न जेवलिन खरीदने का था पैसा, बमुश्किल चलता था घर का खर्च, गोल्ड जीतने से भी कहीं ज्यादा मुश्किल है अरशद नदीम की कहानी
Paris Olympics 2024: सभी आठ फाइनलिस्टों में बेस्ट लास्ट थ्रो जूलियन वेबर का 84.09 था। फिर भी, किसी तरह, नदीम ने अपना भाला 91.79 मीटर पर फेंका। जबिक दूसरे नंबर पर भारत के 'गोल्डन बॉय' नीरज चोपड़ा रहे, जिन्होंने सीजन का अपना अब तक का सबसे बेस्ड 89.45 मीटर थ्रो किया। अरशद का आखिरी थ्रो नीरज के थ्रो से 2.34 मीटर ज्यादा था।
गोल्ड जीतने से भी कहीं ज्यादा कीमती है अरशद नदीम की कहानी
अरशद नदीम के 92.97 मीटर थ्रो ने 16 साल पुराने ओलिंपिक रिकॉर्ड (90.57 मीटर) को 2.40 मीटर से पीछे छोड़ दिया। वो थ्रो इतना परफेक्ट था कि मानो नदीम ने खड़े-खड़े बहुत ही आराम से अपने हाथ से भाले को रिकॉर्ड तोड़ने के लिए ही फेंका था। हालांकि, उन्होंने पूरा रन-अप लिया था। इसके बाद याद कीजिए नदीम का वो आखिरी और छठा थ्रो, जिसे देख कर ये तो पक्का हो गया था कि पाकिस्तान का ये खिलाड़ी, रिकॉर्ड बनाने और तोड़ने के मूड से ही आया था। अपने पहले रिकॉर्ड थ्रो से ही उन्होंने अपने देश को गोल्ड मेडल का आश्वसन दे दिया था। व्यक्तिगत खेल में ओलिंपिक में पाकिस्तान का ये पहला गोल्ड मेडल है।
सभी आठ फाइनलिस्टों में बेस्ट लास्ट थ्रो जूलियन वेबर का 84.09 था। फिर भी, किसी तरह, नदीम ने अपना भाला 91.79 मीटर पर फेंका। जबिक दूसरे नंबर पर भारत के 'गोल्डन बॉय' नीरज चोपड़ा रहे, जिन्होंने सीजन का अपना अब तक का सबसे बेस्ड 89.45 मीटर थ्रो किया। अरशद का आखिरी थ्रो नीरज के थ्रो से 2.34 मीटर ज्यादा था।
अरशद नदीम का संघर्ष
अरशद नदीम (Arshad Nadeem)पेरिस ओलिंपिक 2024 में पुरुषों के भाला फेंक फाइनल में सबसे टॉप रहे, लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए उन्हें किस-किस मुश्किल से गुजरना पड़ा और कितनी मेहनत करनी पड़ी, उसकी भी एक अलग कहानी है।
नदीम पेरिस ओलिंपिक में सात पाकिस्तानी एथलीटों में से अकेले थे, जिनकी फ्लाइट के टिकट का खर्च उनकी सरकार ने दिया था। ये नदीम का दूसरा ओलिंपिक था। टोक्यो में, उन्हें अपनी सरकार से फ्लाइट का खर्चा भी नहीं मिला था।
पुराना भाला बदलने के लिए सरकार से अपील
पेरिस खेलों के लिए बमुश्किल कुछ महीने पहले, उन्होंने अधिकारियों से अपने पुराने भाले को बदलने का अनुरोध किया, क्योंकि इसके साथ प्रैक्टिस करना असंभव हो गया था।
उनके सोशल मीडिया पोस्ट ने सभी का ध्यान खींचा और यहां तक कि नीरज चोपड़ा ने भी ये बताया। सरकार से भी पहले, उनके दोस्त और पड़ोसी थे, जिन्होंने विदेशी टूर्नामेंटों के लिए उनकी फ्लाइट और दूसरे खर्चों की व्यवस्था करने में योगदान दिया था।
उन्होंने जेवलिन थ्रो में जाने से पहले क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी और कबड्डी में अपना हाथ आजमाया। इसके लिए पाकिस्तान में कोई भी स्टैंडर्ड ट्रेनिंग फैसिलिटी न होने की वजह से, उन्होंने अपने घर की पीछे ही ट्रेनिंग की।
परिवार में कमाने वाले अकेले पिता
नदीम एक ऐसे परिवार से आते हैं, जिसे ज्यादातर तक अपना गुजारा करने लिए संघर्ष करना पड़ता है। नदीम के पिता, मुहम्मद अशरफ ही अकेले कमाने वाले थे। ऐसे हालात में किसी खेल को खेलने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता, लेकिन नदीम ने हिम्मत दिखाई और कर दिखाया।
ज्यादातर भाला फेंकने वालों की तरह, नदीम को भी घुटनों और कंधों में समस्या है। उनकी कई सर्जरी हुई थीं, सबसे हालिया सर्जरी इस साल फरवरी में हुई थी। इस बात बहुत आशंका थी कि क्या वह ओलिंपिक में भी जा पाएंगे, मेडल जीतना तो दूर की बात है।
अब एक बार फिर नदीम को उन दो थ्रो को याद कीजिए... अब आपको उनकी मेहनत और उसका नतीजा दोनों की कीमत का एहसास होगा।
फाइनल में पहुंचने वाला पाकिस्तान का अकेला खिलाड़ी
पंजाब के खानेवाल गांव का 27 साल का खिलाड़ी इस ओलिंपिक में फाइनल के लिए क्वालीफाई करने वाला पाकिस्तान का अकेला खिलाड़ी था। बाकी छह अपने-अपने इवेंट के शुरुआती फेज में ही बाहर हो गए।
नदीम के लगातार दूसरे ओलिंपिक के फाइनल के लिए क्वालीफाई करने के तुरंत बाद, उनके घर पर जश्न मनाया गया, जहां उनके माता-पिता, भाई, पत्नी और दो बच्चे और गांव वालों ने 'पाकिस्तान जिंदाबाद' के नारे लगाए। उनके माता-पिता ने भी मिठाई बांटी।
उनके पिता ने कहा था, "अगर मेरा बेटा पाकिस्तान के लिए ओलिंपिक मेडल ला सकता है, तो यह हमारे और इस गांव के सभी लोगों के लिए सबसे गर्व का पल होगा।" खैर, फ्रांस की राजधानी में जो हुआ, उसके बाद अब वह अपने जीवन का सबसे बड़ा जश्न मना सकते हैं।