पूर्व विदेश मंत्री और भारतीय राजनीति के कद्दावर शख्सियत सोमनहल्ली मल्लैया कृष्णा (Somanahalli Mallaiah Krishna- SM Krishna) का मंगलवार तड़के बेंगलुरु में निधन हो गया। उन्होंने 92 साल की उम्र में आखिरी सांस ली। वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे। 2023 में केंद्र सरकार ने एस एम कृष्णा को पद्म विभूषण से सम्मानित किया था। मौजूदा समय में वह बीजेपी से जुड़े थे। एस एम कृष्णा के निधन पर प्रदेश के मुख्यमंत्री समेत बीजेपी और कांग्रेस के कई नेताओं ने शोक प्रकट किया है। कृष्णा कांग्रेस में लंबे समय तक जुड़े रहे। बाद में भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया था।
एसएम कृष्णा का जन्म 1 मई 1932 को हुआ था। उन्होंने मैसूर के महाराजा कॉलेज से ग्रेजुएशन की थी। इसके बाद गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से उन्होंने कानून की डिग्री हासिल की थी। इसके अलावा, उन्होंने दक्षिणी मेथोडिस्ट विश्वविद्यालय, डलास, यू.एस.ए. और बाद में जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय में भी स्टडी की थी।
1999 से 2004 तक थे कर्नाटक के मुख्यमंत्री
एसएम कृष्णा किसी समय कर्नाटक में कांग्रेस के बड़े नेता हुआ करते थे। राज्य की राजनीति में उनका काफी प्रभाव भी था। 1999 से 2004 तक वह कर्नाटक के सीएम रहे। दिसंबर 2004 से मार्च 2008 तक वे महाराष्ट्र के राज्यपाल रहे। बाद में वह मनमोहन सिंह की नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में वह विदेश मंत्री भी रहे। मार्च 2017 में वह कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे। जनवरी 2023 में एस एम कृष्णा ने ऐलान किया था कि वो अब एक्टिव पॉलिटिक्स में नहीं रहेंगे। कृष्णा को भारतीय राजनीति में उनके अहम योगदान के लिए साल 2023 में देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
1960 में शुरू की थी राजनीतिक पारी
एस एम कृष्णा ने 1960 के आस पास अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी। 1962 में उन्होंने मद्दुर विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था। कांग्रेस के उम्मीदवार को हराकर चुनाव जीत लिया था। इसके बाद उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी जॉइन की थी और 1968 में मंड्या लोकसभा सीट उप चुनाव जीत गए। फिर एस एम कृष्णा कांग्रेस में शामिल हुए और मंड्या लोकसभा सीट से 1971 में फिर से चुनाव जीत गए।
प्रियांक खड़गे ने जताया शोक
कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खड़गे ने ट्वीट किया, 'कर्नाटक के पूर्व सीएम एसएम कृष्णा के निधन से बहुत दुखी हूं। उनके नेतृत्व और सार्वजनिक सेवा की विरासत ने हमारे राज्य और राष्ट्र पर एक अमिट छाप छोड़ी है। उनकी दूरदर्शिता और समर्पण ने कर्नाटक की प्रगति को आकार दिया और बेंगलुरु के लिए शासन के प्रति उनके कॉर्पोरेट दृष्टिकोण ने उन्हें कई लोगों का प्रिय बना दिया।