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क्या है स्वदेशी अर्थशास्त्र का सिद्धांत जो बदल सकती है देश की सूरत

पश्चिमी अर्थशास्त्र के सिद्धांतों में पले बढ़े अर्थशास्त्रियों ने 'स्वदेशी' मॉडल का अध्ययन करने वाले अर्थशास्त्रियों को कभी भी मुख्यधारा में शामिल ही नहीं होने दिया। इसका सबसे दिलचस्प उदाहरण नागपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा. एम. जी. बोकरे का हैं। उनकी लिखी हुई किताबें जरूर पढ़ना चाहिए। उन्होंने हिंदू धर्मशास्त्रों का अध्ययन कर अर्थशास्त्र पर किताबें लिखी हैं

Arun Anandअपडेटेड Jan 11, 2024 पर 6:50 AM
क्या है स्वदेशी अर्थशास्त्र का सिद्धांत जो बदल सकती है देश की सूरत
'हिंदू इकोनॉमिक्स पुस्तक में स्वदेशी मॉडल की बड़ी स्पष्ट रूपरेखा दी गई है।

पिछले कुछ सालों से नरेंद्र मोदी सरकार की विशिष्ट आर्थिक नीतियों के कारण भारत को आत्मनिर्भर बनाने का विषय एक बार पुनः चर्चा में है। 'स्वदेशी' व 'भारत की आत्मनिर्भरता' एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। लेकिन अब जब इनकी बात हो रही है तो कई जगह आशंका का भी माहौल है। ऐसा होना स्वाभाविक भी है क्योंकि अब तक स्वदेशी अर्थशास्त्र के सिद्धांतों के बारे में बहुत ज्यादा चर्चा अपने यहां नहीं हुई है। ऐसा नहीं है कि इस विषय पर काम नहीं हुआ या इन सिद्धांतों का निरूपण नहीं हुआ। पर जैसा अन्य क्षेत्रों में हाल है वैसा ही अर्थशास्त्र में भी है।

पश्चिमी अर्थशास्त्र के सिद्धांतों में पले बढ़े अर्थशास्त्रियों ने 'स्वदेशी' मॉडल का अध्ययन करने वाले अर्थशास्त्रियों को कभी भी मुख्यधारा में शामिल ही नहीं होने दिया। इसका सबसे दिलचस्प उदाहरण  नागपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा. एम. जी. बोकरे का है। बोकरे घनघोर मार्क्सवादी चिंतक थे। अर्थशास्त्र की उनकी कक्षाएं कम्युनिस्टों के लिए भर्ती शिविर की तर्ज पर चलती थीं। पश्चिमी अर्थशास्त्र का उनका गहन अध्ययन था तथा गांधीवादी अर्थशास्त्र पर उनकी पुस्तक को इस विषय पर संदर्भ पुस्तक का दर्जा प्राप्त था।

बोकरे ने 'मुक्त व्यापार' को दी चुनौती

बोकरे की मित्रता प्रखर चिंतक और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक दत्तोपंत ठेंगड़ी से भी थी। ठेंगड़ी का भी इस विषय पर गहन अध्ययन था और वह 1960 के दशक से ही कह चुके थे कि दुनिया को न पूंजीवाद बचा सकता है न साम्यवाद। वह पंरपरागत 'मुक्त व्यापार' के उस सिद्धांत को भी लगातार चुनौती दे रहे थे। जिसके कारण दुनिया भर में शोषण में लगातार वृद्धि हुई तथा आर्थिक सुधारों के नाम पर गरीब और गरीब होता चला गया तथा अमीर और अमीर होता चला गया। ठेंगड़ी ने बोकरे को प्रेरित किया कि वह हिंदू धर्मशास्त्रों का अध्ययन कर यह जानने का प्रयास करें कि वहां अर्थशास्त्र अथवा आर्थिक सिद्धांतों के बारे में कितनी जानकारी है। ये जानकारी अथवा शास्त्रीय सिद्धांत कितने प्रासंगिक हैं। बतौर वामपंथी बोकरे ने हिंदू शास्त्रों का गहन अध्ययन आरंभ किया और कुछ ही समय में उनकी सोच ही बदल गई।

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