सन 2000 में कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए हुए सीधे मुकाबले में सोनिया गांधी ने जितेंन्द्र प्रसाद को भारी मतों से हरा दिया था। 7542 वैध मतों में से जितेंद्र प्रसाद को सिर्फ 94 मत मिले थे। 29 अक्तूबर 2000 को जब जितेंद्र प्रसाद ने अध्यक्ष पद की उम्मीदवारी का परचा भरा तो वे और उनके कुछ समर्थक उत्साह में थे।
क्योंकि अनेक कांग्रेसियों ने उनसे गुपचुप बातचीत करके जितेंद्र प्रसाद का मनोबल बढ़ा दिया था।
पर, पर्चा भरते समय जितेंद्र प्रसाद के साथ सिर्फ लोक सभा सदस्य बेगम नूर बानो और सुजान सिंह बुंदेला तथा राज्य सभा सदस्य खान गुफरान जाहिदी थे। जितेंद्र प्रसाद के जाने माने दोस्त के.विजय भास्कर रेड्डी, वीरभद्र सिंह, जे.बी.पटनायक, नवल किशोर शर्मा और पीवी नरसिंह राव ने भी उनका साथ नहीं दिया। जितेंद्र प्रसाद की लड़ाई सिर्फ कुश्ती नहीं थी। वास्तविक लड़ाई थी। जो लोग जितेंद्र प्रसाद के साथ थे, उनमें से कई नेता व्यक्तिगत बातचीत में यह कह रहे थे कि हमें सोनिया
गांधी से विरोध नहीं है। हमें उनके सलाहकारों से विरोध है। इसलिए हम चाहते हैं कि जितेंद्र प्रसाद को कम से कम 25 प्रतिशत मत मिल जाए।
उसका लाभ यह होगा कि सोनिया गांधी कांग्रेस के एक गुट की, भले वह बहुमत गुट होगा,नेता बन कर रह जाएंगी। फिर तो उसका असर उनके आगे के कामकाज पर पड़ेगा। पर, ऐसा हो नहीं सका। जितेंद्र प्रसाद के गुट को उम्मीद थी कि प्रदेश कांग्रेस शाखाओं के असंतुष्ट नेता छिपे तौर पर उनके पक्ष में मतदान करेंगे।
किंतु कई कारणों से ऐसा नहीं हो सका।बताया गया कि पद पाने के लोभ में वैसे असंतुष्ट नेता भी सोनिया जी से मिले गए। खुद जितेंद्र प्रसाद ने चुनाव अभियान के दौरान कभी सोनिया गांधी की व्यक्तिगत आलोचना नहीं की। हां, उनके आसपास रहनेवाले सलाहकारों की उन्होंने जरूर आलोचना की।
वैसे भी इतिहास बताता है कि कांग्रेस में लोकतांत्रिक ढंग से चुनाव जीत कर आए अध्यक्ष का कार्यकाल पूरा नहीं हो पाता। कांग्रेस की बनावट ही ऐसी है।
सन 1939 में अध्यक्ष चुने गए नेताजी सुभाषचंद्र बोस अपना कार्यकाल पूरा न कर सके थे। यही हाल सन 1950 में अध्यक्ष पद के चुनाव में विजयी पुरुषोत्तम दास टंडन का हुआ। अध्यक्ष चुने गए ब्रह्मानंद रेड्डी (1977)और सीताराम केसरी(1997) का भी वही हाल हुआ।
सन 2000 के चुनाव को पूरी तरह लोकतांत्रिक दिखाने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केंद्रीय चुनाव प्राधिकार का गठन किया था। पार्टी की तंद्रा तोड़ने के लिए इस लोकतांत्रिक चुनाव को रामबाण दवा बताया गया। बुजुर्ग कांग्रेसी नेता राम निवास मिर्धा पर चुनाव संचालित कराने का भार सौंपा गया।
किंतु जैसे ही जितेंद्र प्रसाद ने नामांकन पत्र भरा,सोनिया गांधी के समर्थकगण कांग्रेस मुख्यालय के समक्ष जितेंद्र प्रसाद का पुतला दहन करने लगे।मानो सोनिया जी के खिलाफ उम्मीदवार बन कर उन्होंने कोई अपराध कर दिया हो। वैसे चुनाव के बाद में कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों ने बताया कि जरूरत से अधिक अंतर से सोनिया गांधी की जीत का गलत संदेश गया।
एक सांसद ने तब कहा था कि "सोनिया गांधी ने सच्ची लोकतांत्रिक नेता बनने का सुनहरा अवसर खो दिया।" एक दूसरे कांग्रेसी ने कहा कि "क्या होता यदि 10-15 प्रतिशत वोट जितेंद्र प्रसाद पा लेते?पर, उनके समर्थकों को जितेंद्र प्रसाद से दूर कर दिया गया। इससे जनाधार वाले एक बड़े नेता हाशिए पर पहुंच गए हैं। इससे कुल मिलाकर अंततः पार्टी का नुकसान ही होगा।"
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक मामलों के जानकार हैं)