नेहरु नहीं, अब मोदी की राह पर भारत: कैसे राम-मंदिर ने बदल दिया 'धर्मनिरपेक्षता' पर चला आ रहा जनमत

माथे पर चंदन का लेप, सुनहरे रंग का कुर्ता और और सफेद अंगवस्त्रम के साथ मोदी का यह दंडवत प्रणाम, विभाजन के ठीक बाद देश में धर्मनिरपक्षेता (Secularism) पर बनी सहमति के अंत का दृश्य दिखाता है। नेहरुवादी विचारधार की अगुआई में आजाद भारत के पहले कुछ दशकों तक धर्मनिरपेक्षता की छवि हावी रही थी

अपडेटेड Jan 22, 2024 पर 7:16 PM
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Ayodhya Ram Mandir: राम मंदिर में सालाना 5 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान है

अयोध्या (Ayodhya) के नवनिर्मित राम मंदिर (Ram Mandir) में रामलला (Ram Lalla) की मूर्ति के सामने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 'दंडवत प्रणाम' कर भारतीय गणतंत्र के इतिहास में एक नए युग की शुरुआत कर दी है। दंडवत प्रणाम को हिंदू परंपरा में भगवान के सामने पूर्ण समर्पण का प्रतीक माना जाता है। माथे पर चंदन का लेप, सुनहरे रंग का कुर्ता और और सफेद अंगवस्त्रम के साथ मोदी का यह दंडवत प्रणाम, विभाजन के ठीक बाद देश में धर्मनिरपक्षेता (Secularism) पर बनी सहमति के अंत का दृश्य दिखाता है। नेहरुवादी विचारधार की अगुआई में आजाद भारत के पहले कुछ दशकों तक धर्मनिरपेक्षता की छवि हावी रही थी।

पीएम मोदी की अगुआई में 'नई बीजेपी' ने भगवान राम पर लंबी सांस्कृति लड़ाई जीती है। मोदी ने खुद व्यक्तिगत रूप से अयोध्या में राम की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की अगुआई की और इसे 'दिव्य कार्यक्रम' बताया। इस प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के जरिए पीएम मोदी ने एक तरह से हिंदू धर्म पर देश में बनी एक नई सांस्कृतिक सहमति का भी उद्घाटन किया है। उन्होंने खुद अयोध्या के अपने संबोधन में कहा: "सदियों के बाद, राम घर लौट आए हैं...यह एक "नए युग" की शुरुआत है।

देश की जानी-मानी हस्तियों और हजारों श्रद्धालुओं के बीच पीएम मोदी ने अपने भाषण में जिन राजनीतिक शब्दावली का इस्तेमाल किया, वह बीजेपी की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। यह रणनीति धार्मिकता, सांस्कृतिक पहचान और हिंदू होने की भावना को एक नए गौरवान्वित सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के साथ जोड़ती है जो हिंदू कल्चर के प्रतीकों में गहराई से शामिल है।


इस बात में कोई दो राय नहीं है कि यह सांस्कृतिक मुद्दा बीजेपी के मुख्य समर्थकों को अलावा भी हिंदुओं की एक बड़ी आबादी तक पहुंचा है। अयोध्या आंदोलन की शुरुआत भले ही धर्म पर केंद्रित आंदोलन के रूप में हुई थी। लेकिन मोदी की राजनीतिक चतुराई ने इस आंदोलन के अंत को नए भारत के कायाकल्प के लिए एक सांस्कृतिक उत्प्रेरक (जो धार्मिकता से अलग है) के रुप में सफलतापूर्वक स्थापित किया है।

देश के कई सिनेमाघरों में फिल्मों की जगह प्राण-प्रतिष्ठा समारोह को पॉपकार्न के साथ लाइव दिखाना, देश भर के गली-मोहल्लों में दिवाली की तरह जश्न के समारोह, ट्रैफिक लाइट और सड़कों के किनारे राम मंदिर के झंडे बिकने आदि को कभी फ्रिंज एलीमेंट की गतिविधियां माना जाता था, लेकिन आज यह मुख्यधारा की लोकप्रिय संस्कृति का केंद्र है। ऐसा लगता है कि मोदी ने धार्मिकता से कहीं आगे बढ़कर अधिक गहरी बात को छुआ है।

मोदी ने वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर जैसे कई प्राचीन धार्मिक स्थलों के नवीनीकरण की अगुआई कर सावधानी से हिंदू सांस्कृतिवाद की एक छवि गढ़ी है। हालांकि कई उदारवादी मोदी की इस रणनीति को महज चुनावी लामबंदी के उद्देश्य से की कई कोशिशें बता कर खारिज कर देते हैं। राजनीतिक वैज्ञानिक प्रताप भानु मेहता जैसे कई टिप्पणीकारों ने यहां तक कहां कि 'यह वह पल है, जब हिंदू धार्मिक व्यक्ति नहीं रह जाता है।' वो अपने विचारों में इससे ज़्यादा गलत शायद ही कभी हो सकते हैं।

प्राण-प्रतिष्ठा का ऐतिहासिल पल सांस्कृतिक महत्व और इसकी राजनीतिक अर्थव्यवस्था मोदी के 'न्यू इंडिया' के विचार के साथ गहराई से जुड़ी हुई है। साथ ही यह भारत को नेहरूवादी अतीत से निकालकर एक नई राह पर ले जाने के क्रांतिकारी बदलाव शुरुआत भी करती है। इस बदलाव की 5 प्रमुख विशेषताएं हैं-

मंदिरों को लेकर नेहरु और मोदी अलग-अलग छोर पर

पीएम मोदी ने राम मंदिर को जोर-शोर से वकालत की जबकि जवाहर लाल नेहरु ने 1951 में सोमनाथ मंदिर के पुनर्निमाण में किसी भी प्रकार से सरकार की भूमिका का तगड़ा विरोध किया था। इस मामले को लेकर उनकी तत्कालीन केंद्रीय मंत्री केएम मुंशी से अच्छी-खासी बहस भी हुई थी। नेहरु का जोर इस बात पर था कि देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद सोमनाथ मंदिर के समारोह में व्यक्तिगत हैसियत से उपस्थित हों, न कि भारतीय गणतंत्र के पहले नागरिक के रूप में। इस तरह से उन्होंने अभी-अभी हाल ही में धार्मिक आधार पर दो हिस्से में टूटकर स्वतंत्र हुए देश के लिए अपना खाका पेश किया।

खास बात ये है कि बांधों को आधुनिक भारत के मंदिर कहने वाले नेहरु ने मंदिरों के पुननिर्माण में सरकार की भागीदारी का विरोध किया लेकिन उस समय तक भारत संवैधानिक तौर पर सेक्युलर नहीं था। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में यह शब्द वर्ष 1976 में इंदिरा गांधी की सरकार में सोशलिस्ट यानी समाजवाद के साथ जोड़ा गया था। इसे आपातकाल के दौरान 42वें संवैधानिक संशोधन के तहत जोड़ा गया था।

nehrumodi

वहीं मोदी की बात करें तो मंदिरों के लिए उनकी विचारधारा पूरी तरह विपरीत है और यह सिर्फ अयोध्या तक ही सीमित नहीं है। नेहरु ने राजनीति में हिंदुवाद से दूरी बरती और स्वतंत्र भारत के पहले आम चुनाव में उन्होंने चुनाव ही इस मुद्दे के खिलाफ लड़ा। उन्होंने खुद को जनसंघ, हिंदू महासभा और हिंदू अधिकारों के खिलाफ लड़ा। इसका मतलब हुआ कि जिला और राज्य लेवल पर कांग्रेस के कैडर और लीडर्स पक्के धार्मिक थे लेकिन वर्षों तक टॉप लीडरशिप अलग पब्लिक कल्चर का पालन करती रही।

दूसरी तरफ मोदी ने अयोध्या में "राम से राष्ट्र" पर जोर दिया और कहा कि राम मंदिर ने "सदियों की गुलामी" को खत्म कर दिया। इससे पहले पीएम मोदी ने कहा था कि "काशी में विश्वनाथ धाम हो या केदार बाबा का धाम; आज भारत का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक गौरव बहाल हो रहा है। आज नया भारत अपनी आधुनिक आकांक्षाओं के साथ-साथ अपनी प्राचीन विरासत और पहचान को भी उसी जोश और उत्साह के साथ आगे बढ़ा रहा है और हर भारतीय को इस पर गर्व है। ये आध्यात्मिक स्थल हमारी आस्था के साथ-साथ नई संभावनाओं का माध्यम भी बन रहे हैं।”

टेंपल टाउन और घरेलू पर्यटन

संस्कृति और प्रतीकों को बढ़ावा देने के अलावा इसमें राजनीतिक इकोनॉमी का भी नए सिरे से पुनर्निर्माण शामिल है। इसके तहत आर्थिक योजनाओं और गतिविधियों को एक नए तरह के भारतीय कंज्यूमर्स और नागरिकों को ध्यान में रखकर तैयार किया जा है, खासतौर से घरेलू पर्यटक।

पीएम मोदी की अगुआई में मंदिरों पर व्यापक नजरिए से ध्यान दिया जा रहा है। इसमें इंफ्रास्ट्रक्चर, विकास और घरेलू पर्यटन के साथ-साथ सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर भी गहरा ध्यान दिया गया है। पीएम मोदी की अगुआई में पिछले कुछ सालों में धार्मिक स्थलों का कैसे बड़े पैमाने पर कायाकल्प किया गया है, इसे आप नीचे दिए टेबल से देख सकते हैं-

Temple Redevelopment Projects under PM Modi

धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल करने की राजनीतिक रणनीति में धार्मिक पर्यटन का आर्थिक पहलू भी शामिल है। आगरा का ताजमहल भारतीय पर्यटन का वैश्विक चेहरा है। उत्तर प्रदेश के सरकारी अधिकारियों का कहना है कि राज्य में सबसे ज्यादा विदेशी सैलानी आगरा में पहुंचते हैं, जबकि प्रयागराज , अयोध्या, गोवर्द्धन और वृंदावन में भी बड़े पैमाने पर लोग आते हैं, जिनमें से ज्यादातर घरेलू तीर्थयात्री होते हैं। प्रयागराज में

ब्रोकरेज फर्म जेफरीज (Jefferies) के अनुमानों के मुताबिक, राम मंदिर में सालाना 5 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान है। उत्तर प्रदेश सरकार के अनुमानों के मुताबिक, अयोध्या में अगले 6 महीनों में 2 करोड़ श्रद्धालु और पर्यटक पहुंच सकते हैं। इसका मतलब यह है कि यहां रोजाना करीब 1 लाख श्रद्धालु और पर्यटकों के आने का अनुमान है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) के अनुमानों के मुताबिक, घरेलू पर्यटकों द्वारा उत्तर प्रदेश में किया जाने वाले खर्च का आंकड़ा इस साल 4 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है, जो पिछले साल का दोगुना है। पिछले साल यह आंकड़ा 2.2 लाख करोड़ रुपये था। इरस बढ़ोतरी की मुख्य वजह राम मंदिर का निर्माण है।

मंदिरों को जोड़ना

इस रणनीति के तहत नए ट्रांसपोर्ट लिंकेज तैयार करना बेहद अहम है। पर्यटन के आंकड़े दिल्ली और अयोध्या को जोड़ने के लिए हाई स्पीड बुलेट ट्रेन चलाने का आधार पेश कर रहे हैं। बहरहाल, यह प्रस्ताव फिलहाल सिर्फ चर्चा के दायरे में है। इसके अलावा, प्रस्तावित दिल्ली-वाराणसी बुलेट ट्रेन रूट पर आगरा, मथुरा और प्रयागराज जैसे धार्मिक स्थलों के लिए बेहतर कनेक्टिविटी मुहैया कराने का प्रस्ताव है। नई स्वेदश दर्शन स्कीम के तहत राष्ट्रीय स्तर पर 25 थीम आधारित सर्किट डिवेलप किए जा रहे हैं, जिनमें रामायण सर्किट और बौद्ध सर्किट भी शामिल हैं। उदाहरण के तौर पर IRCTC ने स्पेशल टूरिस्ट ट्रेन 'श्री रामायण एक्सप्रेस' लॉन्च किया है, जिसमें सिर्फ शाकाहारी भोजन ही उपलब्ध कराया जाएगा। यह ट्रेन तीर्थयात्रियों को 18 दिनों में रामायण से जुड़ी जगहों के दर्शन कराएगी।

उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने राज्य में राम, कृष्ण और बुद्ध के टूरिज्म सर्किट को डिवेलप करने के लिए 1,240 करोड़ रुपये आवंटित किए थे। उनकी सरकार ने 2019-20 में इस प्रोजेक्ट के तहत अयोध्या को 300 करोड़ से ज्यादा और यूपी ब्रज तीर्थ के लिए 125 करोड़ रुपये से ज्यादा आवंटित किए थे। इसके अलावा, वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर तक जाने वाले सड़क के लिए 200 करोड़ रुपये से ज्यादा आवंटित किए गए थे। इन सभी परियोजनाओं का मकसद अयोध्या को फिर से 'वैश्विक नगरी' बनाना है, जहां के नए हवाई अड्डे से दक्षिण कोरिया, फिजी, जापान, नेपाल और थाइलैंड की फ्लाइट्स मिलेंगी।

Major-Development-Projects-in-Ayodhya

हिंदू सभ्यता और सॉफ्ट पावर का आइडिया

चीन जहां अपने सॉफ्ट पावर के लिए मंदारिन और कई तरह के सांस्कृतिक टूल का इस्तेमाल करता है, वहीं बीजेपी का मकसद भारत की ग्लोबल ब्रांडिंग हिंदुत्व की सांस्कृतिक ताकत का इस्तेमाल करना है। इसका एक बेहतर उदाहरण मोदी सरकार द्वारा योगा का प्रचार-प्रसार है, जिसको लेकर प्रधानमंत्री खुद राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आगे रहते हैं। संयुक्त राष्ट्र के अपने संबोधन में मोदी ने खुद 'योग दिवस' लेकर प्रस्ताव पेश किया था। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की आम सभा के 69वें सत्र को संबोधित करते हुए कहा था, 'योग हमारी प्राचीन परंपरा का अमूल्य वरदान है।'

हिंदू सांस्कृतिक शक्ति का आइडिया अब भी अपने शुरुआती दौर में है, लेकिन इन बयानों से ऐसे भारत को बनाने का चित्र उभरता है, जिसे अपनी हिंदू सांस्कृतिक पंरपरा पर गर्व हो। बीजेपी ने 9 सितंबर, 2018 को अपने राजनीतिक प्रस्ताव में 'न्यू इंडिया' का नारा दिया था। साथ ही, बीजेपी का इरादा देश में ऐसा माहौल तैयार करना है, जो अपनी पहचान के लिए हिंदू परंपराओं की तरफ देखे।

निश्चित तौर पर भारत को हिंदू सभ्यता के प्रतीक के तौर पर स्थापित करने का मकसद है। इसकी जड़ें हिंदू शक्ति के तौर पर भारत को पेश करने की अवधारणा से जुड़ी हैं, जो अपनी परंपराओं से युक्त हो। यह एक ऐसा भारत होगा, जहां प्राचीन हिंदू परंपराएं ताकतवर रूप में मौजूद होंगी और यह मुल्क सैम्युअल हंटिंग्टन (Samuel Huntington) के 'स्विंग स्टेट' की तरह काम करेगा। हंटिंग्टन ने इस जुमले का प्रयोग अपनी किताब क्लैश ऑफ सिविलाइजेशंस (Clash of Civilizations) में किया है। दरअसल, हंटिग्टन की राय है कि स्थानीय राजनीति की दिशा 'जातीय/नस्लीय राजनीति' की तरफ मुड़ जाएगी, जबकि ग्लोबल राजनीति 'सभ्यताओं की राजनीति' बन जाएगी। दूसरे शब्दो में कहें तो 'सांस्कृतिक इकाइयां' स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सत्ता के बंटवारे का मुख्य आधार बन जाएंगी: सिनिक (चाइनीज), इस्लामिक, जापानी, ऑर्थोडॉक्स (रूसी), पश्चिमी (यूरोप, उत्तर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड), लैटिन अमेरिकी, अफ्रीकी और हिंदू (भारत)।

'ढांचागत' बदलाव, 'नया भारत' और विरासत

अयोध्या, बाकी मंदिर परियोजनाएं, पंरपराओं का नया अंदाज और सांस्कृतिक प्रतीकों पर फोकस प्रधानमंत्री मोदी की उन परियोजनाओं के साथ मेल खाते हैं, जो भारत का 'विजुअल भूगोल' बदल रहे हैं। नया सेंट्रल विस्टा और नई संसद का निर्माण आदि, देश में बदलते हुए उस परदृश्य का भौतिक प्रतीक हैं, जिसे मोदी 'न्यू इंडिया' का आइडिया बताते हैं। भारत के 'विजुअल भूगोल' में यह बदलाव दीर्घकालिक, व्यवस्थित और राष्ट्र के वैकल्पिक आइडिया से जुड़ा है। राष्ट्र का यह वैकल्पिक, नेहरू के आइडिया से मौलिक रूप से अलग है। मोदी ने आखिरकार 34 साल बाद पार्टी के राम मंदिर के वादे को पूरा कर दिया। तकरीबन 34 साल पहले बीजेपी ने पालमपुर में प्रस्ताव पेश कर राम मंदिर को अहम राजनीतिक मुद्दा बनाया था। बहरहाल, राम राज्य का आइडिया उतनी ही आर्थिक है, जितना सांस्कृतिक। हमें इस चुनौती की दिशा में भी आगे बढ़ना जरूरी है।

(नलिन मेहता मनीकंट्रोल के मैनेजिंग एडिटर और इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एशियन स्टडीज, नेशनल यूनिवर्सिटी सिंगापुर में नॉन-रेजिडेंट सीनियर फेलो हैं। वह 'बीजेपी: मोदी एंड द मेकिंग ऑफ द वर्ल्ड्स लार्जेस्ट पॉलिटिकल पार्टी' किताब के लेखक भी हैं।)

Nalin Mehta

Nalin Mehta

First Published: Jan 22, 2024 6:20 PM

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