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रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच महंगाई ने किया बेहाल फिर भी भारत अर्थव्यवस्था का ‘चमकता सितारा'

दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत पर भी रूस-यूक्रेन की लड़ाई का काफी असर दिखा है। पिछले साल भर में जहां अमेरिका और यूरोप की ही तरह भारत में भी महंगाई दर लगातार बढ़ी है, वहीं डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होकर अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है। शेयर बाजारों में लगातार बिकवाली दिख रही है। लेकिन इन सबके बावजूद कई ऐसे मोर्चे हैं, जहां भारत को रूस-यूक्रेन की लड़ाई से परोक्ष फायदा भी हुआ है

अपडेटेड Mar 10, 2023 पर 3:43 PM
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रूस-यूक्रेन की लड़ाई के बावजूद दुनिया के बाकी देशों की तुलना में भारत की वृद्धि दर बेहतर रही

यूक्रेन पर रूसी हमले का एक साल पूरा हो चुका है। पिछले साल 24 फरवरी को ही रूस ने हफ्तों की धमकी और तैयारियों के बाद आखिरकार कीव पर हमला किया था। इस हमले ने पूरी दुनिया की कमोडिटी सप्लाई चेन पर गहरी चोट की। तमाम कमोडिटी की कीमतों में वैश्विक स्तर पर बढ़ोतरी हुई। खाद, खाद्य पदार्थ और तेल एवं गैस के दामों में भी बढ़ोतरी हुई। वहीं सप्लाई चेन में आई मुश्किलों के कारण मालभाड़ा बढ़ा, कंटेनरों की उपलब्धता कम हुई और वेयरहाउसिंग स्पेस भी घटा। यूरोप में प्राकृतिक गैस की कीमत लड़ाई शुरू होने के शुरुआती 6 महीनों में 120-130% तक बढ़ गई जबकि इसी दौरान कोयले की कीमतों में 95-97% की वृद्धि दर्ज हुई। रूस पूरी दुनिया में सोयाबीन, कॉर्न और कच्चे तेल का प्रमुख उत्पादक है और युद्ध शुरू होने के बाद से ही लगातार इन तीनों की कीमतों में बढ़ोतरी दर्ज की गई।

अब जबकि एक साल पूरा होने के बावजूद यूक्रेन-रूस की लड़ाई अंत के करीब नहीं दिख रही, सवाल यह है कि आने वाले हफ्तों और महीनों में वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इसका और क्या असर दिख सकता है। रूस पर इस समय 2700 प्रतिबंध लगे हैं और उसके 300 अरब डॉलर की नकदी और स्वर्ण परिसंपत्तियों को दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में फ्रीज कर दिया गया है। हालांकि इन प्रतिबंधों का दूसरा पहलू यह भी है कि यूरोप अपनी कुल जररूतों का 35% प्राकृतिक गैस, 20% कच्चा तेल और 40% कोयला रूस से ही आयात करता है।

दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत पर भी रूस-यूक्रेन की लड़ाई का काफी असर दिखा है। पिछले साल भर में जहां अमेरिका और यूरोप की ही तरह भारत में भी महंगाई दर लगातार बढ़ी है, वहीं डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होकर अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है। शेयर बाजारों में लगातार बिकवाली दिख रही है। लेकिन इन सबके बावजूद कई ऐसे मोर्चे हैं, जहां भारत को रूस-यूक्रेन की लड़ाई से परोक्ष फायदा भी हुआ है। भारत ने सस्ती दर पर रूस से अतिरिक्त मात्रा में कच्चे तेल की खरीद की और साथ ही भारत से कृषि कमोडिटी के निर्यात को भी बढ़ावा मिला।


वर्ष 2020 के बाद से जब पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था कोविड महामारी के कारण थम सी गई थी, भारत दुनिया के देशों में इससे सबसे जल्दी उबरने वाला देश था। वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 20.1% थी, जो चालू वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून 2022) के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था में 13.5% रही। लेकिन इसी समय यूक्रेन-रूस के बीच लड़ाई छिड़ी, जिसके बाद की तिमाहियों एक बार फिर GDP वृद्धि दर पर कुछ लगाम लगी। जुलाई-सितंबर 2022 के दौरान भारत की GDP में 6.3% की वृद्धि दर्ज हुई। फिर भी साल भर पहले की इसी अवधि के मुकाबले इसमें मामूली गिरावट ही रही।

यूक्रेन की लड़ाई के बावजूद दुनिया के बाकी देशों की तुलना में भारत की वृद्धि दर बेहतर रही। यहां तक कि विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भी भारत को तुलतनात्मक तौर पर ‘ब्राइट स्पॉट’ बताया। IMF की मैनेजिंग डायरेक्टर क्रिस्टलीना जॉर्जीवा ने यहां तक उम्मीद जताई कि 2023 में पूरी दुनिया की ग्रोथ में भारत की हिस्सेदारी 15% रहेगी। जॉर्जीवा ने भारत में हुए डिजिटाइजेशन को ग्रोथ और रोजगार का मुख्य कारक बताते हुए कहा कि हाल में पेश बजट में सरकार ने एक बार फिर फिस्कल कंसॉलिडेशन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताते हुए पूंजीगत निवेश के लिए पर्याप्त प्रावधान किए हैं।

पिछले कुछ महीनों से पूरी दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में मंदी की आशंका जताई जा रही है। कोविड के बाद अमेरिका, यूरोपीय संघ, जापान सहित भारत ने आम लोगों और उद्योगों को आर्थिक पैकेज दिए थे, उनके नतीजे के तौर पर महंगाई दरें बढ़ना शुरू हुईं। महंगाई को काबू में रखने के लिए दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी शुरू कर दी है और अमेरिकी और भारतीय शेयर बाजारों में गिरावट तथा दुनिया की प्रमुख मुद्राओं में कमजोरी का यह मुख्य कारण रहा है।

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यूक्रेन-रूस युद्ध के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो ज्यादातर चीजें स्टेबल होती दिखने लगी हैं। ब्याज दरों का चक्र धीरे-धीरे अपने अधिकतम स्तर पर पहुंचता दिख रहा है और ज्यादातर कृषि कमोडिटी अपने पीक से 15-25% तक नीचे आ चुकी हैं। यह अनुमान लगाना तो बहुत कठिन है कि वास्तव में रूस और यूक्रेन की लड़ाई कब खत्म होगी, लेकिन इतना तय है इस युद्ध के दुष्प्रभावों का सबसे बुरा दौर निकल चुका है। कोविड से लंबी लड़ाई के बाद अब धीरे-धीरे चीन की अर्थव्यवस्था भी खुलने लगी है और तमाम कृषि तथा गैर-कृषि कमोडिटी के बाजारों में इस एक खबर भर से हलचल शुरू हो गई है।

इन परिस्थितियों में यह माना जा सकता है कि यहां से आगे यदि कुछ बिलकुल अप्रत्याशित न हो, तो दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं में अस्थिरता का दौर आने वाले दिनों में कम हो सकता है। वर्ष 2023-24 में भारत और दुनिया की ज्यादातर अर्थव्यवस्थाएं बॉटम आउट होती हुई दिख रही हैं। लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं कि सारी आर्थिक मुश्किलें भी तुरंत खत्म हो जाएंगी। अमेरिका में गूगल और फेसबुक जैसी विशालकाय कंपनियों को हमने हजारों की संख्या में लोगों को नौकरियों से निकालते देखा है। लेकिन भारत में फिलहाल इस तरह का कोई डिस्ट्रेस सिग्नल नहीं है। भारत की स्थिति निश्चित तौर पर दुनिया के तमाम देशों की तुलना में बेहतर है और आने वाले वर्षों में जब दुनिया आर्थिक ग्रोथ के अगले दौर में जाएगी, भारत ही उसका नेतृत्व करने वाला है।

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