Indian Railways: लाल – नीली और हरी ट्रेन में क्या अंतर है? कौन सी ट्रेन है सबसे ज्यादा सुरक्षित, किसकी स्पीड है ज्यादा?

Indian Railways: रेल सफर के दौरान आपने कई तरह की ट्रेनें देखी होंगी। इसमें लाल, नीली और हरी ट्रेनें शामिल हैं। ट्रेनों में अलग-अलग रंग के डिब्‍बों का प्रयोग खास मकसद से किया जाता है। किसी ट्रेन में लगे डिब्‍बों का रंग से काफी हद तक उस ट्रेन की श्रेणी और स्‍पीड का पता चल जाता है

अपडेटेड Aug 29, 2024 पर 3:21 PM
Story continues below Advertisement
Indian Railways: सुपरफास्ट से लेकर पैसेंजर ट्रेन तक सभी में अलग रंग के डिब्बे होते हैं। डिब्बों के रंग उनकी स्पीड और ब्रेक के आधार पर होता है।

भारतीय रेलवे को देश की लाइफलाइन कहा जाता है। भारत में ट्रेन लोगों के आवागमन का प्रमुख साधन है। ट्रेन में सफर के दौरान अपने कोच यानी डिब्बों को अलग-अलग रंग में देखा होगा। सुपरफास्ट ट्रेन से लेकर पैसेंजर ट्रेन तक सभी के रंग अलग-अलग होते हैं। ट्रेन में आपने कभी नीले, लाल और हरे रंग के कोच यानी डिब्बे देखे होंगे। इन डिब्बों का रंग अलग होने के पीछे एक वजह है। ट्रेन में सफर करने वाले बहुत से लोगों को इस बारे में जानकारी नहीं होती है। लिहाजा यह जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि आखिर इन लाल रंग, नीले रंग और हरें रंग के कोच का क्या मतलब होता है, इन्हें क्यों और किस ट्रेन में लगाया जाता है?

बता दें कि कोच कई तरह के होते हैं। ट्रेन के नीले रंग के कोच को ICF यानी इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (Integral Coach Factory) कहते हैं। जबकि लाल रंग के कोच को LHB यानी लिंक हॉफमैन बुश (Linke-Hofmann-Busch) कहते हैं। इन दोनों कोच में सिर्फ रंग का फर्क नहीं होता है. ये दोनों तरह के कोच एक दूसरे से काफी अलग हैं।

लाल रंग के कोच का मतलब


लाल रंग के कोच को लिंक हॉफमैन (Link Hoffmann) भी कहा जाता है। यह खास तरह के कोच होते हैं। इन्हें जर्मनी में बनाया गया है। भारतीय रेलवे ने ऐसे कोच साल 2000 में भारत में आयात क‍िए गए थे। मौजूदा समय में ऐसे कोच पंजाब के कपूरथला में बनाए जाते हैं। यह कोच भी आपने ट्रेनों में खूब देखे होंगे। लाल कोच एल्‍युम‍िनियम के बने होते हैं। वहीं दूसरे कोच के मुकाबले इनका वजन कम होता है। इनमें डिस्‍क ब्रेक लगी होती है। ये वजन में हल्‍के होने के कारण 200 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से भाग सकते हैं। लाल रंग के कोच आपने राजधानी और शताब्‍दी जैसी ट्रेन में देखे होंगे। इससे इन ट्रेनों को अच्छी स्पीड मिल पाती है।

नीले रंग के कोच का मतलब

ट्रेन में सफर के दौरान आपने नीले रंग के कोच सबसे ज्यादा देखें होंगे। ट्रेन में ज्यादातर नीले रंग के कोच दिखाई देते हैं। ऐसे कोच वाली ट्रेन की रफ्तार 70 से 140 क‍िलोमीटर प्रति घंटा होती है। ये लोहे के बने होते हैं। इनमें एयरब्रेक लगे होते हैं। इसलिए इनका इस्‍तेमाल मेल एक्‍सप्रेस या सुपरफास्‍ट ट्रेनों में होता है। वहीं ट्रेन में लाल रंग के कोच का भी इस्‍तेमाल होता है। नीले रंग वाले आईसीएफ (Integral Coach Factory) कोच के निर्माण की शुरुआत साल 1952 में हुई। ये तमिलनाडु के चेन्नई में स्थित इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (आईसीएफ) बनाए जाते हैं।

हरे रंग के डिब्बे

इसके अलावा ग्रीन कलर के भी कोच होते हैं। इन्‍हें भारतीय रेलवे की ट्रेन गरीब रथ में लगाया गया है। इस तरह अलग-अलग रंग के ट्रेन कोच का प्रयोग भी अलग-अलग तरह की ट्रेन के लिए किया जाता है। इस हरे रंग पर कई तरह की चित्रकारी भी की जाती है। जिससे आकर्षक लगने लगता है। वहीं हरे रंग के कोचों का इस्तेमाल छोटी लाइनों पर चलने वाली मीटर गेज ट्रेनों में भी किया जाता है।

दुर्घटना के दौरान कौन सा ज्यादा सुरक्षित?

दुर्घटना के दौरान ICF कोच के डिब्बे एक दूसरे के ऊपर चढ़ जाते हैं। इसकी वजह ये है कि इसमें डुअल बफर (Dual Buffer) सिस्टम होता है। वहीं LHB कोच दुर्घटना के दौरान एक दूसरे पर नहीं चढ़ते हैं। इसकी वजह ये है कि इसमें सेंटर बफर कॉलिंग (Center Buffer Couling) सिस्टम लगा होता है। इससे जान माल का नुकसान कम होता है।

Indian Railways: ट्रेन में महिलाओं के सफर में रहेगी ‘मेरी सहेली’, यात्रा पर रखेगी पूरा ख्याल

Jitendra Singh

Jitendra Singh

Tags: #IRCTC

First Published: Aug 29, 2024 3:15 PM

हिंदी में शेयर बाजार स्टॉक मार्केट न्यूज़,  बिजनेस न्यूज़,  पर्सनल फाइनेंस और अन्य देश से जुड़ी खबरें सबसे पहले मनीकंट्रोल हिंदी पर पढ़ें. डेली मार्केट अपडेट के लिए Moneycontrol App  डाउनलोड करें।