देश के उन तीन बड़े नेताओं सी. राज गोपालाचारी, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और श्यामा प्रसाद मुखर्जी को भी प्रधानमंत्री नेहरू ने अपने प्रथम मंत्रिमंडल का सदस्य बनाया था। जबकि इन लोगों ने 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में हिस्सा नहीं लिया था। उलटे उन नेताओं ने उस आंदोलन का विरोध किया था। इनके अलावा जिन्ना और सावरकर भी भारत छोड़ो आंदोलन से अलग थे। 7 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक मुंबई के गोवलिया टैंक के मैदान में हुई थी। उस बैठक में भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पास किया और ‘करो या मरो’ का नारा दिया गया।
आज के कई कांग्रेसी इस बात के लिए श्यामाप्रसाद मुखर्जी की आलोचना करते रहते हैं कि वे सन 1937 में बंगाल में मुस्लिम लीग की सरकार में शामिल हुए थे। लेकिन वे यह नहीं बताते थे कि मुखर्जी को नेहरू ने भी अपनी सरकार में शामिल क्यों किया था? यह बात भी कम ही लोग जानते हैं कि सन 1937 में कांग्रेस और जिन्ना के बीच यूपी के मंत्रिमंडल में शामिल होने पर सैद्धांतिक सहमति बन गई थी। लेकिन मंत्रियों की संख्या को लेकर विवाद के कारण मुस्लिम लीग के नेता सरकार से अलग रहे। मुस्लिम लीग की मांग दो सीटों की थी। किंतु दूसरी ओर कांग्रेस के साथ दिक्कत यह थी कि दो सीटें उसे दे देने के बाद विजयलक्ष्मी पंडित के लिए जगह नहीं बचती।
डॉक्टर अंबेडकर ने भारत छोड़ो आंदोलन को गैर जिम्मेदाराना कदम करार देते हुए कहा था कि गांधी जी को "Prophet for a Dark Age" कहा है। सी. राजगोपालाचारी ने भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध करते हुए कहा था कि आज की जरूरत यह है कि ब्रिटिश सरकार से हम लोग बातचीत करें। डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी तो सन 1941-42 में बंगाल की फजलुल हक सरकार में वित्त मंत्री थे।
मुखर्जी ने 20 नवंबर 1942 को मंत्री पद से इस्तीफा दिया था। हां, भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ब्रिटिश शासन ने आंदोलनकारियों का जो दमन किया, डॉक्टर मुखर्जी ने उसकी निंदा जरूर की थी। इन सब बातों के बावजूद सन 1946 में गठित नेहरू मंत्रिमंडल में ये तीनों नेता शामिल कर लिए गए थे। राज गोपालाचारी तो बाद में गवर्नर जनरल बने। नेहरू तो राजाजी को राष्ट्रपति बनवाना चाहते थे। किंतु कांग्रेस पार्टी ने नेहरू की सलाह नहीं मानी। नतीजतन डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति बने। राजा जी उसके बाद मद्रास प्रांत के मुख्य मंत्री भी बने। राजा जी गांधी जी के समधी थे।
दूसरी तरफ महात्मा गांधी भारत छोड़ो आंदोलन को कितना महत्व देते थे, उस बात का पता उनकी इस उक्ति से चलता है। मुंबई की उस ऐतिहासिक बैठक में गांधी ने कहा था कि ‘‘इस समय मैं अपने जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ने जा रहा हूं। फिर भी ऐसे समय में भी मेरे हृदय में अंग्रेजों के लिए कोई घृणा नहीं है। मैं ऐसा कत्तई नहीं सोचता कि चूंकि वे कठिनाई में हैं, मैं उन्हें धक्का मार दूं। ऐसा विचार कभी रहा नहीं था। हो सकता है कि गुस्से में आकर अंग्रेज ऐसे काम करें जिनसे आप उत्तेजित हो जाएं तो भी आपको हिंसा पर उतरना नहीं है। अगर ऐसा कुछ हुआ तो आप मान लें कि मैं कहीं भी होऊं ,आप मुझे जीवित नहीं पाएंगे।"
गांधी जी ने यह भी कहा कि "अगर आप मेरी यह बात नहीं समझते तो अच्छा होगा कि आंदोलन के इस प्रस्ताव को आप ठुकरा दें। इससे आपका गौरव बढ़ेगा। कभी न मानें कि अंग्रेज विश्व युद्ध में हारने वाले हैं। मैं जानता हूं कि हारने के पहले ब्रिटेन में एक-एक प्राणी कुर्बान हो चुका होगा। हो सकता है कि वे युद्ध में किसी समय आपको इसी तरह छोड़कर चले जाएं जिस तरह बर्मा, मलाया और अन्य स्थानों के लोगों को छोड़ गए थे। उनका इरादा ताकत होने पर फिर से इन स्थानों को हासिल करने का हो। यदि वे छोड़ गए तो जापान यहां आ जाएगा। बिना शर्त स्वाधीनता यानी भारत छोड़ो का प्रस्ताव उस बंबई बैठक में पेश करते हुए जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि " यह संकीर्ण राष्ट्रवाद नहीं है। बल्कि इसमें अंतरराष्ट्रीय संदर्भ निहित है। पिछले कुछ महीनों में इस सरकार की अयोग्यता और असमर्थता की बेजोड़ मिसालें देखने को मिलीं। यह व्यवस्था एक सड़ी हुई व्यवस्था है।"
प्रस्ताव का समर्थन करते हुए सरदार वल्लभ भाई पटेल ने कहा कि ब्रिटेन भारत की रक्षा करने के लिए सिर्फ इसलिए तैयार है कि अंग्रेजों की अगली पीढ़ियां भारत में रहे सकें। रूस में जो लड़ाई लड़ी जा रही है वह जनता की लड़ाई है। चीन में भी वह जनता की लड़ाई है।दोनों देशों में लोग अपनी आजादी हासिल करने के लिए नहीं बल्कि उसकी रक्षा के लिए लड़ रहे हैं। लेकिन अगर भारत भारतीयों के लिए नहीं है तो भारत में यह लड़ाई जनता की लड़ाई कैसे कही जा सकती है ?
ब्रिटेन से समझौते की कोई आशा नहीं रह गई है। डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने भारत छोड़ो प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा कि ब्रिटिश सत्ता के प्रति भारत का रुख पिछले महीनों में क्रांतिकारी रूप से बदल गया है। इसलिए लोगों के दिल से ब्रिटेन का डर निकल गया है। कम्युनिस्टों के रुख का विरोध करते हुए डा.लोहिया ने कहा कि यह क्या बात है कि जो लोग तत्काल क्रांति की मांग करते हैं वे अब प्रस्तावित संघर्ष का विरोध कर रहे हैं ?