नहीं रोक रहे हैं (चक्का जाम)। अदालत ने यह भी कहा कि इमाम एक पीएचडी छात्र था और उसे अपनी बातें चालाकी से रखी, जिसमें उन्होंने दूसरे समुदायों का नाम नहीं लिया।

अदालत ने कहा, "दिल्ली जैसे बड़े शहर में जहां बड़ी संख्या में गंभीर रूप से बीमार लोग होते हैं, जो तुरंत इलाज के लिए अस्पताल जा रहे होते हैं, चक्का जाम उनकी हालत और भी बिगाड़ सकती है। यदि उन्हें समय पर इलाज नहीं मिलता है, तो उनकी जान भी जा सकती है, जो कि एक प्रकार की गैर इरादतन हत्या हो सकती है।" आदेश में यह भी कहा गया कि चक्का जाम लोगों के जीवन और स्वास्थ्य के अधिकारों का उल्लंघन है। हालांकि अगर भीड़ ने हिंसा या आगजनी नहीं की, फिर भी यह समाज के एक हिस्से द्वारा दूसरे हिस्से के खिलाफ हिंसा फैलाने जैसा होगा।

लगे ये आरोप

अदालत ने कहा, "आरोपी शरजील इमाम सिर्फ भड़काने वाला नहीं था, बल्कि हिंसा भड़काने की एक बड़ी साजिश का मास्टरमाइंड भी था।" इमाम के खिलाफ आईपीसी की कई धाराओं के तहत आरोप लगाने का आदेश दिया गया है, जिनमें उकसाने, आपराधिक साजिश, समूहों के बीच दुश्मनी फैलाना, दंगा करना, अवैध रूप से इकट्ठा होना, गैर इरादतन हत्या का प्रयास, सरकारी काम में रुकावट डालना, आग या विस्फोटक पदार्थ से उत्पात मचाना और पीडीपीपी के तहत आरोप शामिल हैं। बता दें कि यह मामला 11 दिसंबर, 2019 को संसद में नागरिकता संशोधन अधिनियम के पारित होने के बाद, जामिया मिलिया इस्लामिया और शाहीन बाग में हुए 2019-2020 के विरोध प्रदर्शनों से जुड़ा है।

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