भुवन भास्कर
भुवन भास्कर
बुधवार को नरेंद्र मोदी सरकार ने सरकारी परिसंपत्तियों के विनिवेश के बारे में एक ऐतिहासिक फैसला किया। कैबिनेट ने नेशनल लैंड मॉनेटाइजेशन कॉरपोरेशन (NLMC) नाम से एक कंपनी के गठन को मंजूरी दे दी, जो पूरी तरह से भारत सरकार के अधीन होगी। इसके साथ ही मोदी सरकार ने विनिवेश के क्षेत्र में उस प्रक्रिया के चक्र को पूरा घुमा दिया, जो अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 10 दिसंबर 1999 को शुरू किया था। उस दिन पहली बार विनिवेश विभाग को वित्त मंत्रालय के अंदर एक स्वतंत्र विभाग के रूप में स्थापित किया गया।
बाद में 2001 में अटल सरकार ने विनिवेश को एक अलग मंत्रालय के रूप में गठित किया। लेकिन 2004 में मनमोहन सिंह सरकार के आने के बाद एक बार फिर विनिवेश मंत्रालय को बंद कर दिया गया और इसे वापस वित्त मंत्रालय के तहत एक विभाग बना दिया गया। तब से यह एक विभाग ही है, हालांकि 14 अप्रैल 2016 को मोदी सरकार ने इसका नाम बदल कर निवेश एवं सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (दिपम) कर दिया।
क्या है फायदा?
साल 2000 के बाद से हर आम बजट में तमाम सरकारों ने विनिवेश का लक्ष्य घोषित करना शुरू कर दिया था, यह अलग बात है कि शायद ही किसी साल कोई सरकार विनिवेश का अपना लक्ष्य पूरा कर पाई। इसका एक बड़ा कारण शायद प्राथमिकता का भटकाव था, जिसमें लक्ष्य तो तय हो जाते थे, लेकिन जवाबदेही किसी की तय नहीं होती थी। अब NLMC के गठन के साथ ही यह उम्मीद की जा सकती है, कि सरकार की प्राथमिकता के साथ ही जवाबदेही भी तय हो जाएगी।
NLMC का गठन एक स्पेशल पर्पज व्हीकल (SPV) के रूप में होगा जैसा कि 2021 का आम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की थी। NLMC की अधिकृत शेयर पूंजी 5000 करोड़ रुपये होगी और 150 करोड़ रुपये पेड-अप शेयर पूंजी होगी। कंपनी का एक मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) होगा और एक टेक्निकल टीम होगी, जो लैंड मॉनेटाइजेशन में उसकी मदद करेगी।
इस कंपनी को लीज पर दी गई जमीन की कीमत के आधार पर शेयर बाजार से पूंजी जुटाने की अनुमति भी होगी। कंपनी के कामकाज में वित्त मंत्रालय, सार्वजनिक उद्यम विभाग, हाउसिंग और शहरी मामलों के मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के अलावा वित्त और रियल एस्टेट उद्योगों से स्वतंत्र निदेशक भी होंगे।
सरकार ने जो वक्तव्य जारी किया है, उसके मुताबिक NLMC का मैंडेट होगा सरकारी एजेंसियों और सेंट्रल पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइजेज (CPSEs) के पास पड़ी अनुपयोगी या अतिरिक्त जमीन तथा उनके मुख्य कारोबार के अलावा उनके पास मौजूद अन्य परिसंपत्तियों का मॉनेटाइजेशन करना।
कैसे जुटाया जाएगा फंड?
आर्थिक सर्वेक्षण 2022 में यह साफ कर दिया गया है कि सरकार यह मॉनेटाइजेशन उन जमीनों या परिसंपत्तियों को बेचकर नहीं करेगी, बल्कि उनका वाणिज्यिक दृष्टि से विकास कर लीज के जरिए उनसे पैसा कमाया जाएगा। इस पर सलाह देने का काम टेक्निकल टीम का होगा।
मोदी सरकार के इस कदम की गिनती एक और बड़े आर्थिक सुधार के रूप में की जा सकती है। इस वर्ष पेश आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि 2021-22 से लेकर 2024-25 के बीच 4 वर्षों में केंद्र सरकार के कोर असेट को मॉनेटाइज करने के जरिए कुल 6 लाख करोड़ रुपये तक जुटाए जा सकते हैं। इस पूरी रकम में 83 प्रतिशत हिस्सेदारी सड़क, रेलवे, बिजली, तेल एवं गैस पाइपलाइन तथा दूरसंचार क्षेत्र की है। जाहिर है सरकार के पास इतनी बड़ी रकम आने का सीधा मतलब सरकारी निवेश में बड़ी वृद्धि होगा, जिसका असर सीधे देश के जीडीपी ग्रोथ पर दिखेगा।
जमीनों का होगा मॉनेटाइजेशन
आर्थिक सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL), महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (MTNL), भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (BPCL), B&R, BEML लिमिटेड, HMT लिमिटेड सहित अन्य CPSEs ने अब तक ऐसी 3400 एकड़ जमीन चिह्नित की है, जिसे मॉनेटाइज किया जा सकता है।
यहां सवाल सिर्फ मॉनेटाइजेशन से पैसे कमाने का नहीं है। सबसे बड़ी बात यह है कि हजारों एकड़ जमीन जो अभी बेकार पड़ी है, उसका बेहतर इस्तेमाल कर राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद (GDP) को बढ़ाया जा सकेगा, जिससे आखिर में आम आदमी की आर्थिक स्थिति बेहतर होगी। बेकार पड़ी जमीन का डेवलपमेंट होगा, तो आसपास के इलाकों में रियल एस्टेट के लिए भी अवसर बढ़ेंगे और रिटेल डेवलपमेंट, बैंकिंग जैसे सामाजिक इंफ्रास्ट्रक्चर की मांग भी बढ़ेगी।
NLMC कैसे काम करेगा, इसकी एक झलक रेलवे भूमि विकास प्राधिकरण (RLDA) के कामकाज से मिल सकती है। भारत सरकार के उपक्रमों में रेलवे पहले से ही अपनी अतिरिक्त जमीन के मॉनेटाइजेशन में काफी आगे है। रेलवे में इस काम के लिए बाकायदा RLDA का गठन किया गया है, जिसका काम रेलवे की खाली जमीन को वाणिज्यिक इस्तेमाल के लिए विकसित करना है।
सिर्फ रेलवे के पास ही देश भर में इस समय लगभग 1.10 लाख एकड़ खाली जमीन मौजूद है, जिनमें से 79 जगहों पर लीज की संभावना है। खुली और पारदर्शी बोली प्रक्रिया से इन जमीनों को डेवलपरों को दिया जाता है। RLDA की योजना 84 रेलवे कॉलोनियां और 62 रेलवे स्टेशन बनाने की है।
सरकार ने NLMC के गठन की घोषणा कर अपना इरादा तो साफ कर दिया है, लेकिन पिछले 2 दशकों का अनुभव यही बताता है कि सिर्फ इरादे से काम नहीं होगा। सरकार को स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकारों से जमीनों के विकास पर अनुमति लेनी होगी। जो जमीन विकसित की जाएगी, उस पर बिजली, पानी से लेकर कंस्ट्रक्शन तक की गतिविधियां होंगी, तो सही समय पर स्थानीय अधिकारियों की अनुमति इस योजना को सफल या असफल बनाने में बड़ी भूमिका निभाएगा।
(लेखक कृषि और आर्थिक मामलों के जानकारहैं)
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