1991 में पीवी नरसिम्हा राव ने 21 जून को देश के 10वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी। इसके ठीक एक दिन बाद राव ने देश को टेलिविजन पर संबोधित किया था। अपने स्थिर अंदाज में नरसिम्हा राव ने देश के लोगों से कहा-अर्थव्यवस्था संकट में है। भुगतान संतुलन की हालत बहुत खराब है। हमारे पास बर्बाद करने के लिए वक्त नहीं है। कोई भी सरल विकल्प नहीं है। हमें अपनी कमर कस लेनी चाहिए और अपनी आर्थिक आजादी को बचाए रखने के लिए जरूरी बलिदान देने के लिए तैयार हो जाएं।
नरसिम्हा राव देश की खस्ता आर्थिक हालत को ठीक करने के लिए तैयार थे। इस काम के लिए उन्होंने मनमोहन सिंह को चुना था जो सरकार में वित्त मंत्री थे। उस वक्त मनमोहन सिंह ने भारतीय रुपये का 72 घंटों के भीतर दो बार अवमूल्यन किया था। पहला, 1 जुलाई 1991 और दूसरा 3 जुलाई 1991 को। मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने अपनी किताब 1991: HOW PV NARSIMHA RAO MADE HISTORY में लिखा है कि इस पूरी एक्सरसाइज का नाम Hop, Skip and Jump रखा गया था। मनमोहन सिंह के साथ इस काम में भागीदार थे तत्कालीन आरबीआई डिप्टी गवर्नर सी. रंगराजन।
पहले स्टेप के बाद रुके थे पीवी के पांव
बारू ने किताब में लिखा है-एक जुलाई को पहले स्टेप के बाद पीवी के पांव थोड़ा रुके थे क्योंकि अवमूल्यन भारतीय राजनीति में एक बुरा शब्द था! पीवी 1966 में हुए अवमूल्यन के बारे में जानते थे, तब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की काफी आलोचना हुई थी। उस वक्त इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री कार्यालय और वित्त मंत्रालय के अधिकारियों को ताकीद की थी वो राज्य के मुख्यमंत्रियों को भी इस निर्णय के बारे में जानकारी दें। मुद्रा का अवमूल्यन सिर्फ आर्थिक निर्णय नहीं था बल्कि एक राजनीतिक निर्णय भी था।
पहले स्टेप के बाद आलोचनाओं पर बदला था रुख
बारू आगे लिखते हैं- पहली बार अवमूल्यन के बाद जब पीवी के आलोचकों ने सरकार पर हमले किए तब प्रधानमंत्री ने वित्तमंत्री यानी मनमोहन से दूसरे स्टेप को रोकने के लिए कहा था। लेकिन 1966 के एपिसोड से भलीभांति वाकिफ मनमोहन सिंह ने फैसला किया कि अगर प्लान के मुताबिक दूसरी बार अवमूल्यन नहीं हुआ तो यह कभी भी नहीं हो पाएगा। दरअसल 1966 में जिन अर्थशास्त्रियों ने अवमूल्यन के एपिसोड को संभाला था वो या तो मनमोहन के दोस्त थे या फिर मार्गदर्शक। इन अर्थशास्त्रियों में केएन राज, आईजी पटेल, डीआर गाडगिल, जगदीश भगवती, पीएन धर और मनु श्रॉफ शामिल थे।
कैसे लिया निर्णय, खुद बताया था
किताब के मुताबिक बाद में मनमोहन सिंह ने खुद कहा था-इस फैसले का पहले से विरोध हो रहा था लेकिन वह नियंत्रित था। इसलिए मैंने कहा कि 3 जुलाई तक हमें काम पूरा कर लेना है। प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव दूसरे स्टेप को लेकर संदेह में थे और मुझसे कहा-इसे रोक दो। लेकिन जब मैं रंगराजन से मिला तो उन्होंने कहा कि वह काम पूरा कर चुके हैं।
जब दोनों बार अवमूल्यन पूरा हो गया तब सरकारी प्रवक्ताओं ने बाजार को तेजी आश्वस्त किया कि अब अवमूल्यन नहीं होगा। रुपये को अपना जरूरी स्तर मिल गया है और फिर बाजार भी स्टैबलाइज हो गया। अवमूल्यन की इस प्रक्रिया के बाद ही सरकार ने उदारीकरण की पूरी प्रक्रिया की शुरुआत की थी जिसे देश में आज भी याद किया जाता है। जिसने भारत की अर्थव्यवस्था की दशा-दिशा बदल दी।
मनमोहन जानते थे- देश को अभी क्या चाहिए
मनमोहन सिंह 92 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कह गए हैं। लेकिन उनके आर्थिक सुधारों के लिए पीढ़ियों तक उन्हें याद रखा जाएगा। आर्थिक सुधार के निर्णय लेते वक्त उन्हें सिर्फ सख्त फैसले ही नहीं लेने थे, बल्कि राजनीति का दबाव भी झेलना था। लेकिन उस वक्त वह जानते थे कि क्या ज्यादा जरूरी है, इसलिए नरसिम्हा राव के रोकने के बावजूद भी रुपये के दूसरी बार अवमूल्यन का फैसला ले पाए थे।