भारत ने इंटरनेशनल सोलर अलायंस (ISA) की ग्लोबल सोलर फैसिलिटी में 2.5 करोड़ डॉलर निवेश करने और एंकर इनवेस्टर बनने का वादा किया है। इससे अफ्रीका में सोलर प्रोजेक्ट्स में प्राइवेट सेक्टर को निवेश करने में मदद मिलेगी। इंटरनेशनल सोलर अलायंस के डायरेक्टर जनरल अजय माथुर ने मनीकंट्रोल को दिए इंटरव्यू में यह बात कही।
उन्होंने कहा कि नई दिल्ली में जी 20 (G20) के घोषणा पत्र की सबसे बड़ी बात यह रही है कि विकसित और विकासशील देशों ने इस बात पर सहमति जताई कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई के लिए विकसित देशों को संसाधन उपलब्ध कराने की जरूरत है। साथ ही, इसके लिए वित्तीय ढांचे की जरूरत होगी, जो सतत विकास के लिए सतत वित्तीय विकल्प की दिशा में एक अहम कदम है।
उनका कहना था कि घोषणा पत्र में ग्रीन डिवेलपमेंट समझौता काफी अहम है, क्योंकि यह रिन्यूएबल एनर्जी को इस हद तक बढ़ाने की मांग करता है कि लोग स्वाभाविक तरीके से इस विकल्प को आजमाने लगेंगे। इसका मतलब यह है कि हमें ऐसे उपाय करने की जरूरत, जिससे रिन्यूएबल एनर्जी की लागत न सिर्फ कम हो, बल्कि इसके इस्तेमाल में सहूलियत हो। उनके मुताबिक, इसके लिए सोलर कोल्ड स्टोरेज, सोलर पंप आदि डिवेलप कर उन्हें उपलब्ध कराने की जरूरत है, ताकि लागत इसमें बाधा नहीं बने।
माथुर ने कहा कि अलायंस का इरादा कार्बन उत्सर्जन को जल्द से जल्द जीरो करना है। यहां 'जल्द से जल्द' का मतलब साल 2050 या 2060 है। इस मामले में भारत का लक्ष्य 2070 तक नेट जीरो के आंकड़े तक पहुंचना है। इसका मतलब है कि देश के ऊर्जा क्षेत्र को 2050 तक इस हिसाब से तैयार होना पड़ेगा। लिहाजा, भाररत को ज्यादा से ज्यादा रिन्यूएबल सेगमेंट की तरफ शिफ्ट करना पड़ेगा हालांकि, उनका यह भी कहना था कि कोयले की जरूरत बनी रहेगी, क्योंकि रात में सूरज की रोशनी नहीं होने और कई अन्य परिस्थितियों में भी इसकी जरूरत पड़ेगी।
यह पूछे जाने पर कि घोषणा पत्र की वजह से 100 अरब डॉलर का वह मुद्दा कमजोर नहीं हुआ है जो विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को देने की बात है, माथुर का कहना था कि जहां तक घोषणा पत्र का सवाल है, तो इसमें इस बात पर सहमति जताई गई है कि इस साल विकसित देशों की तरफ से क्लाइमेट फाइनेंस के लिए 100 अरब डॉलर दिए जाएंगे। हालांकि, क्लाइमेंट फाइनेंस के तहत भारत जैसे विकाशील देशों को भी योगदान करना होगा।