पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी (Gopalkrishna Gandhi) ने आगामी राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए विपक्षी दलों के नेताओं के प्रस्ताव को सोमवार को ठुकरा दिया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति चुनाव में किसी ऐसे व्यक्ति को उम्मीदवार बनाना चाहिए जिसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर सहमति हो और विपक्षी एकता सुनिश्चित हो।
77 वर्षीय गोपालकृष्ण गांधी ने कहा कि विपक्षी दलों के कई नेताओं ने उन्हें राष्ट्रपति पद के चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार के तौर पर उनके नाम पर विचार किया, जो उनके लिए सम्मान की बात है। गांधी ने कहा, "मैं उनका अत्यंत आभारी हूं। लेकिन इस मामले पर गहराई से विचार करने के बाद मैं देखता हूं कि विपक्ष का उम्मीदवार ऐसा होना चाहिए जो विपक्षी एकता के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर आम सहमति पैदा करे।"
गांधी ने कहा, "मुझे लगता है कि और भी लोग होंगे जो मुझसे कहीं बेहतर काम करेंगे। इसलिए मैंने नेताओं से अनुरोध किया है कि वे ऐसे व्यक्ति को अवसर दें। भारत को ऐसा राष्ट्रपति मिले, जैसे कि अंतिम गवर्नर जनरल के रूप में राजाजी (सी राजगोपालाचारी) थे और जिस पद की सबसे पहले शोभा डॉ राजेंद्र प्रसाद ने बढ़ाई।"
विपक्ष का प्रस्ताव ठुकराने वाले तीसरे व्यक्ति
गोपालकृष्ण गांधी तीसरे व्यक्ति है, जिन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष का उम्मीदवार बनने से इनकार किया है। इससे पहले एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार और नेशनल कॉनफ्रेंस के प्रेसिडेंट फारूक अब्दुल्ला ने भी विपक्ष की तरफ से संयुक्त उम्मीदवार बनने के प्रस्ताव को ठुकराया था।
उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार रह चुके हैं गोपालकृष्ण गांधी
गोपालकृष्ण गांधी इससे पहले साल 2017 में विपक्ष की तरफ से उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रहे थे। इस चुनाव में उन्हें 214 वोट मिले थे, जबकि एनडीए के उम्मीदवार वेकैंया नायडू को 516 वोट मिले थे और वो विजयी रहे थे। गोपालकृष्ण गांधी फिलहाल अशोका यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं, जहां वह हिस्ट्री और पॉलिटिक्स के प्रोफेसर हैं।
महात्मा गांधी के परपोते हैं गोपालकृष्ण गांधी
बता दें कि गोपालकृष्ण गांधी, महात्मा गांधी के परपोते हैं और सी राजगोपालाचारी के परनाती हैं। गोपालकृष्ण गांधी 1968 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। वह दक्षिण अफ्रीका और श्रीलंका में भारत के उच्चायुक्त के रूप में भी काम कर चुके हैं। इसके अलावा वह भारत के राष्ट्रपति के तौर पर भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं। 2003 में रिटायर होने से पहले वह नार्वे और आइसलैंड में भारत के राजदूत भी रहे थे। रिटायरमेंट के बाद भारत सरकार ने उन्हें पश्चिम बंगाल का राज्यपाल (2004 से 2009) नियुक्त किया था।