पूरा उत्तर भारत गर्मी से बेहाल है। लोगों का कहना है कि पिछले कई सालों में ऐसी गर्मी नहीं पड़ी थी। दिल्ली स्थित थिंकटैंक सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट (CSE) की एक स्टडी से पता चला है कि रात में शहरों में पारा उतना नहीं घट रहा है जितना 2001-2010 के दौरान घटता था। इस स्टडी के लिए छह बड़े शहरों के तापमान का विश्लेषण किया गया। इनमें दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई और बेंगलुरु शामिल थे। स्टडी के लिए 23 साल यानी जनवरी 2001 से अप्रैल 2014 तक के तापमान को लिया गया।
ह्यूमिडिटी ने बढ़ाई दिक्कत
स्टडी में पाया गया कि कुछ शहरों में तापमान (temperature) ज्यादा नहीं बढ़ा लेकिन ह्यूमिडिटी (Humidity) का लेवल बढ़ने से लोगों को दिक्कत का सामना करना पड़ा। हवा का तापमान, धरती का तापमान और ह्यूमिडिटी ज्यादा होने से लू जैसी स्थिति पैदा हुई, जिससे लोगों को दिक्कत का सामना करना पड़ा। स्टडी में यह पाया गया कि हवा के तापमान में अंतर होने के बावजूद ह्यूमिडिटी और धरती के तापमान ने स्थिति मुश्किल कर दी।
रात के तापमान में नहीं आ रही कमी
सीएसई के विश्लेषण के मुताबिक, दिल्ली में 2001 से 2010 के दशक के दौरान गर्मियों में तापमान में बहुत कम बदलाव हुआ। लेकिन, गर्मी की प्रवृत्ति में बदलाव देखने को मिला। पिछली 10 गर्मियों में सापेक्षिक आद्रता में परिवर्तन देखने को मिला। 2001-2010 के मुकाबले पिछली 10 गर्मियों यानी 2014-23 के दौरान औसतन 8 फीसदी ज्यादा ह्यूमिडिटी देखने को मिली। 2001 से 2010 के दौरान औसत सापेक्षित आद्रता 52.5 फीसदी थी। लेकिन, 2023 की गर्मी में यह 60.9 फीसदी पहुंच गई। इसी तरह 2020 में यह 61.4 फीसदी थी। 2021 में 57.3 फीसदी थी। 2022 में यह 53.5 फीसदी थी।
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एवरेज हीट इंडेक्स 41 के ऊपर
2023 की गर्मी में दिल्ली में ऐसे 14 दिन थे, जब डेली एवरेज हीट इंडेक्स 41 के लेवल के ऊपर निकल गया। इसे मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक माना जाता है। स्टडी में यह भी पाया गया कि रात में दिल्ली का तापमान नहीं घट रहा है। 2001-10 के दौरान धरती का तापमान दिन के अधिकतम तापमान के मुकाबले रात में औसतन 12.3 डिग्री घट जाता था। पिछले 10 सालों यानी 2014-23 के दौरान रात के तापमान में औसत 11.2 डिग्री कमी दर्ज की गई। उसके बाद के सालों में यह और कम हो गया।