Glaucoma: जवानी में छिन जाएगी आंख की रोशनी, कभी न करें ये काम

Glaucoma: आंखों की रोशनी छीनने वाली बीमारियों के ग्रुप को ग्लूकोमा कहते हैं। इसकी शुरुआत जवानी में भी हो सकती है। यह बीमारी चुपचाप शरीर पर हमला करती है। इसके लक्षण भी नजर नहीं आते हैं। मॉडर्न साइंस में अभी तक इसका इलाज नहीं ढूंढ़ा जा सका है। इसी बीमारी के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए हर साल वर्ल्ड ग्लूकोमा डे (World Glaucoma Day 2023) और वर्ल्ड ग्लूकोमा वीक मनाया जाता है

अपडेटेड Mar 12, 2023 पर 3:22 PM
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ग्‍लूकोमा में आंख की रोशनी पूरी तरह खत्‍म हो सकती है

Glaucoma: ग्लूकोमा (Glaucoma) आंख से जुड़ी एक बीमारी है। इसे काला मोतियाबिंद भी कहा जाता है। आमतौर पर लोगों को यही पता है कि यह बीमारी अगर एक बार हो जाए तो आंख को अंधा कर देती है। लेकिन इससे भी जरूरी बात ये है कि अगर एक बार ग्‍लूकोमा में आंख की रोशनी चली जाए तो वह किसी भी उपाय से वापस नहीं आ सकती है। ग्लूकोमा एक साइलेंट बीमारी है। इसके लक्षण भी शुरुआती दौर में नजर नहीं आते हैं। यही वजह है कि यह आंख में धीरे-धीरे बढ़ती रहती है। जिससे आंख की रोशनी धीरे-धीरे खत्म होती रहती है।

आधुनिक विज्ञान में अभी तक इसका कोई इलाज नहीं मिल सका है। एम्‍स के डॉक्‍टरों का कहना है कि यह बीमारी बेहद अजीब है। आंखों में डाली जाने वाली विशेष दवा भी इस बीमारी को पैदा कर सकती है। ग्लोकोमा के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है। ऐसे में हर साल वर्ल्ड ग्लूकोमा डे (World Glaucoma Day 2023) और वर्ल्ड ग्लूकोमा वीक मनाया जाता है।

ग्लूकोमा रोग क्या है?


ग्लूकोमा को भारत में काला मोतिया (Black Cataract) के नाम से भी जाना जाता है। इसके बारे में पता करना काफी मुश्किल है। इसकी वजह ये है कि इसके शुरुआती लक्षण नजर नहीं आते हैं। आंखों की ये बीमारी बचपन या जवानी में कभी हो सकती है। आंखों के जिन रोगों से ऑप्टिक नर्व डैमेज होती है। उनके वर्ग को ग्लूकोमा कहा जाता है। इसमें ब्रेन तक करंट नहीं पहुंच पाता है। लिहाजा आंख के सामने अंधेरा रहता है। कुछ भी दिखाई नहीं देता। यह बीमारी लोगों को अंधा बना देती है। ये नर्व ही आंखों से दिख रही छवि को सिग्नल के रूप में ले जाकर दिमाग तक पहुंचाती है। जिसके बाद हम देख पाते हैं।

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आई ड्रॉप डालने से बढ़ सकती है बीमारी

डॉक्टरों का कहना है कि अक्सर छोटे बच्‍चों की आंखें भी लाल हो जाती है। ऐसे में बहुत से लोग मेडिकल स्‍टोर्स से कोई भी ड्रॉप ले आते हैं और आंखों में डालते रहते हैं। इस दवा को की महीनों तक डालते रह जाते हैं। इससे बच्‍चे हों या बड़े ग्‍लूकोमा की चपेट में आ जाते हैं। ये स्‍टेरॉइड वाली आई ड्रॉप्‍स आंखों की रोशनी छीन लेती हैं।

कॉफी से भी हो सकता है काला मोतियाबिंद

वहीं अमेरिकन एकेडमी ऑफ ऑप्थल्मोलॉजी के अनुसार, यह देखा गया है कि 135-150mg कैफीन देने वाली एक कप कॉफी पीने से इंट्राओकुलर प्रेशर बढ़ जाता है। हालांकि, अधिकतर शोध इस खतरे को उन लोगों में ज्यादा मानते हैं। जिनकी पहले ही ग्लूकोमा की फैमिली हिस्ट्री रही है।

इन लोगों का ग्लूकोमा से सबसे ज्यादा खतरा

अगर परिवार में किसी को ग्‍लूकोमा है तो अन्‍य लोगों को ये बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। डायबिटीज और हाई BP के मरीजों को आंख में ग्‍लूकोमा होने की शिकायत बढ़ सकती है। वहीं अगर किसी की एक आंख में ग्‍लूकोमा है तो दूसरी आंख में भी होने का जोखिम बढ़ सकता है। जवानी में अगर आंख का नंबर प्‍लस या माइनस में तेजी से बढ़ रहा है तो उन्‍हें भी काला मोतिया होने का खतरा रहता है। हालांकि इसमें बच्‍चों का नंबर तेजी से बढ़ता ही है।

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