Lok Sabha: विपक्ष को ही मिलता आया है लोकसभा के डिप्टी स्पीकर का पद, पुरानी सरकारों में भी नभाई गई संसदीय परंपरा
Lok Sabha Deputy Speaker: विपक्ष की मांग है कि वो लोकसभा स्पीकर के पद के लिए इसी शर्त पर सरकार का साथ देगा, जब लोकसभा के डिप्टी स्पीकर का पद उसे ही मिले, क्योंकि ये एक परंपरा है। एक जवाबदेह लोकतांत्रिक संसद चलाने के लिए सत्तारूढ़ दल के अलावा किसी दूसरे दल से लोकसभा के उपाध्यक्ष का चुनाव करना संसदीय परंपरा है। इतिहास में भी ऐसा ही होता आया है
Lok Sabha: विपक्ष को ही मिलता आया है लोकसभा के डिप्टी स्पीकर का पद
देश के इतिहास में ये पहली बार है, जब लोकसबा स्पीकर के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष में कोई सहमति नहीं बन पाई और इस पद के लिए चुनाव कराने का नौबत आ गई है। सत्ताधारी NDA की ओर से 17वीं लोकसभा के अध्यक्ष और BJP सासंद ओम बिरला ने स्पीकर के चुनाव के लिए नामांक दाखिल किया, तो वहीं विपक्ष ने कांग्रेस सांसद के सुरेश को अपना उम्मीदवार बनाया है। असल में ये सारा फसाद तब शुरू हुआ, जब विपक्ष ने सत्ता पक्ष के सामने एक शर्त रख दी।
विपक्ष की मांग है कि वो लोकसभा स्पीकर के पद को लेकर इसी शर्त पर सरकार का साथ देगा, जब लोकसभा के डिप्टी स्पीकर का पद उसे ही मिले, क्योंकि ये एक परंपरा है।
डिप्टी स्पीकर पद को लेकर खींचतान
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मीडिया से कहा, "लोकसभा उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को दिए जाने की परंपरा रही है और अगर नरेंद्र मोदी सरकार इस परंपरा का पालन करती है, तो पूरा विपक्ष सदन के अध्यक्ष के चुनाव में सरकार का समर्थन करेगा।"
इस बीच, समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने भी राहुल गांधी के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि उनकी पार्टी की राय भी यही है। उन्होंने कहा, "जल्द ही सब कुछ सामने आ जाएगा...विपक्ष की मांग थी कि (लोकसभा का) उपाध्यक्ष विपक्ष का होना चाहिए।"
इस पूर मामले पर केंद्रीय मंत्री और बीजेपी सांसद पीयूष गोयल ने कहा, "उन्होंने (विपक्ष) कहा कि पहले डिप्टी स्पीकर के लिए नाम तय करें, फिर हम स्पीकर उम्मीदवार का समर्थन करेंगे। हम ऐसी राजनीति की निंदा करते हैं। एक अच्छी परंपरा होती अध्यक्ष का चुनाव सर्वसम्मति से हो, अध्यक्ष किसी दल या विपक्ष का नहीं होता, वो पूरे सदन का होता है, उसी तरह उपाध्यक्ष भी किसी दल या समूह का नहीं होता, इसलिए सहमति होनी चाहिए सदन की ऐसी शर्तें कि कोई विशेष व्यक्ति या किसी विशेष दल से ही उपाध्यक्ष होना चाहिए, लोकसभा की किसी भी परंपरा में फिट नहीं बैठती।”
क्या होती है डिप्टी स्पीकर की जिम्मेदारी?
लोकसभा का उपाध्यक्ष या डिप्टी स्पीकर भारत की संसद के निचले सदन, दूसरा सर्वोच्च रैंकिंग वाला प्राधिकारी है। वो लोकसभा अध्यक्ष की मृत्यु या बीमारी के कारण छुट्टी या अनुपस्थिति की स्थिति में सदन को अच्छे से चलाने का काम करता है।
एक जवाबदेह लोकतांत्रिक संसद चलाने के लिए सत्तारूढ़ दल के अलावा किसी दूसरे दल से लोकसभा के उपाध्यक्ष का चुनाव करना संसदीय परंपरा है। विपक्ष भी अपनी मांग में इसी परंपरा का हवाला दे रहा है और इतिहास में भी ऐसा ही होता आया है।
आमतौर पर विपक्ष का ही रहा डिप्टी स्पीकर
1999 में केंद्र में NDA की सरकार बनी और अटल बिहार वाजपेयी प्रधानमंत्री बने। तब भी लोकसभा के डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष में बैठी कांग्रेस को दिया गया। उस दौरान लक्षद्वीप से कांग्रेस सांसद पदनाथ मोहम्मद सईद को डिप्टी स्पीकर बनाया गया है। 27 अक्टूबर 1999 से 6 फरवरी 2004 तक उन्होंने ये पद संभाला।
इसके बाद 2004 और 2014 के बीच कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार के दो कार्यकालों में भी लोकसभा के उपाध्यक्ष का पद उस समय विपक्षी में बैठे BJP के सांसद चरणजीत सिंह अटवाल और करिया मुंडा को दिया गया था।
2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने और बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ सरकार में आई, तो AIADMK सांसद एम थंबी दुरई 16वीं लोकसभा में उपाध्यक्ष थे।
2019 से खाली है डिप्टी स्पीकर का पद
17वीं लोकसभा यानी 2019 से ये पद खाली रहा। हालांकि 9 सितंबर 2020 को, लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने अध्यक्ष ओम बिरला को चुनाव या सर्वसम्मति से डिप्टी स्पीकर चुनने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए कहा था। चौधरी ने विपक्ष को पद देने की परंपरा को भी याद दिलाया था। ओम बिरला इस मुद्दे पर कुछ नहीं बोले और बीजेपी भी चुप रही।
2019 के आम चुनाव के तुरंत बाद, हालांकि, सरकार ने इस पद को भरने के लिए कुछ कोशिशें की थीं। इसने YSR कांग्रेस से संपर्क किया था, जिसने कथित तौर पर इसे लेने से मना कर दिया था।
इसके पीछे ये कारण माना गया कि अगर पार्टी ये पद ले लेती है, तो केंद्र सरकार से आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा देने की जो उसकी मांग है, वो कहीं न कहीं कमजोर पड़ जाएगी।
जहां कांग्रेस इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाती रही, तो वहीं दूसरे विपक्षी दल इसे लेकर कुछ खास उत्साहित नहीं दिखे। हालांकि, इस बार हवा का रुख बदल गया है और विपक्ष पहले से ज्यादा मजबूत है और एक है। इसलिए वो डिप्टी स्पीकर के पद को लेकर सरकार पर दबाव बनाने का मौक नहीं छोड़ेगा।