किसी बेरोजगार, लेकिन महत्वाकांक्षी एवं मेहनती युवा को उसके सपने साकार करने के लिए की गई मदद है, जो आर्थिक के साथ ही एक सामाजिक पहल भी है। इसलिए मुद्रा योजना की समीक्षा सिर्फ आर्थिक पैमानों पर करना गलती होगी
मुद्रा लोन पर एक बार फिर बहस उठ खड़ी हुई है। इस बार उठे बहस के मूल में पूर्व वित्त मंत्री पी चिंदबरम का एक ट्वीट है, जिसमें उन्होंने इस पूरी योजना को बेकार बता दिया और भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के एक आंकड़े को आधार बना कर कहा कि सिर्फ 3.73 लाख रुपये में कौन सा बिजनेस खड़ा किया जा सकता है।
दरअसल SBI ने अपने एक आधिकारिक बयान में इस बात पर गौरव जताया था कि 2021-22 के दौरान तमिलनाडु-पुडुचेरी जोन में 26750 मुद्रा लाभार्थियों को 1000 करोड़ रुपये का लोन दिया गया। चिदंबरम ने कहा कि यह रकम हर व्यक्ति के लिए औसत 3.73 लाख रुपये होती है और इतनी रकम में कोई क्या बिजनेस खड़ा कर सकता है और कितने रोजगार पैदा किए जा सकते हैं। और इसी आंकड़े को आधार पर बना कर पूर्व वित्त मंत्री ने यह भी कह दिया कि इसी कारण मुद्रा योजना में दिए गए कर्ज सबसे ज्यादा डूबे हैं।
इसके कुछ ही समय बाद पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार केवी सुब्रह्मण्यम ने मुद्रा योजना पर चिदंबरम की आलोचना का जवाब देते हुए कहा कि पिछले 7 वर्षों में इसके तहत सरकार ने 18.83 लाख करोड़ रुपये वितरित किए गए हैं, जिससे समाज के सबसे कमजोर तबकों को बहुत लाभ हुआ है। सुब्रह्मण्यम ने यह भी कहा कि बंधन बैंक के बोर्ड में शामिल रहते हुए उन्होंने देखा है कि किस तरह 25 हजार रुपये के कर्ज से भी गरीब तबकों को लाभ होता है, इसलिए चिदंबरम का 3.73 लाख रुपये को कारोबार शुरू करने के लिए नाकाफी बताना आश्चर्यजनक है।
2015 में लॉन्च प्रधानमंत्री मुद्रा योजना को शुरू से इसी आधार पर असफल बताने की कोशिश की जाती रही है कि इसमें NPA की हिस्सेदारी बहुत बड़ी है। तो क्या सच में मुद्रा योजना में दिए सारे कर्ज डूब रहे हैं और यह योजना, जिसे प्रधानमंत्री अपनी सरकार की बड़ी उपलब्धियों में शुमार करते हैं, एक असफल योजना है?
अप्रैल 2015 में यह योजना लॉन्च करते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, “लोगों को लगता है कि बड़ी कंपनियां ही ज्यादा रोजगार पैदा करती हैं। लेकिन सच यह है कि इन बड़ी कंपनियों ने सिर्फ 1.25 करोड़ लोगों को रोजगार दिया है, जबकि 12 करोड़ लोगों को रोजगार देश का MSME सेक्टर दे रहा है।” इसी विजन के साथ मुद्रा योजना की शुरूआत की गई थी। योजना के तहत अब तक लगभग साढ़े 7 वर्षों में 37 करोड़ से ज्यादा लोन खातों में लगभग 20 लाख करोड़ रुपये दिए गए हैं। यह कोई छोटी रकम नहीं है। लेकिन रकम से ज्यादा महत्वपूर्ण यह समझना है कि यह लोन पाने वाले लोग कौन हैं?
वर्ष PMMY लोन की संख्या दिया गया लोन (करोड़ रुपये)
2015-16 34880924 132954.73
2016-17 39701047 175312.13
2017-18 48130593 246437.40
2018-19 59870318 311811.38
2019-20 62247606 329715.03
2020-21 50735046 311754.47
2021-22 53795526 331402.20
2022-23* 21682870 149685.53
कुल 371043930 1989072.87
स्रोतः मुद्रा पोर्टल ; *प्रोविजनल आंकड़े
मुद्रा योजना के तहत दिए गए कुल कर्ज में 68% महिलाओं को गया है, जबकि 22% कर्ज ऐसे उद्यमियों को दिया गया है, जिन्होंने इस योजना के तहत पहले कभी कर्ज नहीं लिया था, यानी ये पहली बार कोई उद्यम शुरू करने वाले युवा थे। कुल कर्ज का 23% SC/ST वर्ग के आवेदनकर्ताओं को, 28% OBC श्रेणी के युवाओं को और 11% कर्ज अल्पसंख्यक समुदाय के अभ्यर्थियों को दिया गया है।
कुल दिए गए कर्ज में 86% ‘शिशु’ श्रेणी का है, यानी 50 हजार रुपये से कम है, जबकि औसत कर्ज 54,000 रुपये का है। ये सारे आंकड़े एक ही बात की ओर इशारा करते हैं कि मुद्रा योजना पहली बार समाज के उस तबके तक आर्थिक मदद लेकर पहुंची है, जो कुछ करना चाहता है, लेकिन जिसके पास काम करने की शुरुआती पूंजी नहीं है।
और अब बात NPA की। वित्त वर्ष 2017-18 तक मुद्रा योजना के तहत बांटे गए कर्ज में NPA की हिस्सेदारी 5.38% थी। वित्त वर्ष 19 और वित्त वर्ष 20 के लिए NPA की जानकारी उपलब्ध नहीं है, जबकि 31 मार्च 2021 तक यह NPA बढ़कर 11.98% हो गया। यह आंकड़ा देखने में बहुत चिंताजनक लगता है, लेकिन इसमें दो बातें ध्यान देने की हैं।
पहला, यह आंकड़ा आउटस्टैंडिंग लोन की हिस्सेदारी के तौर पर है। यानी 2015-16 से लेकर 2020-21 तक मुद्रा योजना के तहत जो 15 लाख करोड़ रुपये वितरित किए गए थे, उसमें बैंकों के सिर्फ 2.84 लाख करोड़ रुपये ही बकाया थे। और इस 2.84 लाख करोड़ रुपये में 11.98% यानी 34090.34 करोड़ रुपये NPA श्रेणी में चले गए। यदि 31 मार्च 2021 तक मुद्रा योजना के तहत वितरित किए गए कुल कर्ज की तुलना में देखें तो यह रकम सिर्फ 3.61% है।
वैसे पिछले दो वर्षों के मुकाबले यह बढ़ी है क्योंकि 31 मार्च 2019 तक कुल मुद्रा लोन में NPA की हिस्सेदारी 2.51% और 31 मार्च 2020 तक 2.53% थी। इसकी तुलना यदि बैंकों के सामान्य लोन पर NPA से करें तो वह 9.85% है।
दूसरी बात, जो बहुत महत्वपूर्ण है, वह मुद्रा योजना की प्रकृति से जुड़ी है। मुद्रा योजना मझोले, छोटे और अति लघु उद्यमों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू की गई है, जिसमें लोन की 3 श्रेणियां हैं। सबसे पहली श्रेणी ‘शिशु’ है, जिसमें 50,000 रुपये तक के लोन दिए जाते हैं।
दूसरी श्रेणी ‘किशोर’ है, जिसमें 50,000-5,00,000 रुपए तक के लोन होते हैं और तीसरी श्रेणी ‘तरुण’ है, जिसमें 5-10 लाख रुपये तक के लोन दिए जाते हैं। यदि दिए गए कर्जों का सामाजिक-आर्थिक विश्लेषण किया जाए तो केवी सुब्रह्मण्यम की उस बात का महत्व समझा जा सकता है कि इन कर्ज ने किस तबके की मदद की है।
क्या है चिदंबरम का कहना?
चिदंबरम का यह कहना कि 3.73 लाख रुपये से कौन सा कारोबार खड़ा हो सकता है, भारतीय समाज की आर्थिक स्थिति के बारे में उनकी कम समझ को दर्शाता है और यह इसलिए भी दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि वह चार बार लगभग 8 साल के लिए देश के वित्त मंत्री रह चुके हैं। जाहिर है कि यह औसत रकम भी सिर्फ एक जोन में एक साल के लिए SBI के दिए कर्ज से है। कुल औसत रकम, जो मुद्रा योजना में दी गई है, वह सिर्फ 54,000 रुपये है, जो कि चिदंबरम के लिहाज से और भी नाकाफी है। लेकिन यदि श्रम मंत्रालय के सर्वे पर गौर करें, तो 2015-18 के दौरान इस योजना के कारण देश में 1.12 करोड़ रोजगार पैदा हुए।
यह सही है कि रिजर्व बैंक समेत तमाम जिम्मेदार संस्थाओं ने समय-समय पर मुद्रा योजना के तहत बढ़ते NPA पर चिंता जताई है, लेकिन यह भी सही है कि इस योजना के तहत दिए जाने वाले कर्ज को सामान्य कर्ज के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। यह किसी बिजनेसमैन या कंपनी को कारोबार बढ़ाने या नई यूनिट खरीदने के लिए दिया गया कर्ज नहीं है।
यह किसी बेरोजगार, लेकिन महत्वाकांक्षी एवं मेहनती युवा को उसके सपने साकार करने के लिए की गई मदद है, जो आर्थिक के साथ ही एक सामाजिक पहल भी है। इसलिए मुद्रा योजना की समीक्षा सिर्फ आर्थिक पैमानों पर करना गलती होगी। इसे इसके पूरे सामाजिक संदर्भों के साथ देखा जाना चाहिए, और इस लिहाज से इसे सिर्फ चिदंबरम के पैमानों पर असफल करार देना बचकाना है।