70 साल से ज्यादा वक्त तक शासन करना सामान्य बात नहीं है। इस दौरान आम लोगों के दिल में अपनी खास जगह बनाए रखना और भी मुश्किल है। ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ II (Queen Elizabeth II) ने यह दोनों उपलब्धियां हासिल कीं। उन्होंने बदलते समय के साथ खुद को बदला। 8 सितंबर को 96 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।
एलिजाबेथ II 1952 में ब्रिटेन की महारानी बनीं। तब उनकी उम्र 25 साल थी। इसके बाद 7 दशकों तक राजपरिवार के प्रमुख क रूप में उनकी कीर्ति न सिर्फ ब्रिटेन में बल्कि दुनियाभर में कायम रही। ऐसा नहीं है कि राजसिंहासन पर बैठने का उनका सफर बहुत आसान रहा। शुरुआती दिनों में वंशानुगत राजशाही को उन लोगों का विरोध झेलना पड़ा, जो लोकतंत्र के हिमायती थे। लेकिन, इससे एलिजाबेथ II की प्रतिष्ठा में कमी नहीं आई।
यह भी पढ़ें : भारत में जन्मी Devika Bulchandani बनीं Oglivy की ग्लोबल सीईओ, मानी जाती हैं ‘क्रिएटिविटी की चैम्पियन’
एलिजाबेथ II के ब्रिटेन के शासन की बागडोर संभालने के वक्त तक ब्रिटिश साम्राज्य का स्वरूप बदल चुका था। इसलिए राजपरिवार को मिलने वाली खास सुविधाओं का आधार कानून की जगह परपंरा बन गई। उनके शासन की बागडोर संभालते वक्त राजशाही की संस्था का विघटन शुरू हो चुका था। दुनिया औपनिवेशक शासन की छाया से मुक्त हो रही थी। ऐसे में ब्रिटेन के राजपरिवार के सामने बदलते वक्त के साथ खुद को ढालने की चुनौती थी। एलिजाबेथ II ने इस चुनौती की स्वीकार किया।
उन्हें 1956 में Suez Crisis का सामना करना पड़ा। कई देश औपनिवेशिक शासन से बाहर आ रहे थे। नई सोच के साथ कॉमनवेल्थ की शुरुआत हुई। 1952 में इसमें सिर्फ 8 देश शामिल थे। एलिजाबेथ II की निगरानी में इस संगठन ने ऊंचाई हासिल की। इसकी सफलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसके सदस्य देशों की संख्या 54 हो गई है। इस संगठन के विस्तार के साथ एलिजाबेथ II का प्रभाव भी दुनियाभर में बढ़ा।
1952 में राजसिंहासन पर बैठने के साथ ही आम लोगों के दिन में उन्होंने जगह बनानी शुरू कर दी थीं। ब्रिटिश डिप्लोमैट और पॉलिटिशियन सर हैरोल्ड निकोलसन कहते हैं, "ब्रिटेन के लोगों को यह लगने लगा था संकट की घड़ी में उनकी आंखों से निकलने वाले आंसू और एलिजाबेथ की आंखों के आंसू एक हैं।"
एलिजाबेथ II में भविष्य को पढ़ लेने की क्षमता थी। वह लोगों के बीच खुद को प्रासंगिक बनाने के तरीकों और महत्व को जानती थीं। टीवी पर क्रिसमस के मौके पर अपने मैसेज में वह परिवार के महत्व पर जोर देती थीं। वह अपनी जिंदगी में परिवार के महत्व के बारे में बताती थीं। उन्होंने अपने पति फिलिप को अपनी ताकत बताया था। इससे आम लोगों में उनकी प्रतिष्ठा बढ़ती गई।
लोग यह समझते थे कि जब उन्हें सबसे ज्यादा जरूरत होगी तब महारानी उनके साथ खड़ी होंगी। 1983 में जब अमेरिका ने कॉमनवेल्थ के सदस्य आईलैंड ऑफ ग्रेनाडा पर हमला किया तो महारानी ने प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर को बुलाया। प्रधानमंत्री पूरे समय वहां मौजूदा लोगों के बीच खड़ा रहीं। दरअसल, एलिजाबेथ बतौर महारानी ब्रिटेन के हर नागरिक के सोच का प्रतिनिधित्व करती थीं।
ब्रिटेन की महारानी का निधन ऐसे वक्त हुआ है ब्रिटेन और उसके राज परिवार के सामने आर्थिक चुनौतियां हैं। देश राजनीतिक अस्थिरता के दौर से भी गुजर रहा है। ऐसे मुश्किल वक्त में किंग चार्ल्स III की काबिलियत का इम्तहान होगा।