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RBI ने स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी शुरू की, जानिए क्या है इसका मतलब

जब बैंकों के पास जरूरत से ज्यादा पैसे होते हैं तो वे इसे रिवर्स रेपो रेट के तहत आरबीआई के पास रखते हैं। SDF शुरू होने के बाद बैंकों को अपना अतिरिक्त पैसा आरबीआई के पास रखने के लिए एक नई सुविधा उपलब्ध होगी। इस पर उन्होंने 3.75 फीसदी ब्याज मिलेगा

अपडेटेड Apr 08, 2022 पर 1:38 PM
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बैंकिंग सिस्टम में जरूरत से ज्यादा लिक्विडिटी को कम करने के लिए एसडीएफ शुरू की गई है। इस फैसिलिटी के तहत बैंकों को अपना अतिरिक्त फंड आरबीआई के पास डिपॉजिट करने के लिए कोलैटरल की जरूरत नहीं पड़ेगी।

RBI ने शुक्रवार को स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी (SDF) शुरू करने का ऐलान किया। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने शुक्रवार को मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) की बैठक के बाद इसका ऐलान किया। क्या है स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसलिली, इसे क्यों शुरू किया गया है, इसके क्या फायदे हैं? आइए इन सवालों के जवाब जानते हैं।

क्या है एसडीएफ?

शक्तिकांत दास ने कहा कि केंद्रीय बैंक ने स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी शुरू की है। बैंकिंग सिस्टम में कई बार जरूरत से ज्यादा लिक्विडिटी हो जाती है। इससे कई तरह की प्रॉब्लम होती है। बैंकिंग सिस्टम में जरूरत से ज्यादा लिक्विडिटी को कम करने के लिए एसडीएफ शुरू की गई है। इस फैसिलिटी के तहत बैंकों को अपना अतिरिक्त फंड आरबीआई के पास डिपॉजिट करने के लिए कोलैटरल की जरूरत नहीं पड़ेगी।


इसे शुरू करने की सलाह किसने दी थी?

एसएडीएफ लिक्विडिटी को मैनेज करने के लिए आरबीआई का बड़ा टूल होगा। सबसे पहले 2014 में उर्जित पटेल कमेटी ने स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी शुरू करने की सिफारिश की थी। कई बार बैंकों के पास जरूरत से ज्यादा पैसा हो जाता है तो कई बार उनके पास जरूरत से कम पैसे होते हैं। जरूरत से कम पैसे होने पर वे रेपो रेट के तहत आरबीआई से उधार लेते हैं। इसके लिए उन्हें बतौर कौलेटरल गवर्नमेंट सिक्योरिटीज आरबीआई के पास रखने पड़ते हैं।

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SDF में ब्याज की दर क्या होगी?

जब बैंकों के पास जरूरत से ज्यादा पैसे होते हैं तो वे इसे रिवर्स रेपो रेट के तहत आरबीआई के पास रखते हैं। SDF शुरू होने के बाद बैंकों को अपना अतिरिक्त पैसा आरबीआई के पास रखने के लिए एक नई सुविधा उपलब्ध होगी। इस पर उन्होंने 3.75 फीसदी ब्याज मिलेगा। इस फैसिलिटी का फायदा उठाने के लिए किसी तरह की कौलेटरेल की जरूरत नहीं पड़ेगी। आरबीआई ने कहा है कि रिवर्स रेपो आगे भी केंद्रीय बैंक की टूलकिट का अहम हिस्सा बना रहेगा।

सिस्टम में लिक्विडिटी बढ़ने की क्या वजह है?

दरअसल, कोरोना की महामारी की मार इकोनॉमी पर पड़ी थी। आरबीआई ने इकोनॉमी को सहारा देने के लिए लिक्विडिटी बढ़ाने वाले कई उपाय किए थे। इससे बैंकिंग सिस्टम में लिक्विडिटी बहुत बढ़ गई है। इंडस्ट्री और बिजनेस की लोन की मांग कमजोर बनी हुई है। इससे बैंकों के पास काफी पैसा पड़ा हुआ है।

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