ग्लोबल रिस्क के बावजूद इंडियन इकोनॉमी की ग्रोथ तेज रह सकती है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने यह उम्मीद जताई है। उसने 27 मई को जारी अपनी वार्षिक रिपोर्ट (annual report) में यह बात कही है। केंद्रीय बैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है "कई वैश्विक जोखिम के बावजूद इकोनॉमी में तेज और व्यापक रिकवरी आ रही है।"
आरबीआई का कहना है कि सरकारी पूंजीगत खर्च में बढ़ोतरी से प्राइवेट इन्वेस्टमेंट में भी तेजी आ सकती है। इससे ग्रोथ साइकिल की रफ्तार बढ़ेगी। इससे कुल मांग में सुधार देखने को मिल सकता है। नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर प्लान और नेशनल मोनेटाइजेशन पाइप लाइन से भी बुनियादी ढांचे (Infrastructure) पर होने वाले खर्च में बढ़ोतरी आने की उम्मीद है।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि तेजी से हुए टीकाकरण और आर्थिक गतिविधियों के लिए बेहतर संभावनाओं के कारण COVID की तीसरी लहर के बावजूद उपभोक्ता और व्यावसायिक विश्वास ( consumer and business confidence) मजबूत बना हुआ है। हालांकि कुल मांग में पूर्ण सुधार निजी निवेश में आने वाली तेजी पर निर्भर करती है। ग्रोथ की आगे की दशा और दिशा इस बात पर निर्भर करेगी कि सप्लाई से जुड़ी दिक्कतों से निपटने के लिए किस तरह के प्रयास किए जाते हैं और कुल मांग में तेजी लाने और ढ़ांचागत सुधार के लिए किस तरह के मौद्रिक और वित्तीय सुधार किए जाते हैं।
बता दें कि आरबीआई की मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी लंबे समय से महंगाई की तुलना में ग्रोथ पर ज्यादा फोकस कर रही है। ग्रोथ को ध्यान में रखते हुए आरबीआई ने मई 2020 से काफी लंबे समय तक अपने रेपो रेट को रिकॉर्ड निचले स्तर पर बनाए रखा। हालांकि बढ़ती मुद्रा स्फीति (महंगाई) से निपटने के लिए आरबीआई ने अभी हाल में हुई अपनी पॉलिसी मीट में रेपो रेट 0.40 फीसदी बढ़ाकर 4.40 फीसदी कर दिया है। इसके साथ ही CRR में भी 0.50 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है। ऐसा करके आरबीआई बैंकिंग सिस्टम से अतिरिक्त लिक्विडिटी को निकालना चाहता है।
कीमतों में बढ़ोतरी पर आरबीआई का कहना है कि इंडस्ट्रीयल कच्चे माल की कीमतों और परिवहन लागत में बढ़ोतरी के साथ ही ग्लोबल सप्लाई चेन में आने वाली दिक्कत के चलते आगे हमें कोर महंगाई में बढ़ोतरी की उम्मीद नजर आ रही है।