इस देश के किसान खेती में कर रहे हैं यूरिन का इस्तेमाल, खाद से तोड़ा रिश्ता, जानिए फायदे
Urine in Agriculture: रासायनिक खाद आज भले ही फसलों का उत्पादन बढ़ाने में इस्तेमाल की जा रही है, लेकिन इससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। इस बीच अमेरिका के वर्मोट राज्य के लोगों ने अपने खेत में रासायनिक खाद से तौबा कर लिया है। अब इस राज्य के किसान यूरिन का इस्तेमाल कर रहे हैं
Urine in Agriculture: इंसानी मूत्र को इकट्ठा करने और खेतों तक पहुंचाना एक बड़ी चुनौती है।
आज के समय में फसल उगाने के लिए ज्यादा से ज्यादा रासायनिक खाद का इस्तेमाल किया जाता है। ये रासायनिक खाद फसलों को तेजी से तैयार करते हैं। लेकिन इससे मिट्टी, पर्यावरण और शरीर को नुकसान पहुंचाता है। रासायनिक खाद के इस्तेमाल से बचने के लिए ही आज के समय ऑर्गेनिक फार्मिंग का प्रचलन शुरू हुआ है। रासायनिक खाद के विकल्प की तलाश भी दुनियाभर के वैज्ञानिक कर रहे हैं। इस बीच अमेरिका के वर्मोट राज्य के किसान इन दिनों रासायनिक खाद की जगह यूरिन का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। वैज्ञानिकों का भी मानना है कि इंसानों का यूरिन खेत में खाद की तरह काम करता है। इससे फसलों की उपज बढ़ती है।
वहीं अगर प्राचीन रोम और चीन की बात करें तो यहां यूरीन (पेशाब) का प्रयोग खाद के रूप में पहले से ही किया जाता था। इससे बनने वाली खाद से दोगुना उपज हो जाती है। इसके साथ ही मिट्टी को भी कोई नुकसान नहीं होता है। ऐसे में अब एक बार फिर से खेती करने का तरीका पारंपरिक तरीके से फिर से शुरू हो रहा है। इस तरीके में रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
अमेरिका के किसान पुरानी प्रथा पर लौटे
वर्मोट अमेरिका का पूर्वेत्तर राज्य है। अब यहां के किसान अपनी उपज बढ़ाने के लिए पारंपरिक तरीके का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में यूरिन न्यूट्रीएंट रीक्लेमेशन प्रोग्राम (UNRP) चलाया जा रहा है। इसके तहत करीब 250 पड़ोसी हर साल 12,000 गैलन (45,400 लीटर) यूरिन जोनेट करते हैं। जिसे रीसाइकिल किया जाता है। इस यूरिन को 90 सेकंड के लिए 80C (176F) तक गर्म करके पाश्चुरीकृत किया जाता है। फिर से एक पाश्चुरीकृत टैंक में एकत्र किया जाता है। इस यूरिन को फसलों की उज बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
यूरिन से फसलों को कितना होगा फायदा
इंसानों के यूरिन के बारे में वैज्ञानिकों ने स्टडी भी की है। इसमें वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके प्रयोग से बिना किसी खाद के केल और पालक जैसी फसलों की उपज को दोगुना किया जा सकता है। इतना ही नहीं कम उर्वरता वाली मिट्टी की उपज को सुधारा जा सकता है। बता दें कि यूरिन में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटैशियम जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि मानक सिंथेटिक उर्वरक के बजाय यूरिन का इस्तेमाल करने से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन भी कम होता है।
क्या यूरिन से उगाया गया फसल लोग खाएंगे?
क्या यूरिन से उगाया गया भोजन खाया जा सकता है? ये लोगों की स्वीकृति से जुड़ा हुआ सवाल है। जिन देशों में यूरिन आधारित उर्वरकों का परीक्षण किया गया है। उनके रवैए में अंतर देखने को मिला है। चीन, फ्रांस और युगांडा में स्वीकृति दर ज्यादा है। लेकिन पुर्तगाल और जॉर्डन में ये कम है। आमतौर पर यूरिन शरीर के रोगों को अपने साथ ज्यादातर लेकर नहीं चलता। इसलिए इसके प्रोसेसिंग की आवश्यक्ता भी कम है। WHO भी इसकी स्वीकृति दे चुका है।