Waqf Bill Explain: वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर क्यों मचा है इतना बवाल, हिंदू, सिख समेत दूसरे धर्म के कानूनों से ये कितना अलग?

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने इस बिल को लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन और बैठकें करने का फैसला किया है। औवैसी ने पूछा, “ये लिमिटेशन हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम, 1997 पर लागू नहीं होती है, फिर इसे वक्फ पर क्यों लागू किया जा रहा है?”

अपडेटेड Sep 10, 2024 पर 11:54 PM
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Waqf Bill Explain: वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर क्यों मचा है इतना बवाल

वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024, जिसे सरकार ने अगस्त की शुरुआत में पेश किया था, उसे लेकर लगातार राजनीति हो रही है। अब सोमवार को AIMIM प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने फिर से इसे लेकर सवाल उठाए और आरोप लगाया कि यह समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है। उन्होंने आरोप लगाया कि इस बिल का मकसद केवल मुसलमानों से वक्फ प्रॉपर्टी को छीनना है। उन्होंने कहा, "ऐसा बिल हिंदू बंदोबस्ती अधिनियम, गुरुद्वारा प्रबंधक समिति या ईसाइयों के लिए कभी पेश नहीं किया गया था...इस बिल का मकसद भारतीयों के मौलिक अधिकारों को छीनना है।"

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने इस बिल को लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन और बैठकें करने का फैसला किया है। औवैसी ने पूछा, “ये लिमिटेशन हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम, 1997 पर लागू नहीं होती है, फिर इसे वक्फ पर क्यों लागू किया जा रहा है?”

AIMPLB ने QR कोड जारी कर लोगों से इस बिल के खिलाफ अपने सुझाव देने की अपील की है। उन्होंने सवाल किया कि नए बिल में सरकार ने कलेक्टर को इतनी शक्ति क्यों दी है? उन्होंने जोर देकर कहा, "प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत कहते हैं कि एक कलेक्टर स्व-घोषित जज नहीं हो सकता।"


इस बीच, द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, वक्फ (संशोधन) विधेयक की जांच कर रही संसद की संयुक्त समिति को अब तक संस्थानों और जनता से 8 लाख याचिकाएं मिली हैं।

शहरी मामलों के मंत्रालय, जो पैनल का हिस्सा है, उसने इस आधार पर संशोधनों का समर्थन किया कि इससे मुकदमेबाजी कम हो जाएगी।

रिपोर्ट में कहा गया, "उनका तर्क था कि ब्रिटिश सरकार ने नई राजधानी के लिए 341 वर्ग Km भूमि का अधिग्रहण करते समय मुआवजा दिया था। लेकिन 1970 और 1977 के बीच, वक्फ बोर्ड ने नई दिल्ली क्षेत्र में 138 संपत्तियों पर दावा किया, जिसके कारण लंबी कानूनी लड़ाई हुई।"

चलिए सरकार की तरफ से वक्फ बिल में लाए गए बदलावों पर एक नजर डालतें हैं और साथ ही ये भी जानने की कोशिश करते हैं कि इसमें और हिंदू बंदोबस्ती अधिनियम, गुरुद्वारा प्रबंधक समिति, ईसाई, बौद्ध और जैन संपत्ति कानूनों में क्या अंतर है।

वक्फ संशोधन विधेयक में क्या हैं बदलाव?

वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 में वक्फ अधिनियम, 1995 का नाम बदलकर यूनिफाइड वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम, 1995 करने का प्रस्ताव है।

- विधेयक वक्फ बोर्डों को अपनी संपत्तियों का असल वैल्यूएशन करने के लिए जिला कलेक्टरों के दफ्तर में रजिस्ट्रेशन कराना होगा। देश में 30 वक्फ बोर्ड हैं और भारत में वक्फ बोर्ड के कंट्रोल में 9.4 लाख एकड़ में फैली 8.7 लाख प्रॉपर्टी हैं।

- केवल वे व्यक्ति जो कम से कम पांच सालों से इस्लाम का पालन कर रहे हैं, वक्फ संपत्ति की घोषणा कर सकते हैं। वक्फ संपत्ति घोषित करने वाले व्यक्ति को उस संपत्ति का मालिक होना जरूरी है। वक्फ बाय यूजर की व्यवस्था को हटा दिया जाएगा। वक्फ-अलल-औलाद के तहत, वक्फ संपत्ति दानकर्ता के वारिसों, खासतौर से महिला वारिसों के उत्तराधिकार अधिकारों का हनन नहीं कर सकती।

- सूत्रों के अनुसार, सभी वक्फ संपत्तियों से मिलने वाला रिवेन्यू 200 करोड़ रुपए प्रति वर्ष होने का अनुमान है, जो ऐसे निकायों की संपत्तियों की संख्या के अनुरूप नहीं है।

- विधेयक में कोई संपत्ति वक्फ संपत्ति है या नहीं, यह तय करने की बोर्ड की शक्तियों से जुड़ी धारा 40 को हटाने, मुतवल्लियों की ओर से वक्फ के अकाउंट को उनकी एक्टिविटी पर बेहतर नियंत्रण के लिए एक केंद्रीय पोर्टल के जरिए बोर्ड को दाखिल करने, दो सदस्यों के साथ ट्रिब्यूनल संरचना में सुधार करें, और 90 दिनों के तय पीरियड के भीतर ट्रिब्यूनल के आदेशों के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील करने का प्रावधान करें।

- प्रस्तावित विधेयक के अनुसार, अलग-अलग राज्य बोर्डों की ओर से दावा की गई विवादित भूमि का नए सिरे से वैरिफिकेशन भी किया जाएगा।

- विधेयक में बोहरा और आगाखानियों के लिए एक अलग औकाफ बोर्ड की बनाने का भी प्रावधान किया गया है।

- वक्फ बोर्ड की संरचना में बदलाव से इन निकायों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित होगी।

हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम क्या है?

1927 के मद्रास हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती अधिनियम ने 'मद्रास हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती बोर्ड' की स्थापना की और मंदिरों में कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किए। हालांकि, भक्त-केंद्रित मैनेजमेंट को बढ़ावा देने के बजाय, राज्य ने मंदिरों पर ज्यादा कंट्रोल करना शुरू कर दिया।

आजादी के बाद, 1951 का मद्रास हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम पेश किया गया, जिसमें एक कमिश्नर के नेतृत्व में और अधिकारियों की एक हैरारकी वाला हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग भी बनाया गया।

इस विभाग को हिंदू मंदिरों और मठों के धर्मनिरपेक्ष मामलों की देखरेख करने का अधिकार दिया गया था। वंश के मुताबिक, कर्मचारियों के पुराने सिस्टम को खत्म कर दिया गया, और अलग-अलग लेवल पर अधिकार, कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को बताने वाली एक नई संरचना लागू की गई, जिससे ऐतिहासिक शिरूर मठ मामला सामने आया।

सरकार को सालाना टैक्स भेजने के लिए धार्मिक प्रतिष्ठानों का दायित्व मद्रास हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम 1951 की धारा 76 में है।

इस अधिनियम की धारा 76(1) के अनुसार, "सरकार और उनके अधिकारियों द्वारा दी गई सेवाओं के संबंध में और ऐसी सेवाओं के कारण होने वाले खर्चों को चुकाने के लिए, धार्मिक संस्थान अपनी कमाई से, कमिश्नर को सालाना ऐसा अंशदान देना होगा, जो उसकी आय के पांच प्रतिशत से ज्यादा न हो जैसा कि तय किया जाए।"

अदालत ने तर्क दिया कि हिंदू धार्मिक संस्थानों पर लगाए गए टैक्स को संविधान के तहत वैध माना जा सकता है, जब तक कि टैक्स का इस्तेमाल उस धर्म को बढ़ावा देने के लिए नहीं किया जाता, जिससे वो जुटाया गया था, बल्कि सार्वजनिक कामों के लिए किया जाता था। इस फैसले का संवैधानिक भारत में हिंदुओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा।

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति कैसे बनी और उसके सिद्धांत क्या हैं

अंग्रेजों के पंजाब पर कब्जा करने के बाद ईसाई मिशनरियों और आर्य समाज के अचानक उदय ने सिखों के बीच सिंह सभा आंदोलन को जन्म दिया। इसी के चलते 1892 में अमृतसर में खालसा कॉलेज की स्थापना की गई। लेकिन स्वर्ण मंदिर और गुरुद्वारों का नियंत्रण 'महंतों' (पुजारियों) के हाथों में रहा, जो गुरुद्वारों को अपनी निजी जागीर मानते थे और दलितों के साथ भेदभाव करते थे।

काफी विचार-विमर्श के बाद, स्वर्ण मंदिर में प्रसाद चढ़ाने के दलित सिखों के अधिकारों को बहाल करने के लिए 12 अक्टूबर, 1920 को जलियांवाला बाग में एक बड़ी सभा बुलाई गई।

उसी दिन दलित सिखों के प्रभुत्व वाली 25 सदस्यों की एक समिति बनाई गई। इस समिति ने समुदाय के सदस्यों को एक साथ आने के लिए प्रोत्साहित किया और आखिरकार 15 नवंबर, 1920 को 175 सदस्यों वाली निकाय SGPC का गठन किया गया।

SGPC का हेडक्वार्ट श्री हरमंदिर साहिब परिसर में तेजा सिंह समुंद्री हॉल में है।

SGPC के मुख्य सिद्धांत हैं “सच्चे सिखों सांसारिक चीजों से कोई लगाव नहीं रहता है; सिखों को अपने परिवार और समुदाय के प्रति अपना कर्तव्य निभाना चाहिए।"

मुख्य बात है शुद्ध और नैतिक जीवन जीना; सिख धर्म जाति में विश्वास नहीं करता; तीर्थयात्रा से कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं मिलता; गुरुओं ने महिलाओं को ज्यादा सम्मान दिया।

जैन कानून क्या है?

एक दर्शन और धर्म के रूप में जैन धर्म ने वेदों की सर्वोच्चता और धर्म के शास्त्रीय हिंदू प्रमुख कॉन्सेप्ट को खारिज कर दिया। हालांकि, जैन धर्म ने धर्म का अपना एक नया कॉन्सेप्ट विकसित किया, जो शायद 'हिंदुओं' की समझ से थोड़ा ही अलग है।

जैन धर्म के मुख्य सिद्धांत हैं- अहिंसा, सत्यता, चोरी न करना, शुद्धता। इन सिद्धांतों ने जैन संस्कृति को कई तरह से प्रभावित किया है, जिसमें मुख्य रूप से लैक्टो-वेजिटेरियन डाइट भी शामिल है।

आधुनिक भारत ने 1955 के हिंदू विवाह अधिनियम और 1956 के अन्य हिंदू कानून की शुरूआत के बाद से जैन कानून को खत्म कर दिया। जैन कानून अब एक अलग व्यक्तिगत कानून के रूप में मौजूद नहीं है।

जैन कानून में, एक विधवा को अपने मृत पति की सारी संपत्ति विरासत में मिलती है, भले ही उसका एक बेटा हो। यह हिंदू कानून से अलग है, जहां विधवा को अपने पति की संपत्ति पर अधिकार नहीं होता है।

जैन कानून के अनुसार, जुड़वां बेटों के मामले में, पहले बेटा या सबसे बड़े बेटे को बंटवारे के समय ज्यादा विशेष अधिकारों का हक होता है।

MoneyControl News

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First Published: Sep 10, 2024 3:50 PM

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